- यूरोप का इतिहास (History of Europe)मध्ययुगीन यूरोप (Medieval Europe)आधुनिक यूरोप (Modern Europe)यूरोपीय पुनर्जागरण (European Renaissance)धर्मसुधार आंदोलन (Reformation Movement)औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)राष्ट्रवाद का उदय (Rise of Nationalism)सामंतवाद से पूंजीवाद तक (From Feudalism to Capitalism)वैज्ञानिक क्रांति (Scientific Revolution)यूरोपीय सामाजिक परिवर्तन (European Social Changes)चर्च की शक्ति और पतन (Church Power and Decline)लोकतंत्र का विकास (Development of Democracy)यूरोप में व्यापार और उपनिवेशवाद (Trade and Colonization in Europe)यूरोप में साम्राज्यवाद (Imperialism in Europe)पुनर्जागरण का प्रभाव (Impact of Renaissance)ज्ञानोदय और समाज (Enlightenment and Society)औद्योगीकरण और शहरीकरण (Industrialization and Urbanization)यूरोपीय युद्ध और क्रांतियाँ (European Wars and Revolutions)यूरोपीय समाज में बदलाव (Changes in European Society)
- 1 परिचय
- 2 यूनानी जीवन
- 3 रोमन और उनकी संस्कृति
- 4 रोमन साम्राज्य का विभाजन
- 5 मध्यकालीन यूरोप
- 6 सामंतवाद
- 7 कैथोलिक चर्च
- 8 आधुनिक यूरोप में संक्रमण
- 9 आधुनिक समय में परिवर्तन
- 10 सामंती व्यवस्था का अंत
- 11 यूरोप में आधुनिकता के उदभव का कारण
- 12 यूरोप का वाणिज्यिक विकास
- 13 औद्योगिक क्रांति के प्रभाव
- 14 पुनर्जागरण
- 15 महत्वपूर्ण पुनर्जागरण विचारक
- 16 धर्मसुधार
- 17 तीस वर्षीय युद्ध (1618-1648)
- 18 वेस्टफेलिया की संधि (1648)
- 19 प्रबोधन (Enlightenment)
1 परिचय
प्राचीन यूरोप में ग्रीक और रोमन संस्कृतियों के तहत विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति हुई। दर्शनशास्त्र, लेखन, विज्ञान, कला, भवन-निर्माण और सामाजिक संरचना का विकास इन्हीं संस्कृतियों के योगदान से हुआ।
मध्ययुगीन युग से आधुनिक युग तक यूरोप |
2 यूनानी जीवन
प्रारंभिक इतिहास:
तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के अंत में, यूनानी लोग एजियन सागर के आसपास निवास करते थे। समय के साथ, स्पार्टा, एथेंस, मैसेडोनिया, और कोरिंथ जैसे नगर-राज्य विकसित हुए। व्यापार और व्यवसाय की वृद्धि ने इन्हें मजबूत किया।
सांस्कृतिक विकास:
यूनानियों ने साहित्य, दर्शन, विज्ञान, कला और भवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हेरोडोटस को "इतिहास का पिता" कहा जाता है। सुकरात, अरस्तू, और टॉलमी जैसे विचारकों ने दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई। लोकतंत्र की शुरुआत भी ग्रीस में हुई।
यूनान का पतन:
5वीं शताब्दी ई. पू. में यूनानी नगर-राज्य आपसी संघर्ष और फारसी साम्राज्य के आक्रमणों के कारण कमजोर हो गए और बिखर गए।
3 रोमन और उनकी संस्कृति
प्रारंभिक इतिहास:
रोमनों ने यूनानियों से वर्णमाला, धर्म और कला जैसे कई सांस्कृतिक तत्व अपनाए। यूनान के पतन के बाद रोम एक महान साम्राज्य के रूप में उभरा।
सांस्कृतिक विकास:
रोमन सभ्यता ने भाषा, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, कला और भवन निर्माण में योगदान दिया। लैटिन भाषा का विकास हुआ, जो कई यूरोपीय भाषाओं का आधार बनी। कोलोसियम रोमन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। रोमन कैलेंडर, कुछ परिवर्तनों के साथ, आज भी उपयोग में है।
रोमन साम्राज्य का पतन:
रोम ने अपनी अर्थव्यवस्था को गुलामों पर निर्भर बना दिया था। ईसाई धर्म के प्रसार और प्रशासनिक असफलताओं ने इसे कमजोर किया। अंततः उत्तर से हमलावरों के आक्रमण ने इसे गिरा दिया।
4 रोमन साम्राज्य का विभाजन
रोमन साम्राज्य दो भागों में विभाजित हो गया—पश्चिमी भाग की राजधानी रोम थी, जबकि पूर्वी भाग की राजधानी कॉन्स्टेंटिनोपल बनी। 476 ईस्वी में जर्मन बर्बर आक्रमणों के कारण पश्चिमी भाग कमजोर होकर टूट गया, जबकि पूर्वी भाग 1453 ईस्वी तक अस्तित्व में रहा, जब तुर्कों ने इसे जीत लिया।
5 मध्यकालीन यूरोप
अंधकार युग:
रोमन साम्राज्य के पतन से लेकर पुनर्जागरण की शुरुआत तक की अवधि को "अंधकार युग" कहा गया। यह नाम इतालवी विद्वान फ्रांसेस्को पेट्रार्क द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने इस समय की लेखन गुणवत्ता और संस्कृति के पतन पर प्रकाश डाला।
सामाजिक स्थिति:
इस समय विज्ञान, राजनीति, दर्शन, कला और वास्तुकला में सीमित प्रगति हुई। सामंतवाद की प्रणाली विकसित हुई, जिसमें स्थानीय सरदारों ने शक्ति प्राप्त की। चर्च ने विज्ञान और सांस्कृतिक प्रगति को नियंत्रित करने का प्रयास किया।
आधुनिक दृष्टिकोण:
आधुनिक विद्वान इस अवधि को पूरी तरह "अंधकार युग" नहीं मानते, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में उन्नति जारी रही। 16वीं शताब्दी की खोजों की नींव प्रारंभिक मध्य युग में रखी गई थी।
6 सामंतवाद
सामंतवाद की उत्पत्ति:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोप में सामंतवाद की सामाजिक और आर्थिक प्रणाली विकसित हुई। इस प्रणाली में राजा के अधीनस्थ सामंत होते थे, जो राजा के लिए युद्ध लड़ते थे।
सामाजिक संरचना:
सामंतों का अपने क्षेत्रों पर पूरा नियंत्रण था। यह प्रणाली विभिन्न सत्ता स्तरों में विभाजित थी, जहाँ प्रत्येक स्तर के पास अपनी विशेष शक्तियाँ और उत्तरदायित्व होते थे। राजा सामंतों को भूमि प्रदान करता था, और बदले में सामंत युद्ध के समय राजा की सहायता करते थे।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
सामंतवादी व्यवस्था मुख्य रूप से ग्रामीण थी, जहाँ कृषि प्रमुख आर्थिक गतिविधि थी। व्यापार और मुद्रा का महत्व कम हो गया, जिससे समाज में ठहराव आ गया।
सामंतवाद का पतन:
11वीं शताब्दी में व्यापार और शहरीकरण के बढ़ने से सामंतवादी व्यवस्था कमजोर होने लगी। धीरे-धीरे व्यापार और मुद्रा फिर से अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे, जिससे सामंतवाद का प्रभाव कम होता गया।
7 कैथोलिक चर्च
सामंतवाद रोमन कैथोलिक चर्च की तरह ही मजबूत था। एक बार जब यूरोप के शासकों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया, तो पोप, जो चर्च के प्रभारी थे, पश्चिमी यूरोप में ईसाई धर्म के नेता बन गए। छठी शताब्दी तक, पोप के पास अक्सर राजा की तुलना में अधिक शक्ति होती थी और वह राजा को अपने आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर कर सकता था। मठ, जहाँ भिक्षु रहते थे, अध्ययन और ज्ञान के महत्वपूर्ण केंद्र थे। भिक्षुओं ने लोगों के नैतिक जीवन को सुधारने और गरीबों की मदद करने का काम किया, लेकिन कुछ समय बाद चर्च में भ्रष्टाचार और अन्य बुरी चीजें होने लगीं।
चर्च की करतूतें:
यूरोप में चर्च का इतिहास लंबा और जटिल है। चर्च ने यूरोप की संस्कृति और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन इसने कुछ बुरे काम भी किए।
धर्मयुद्ध:
1095 और 1291 के बीच, तीन धर्मयुद्ध ईसाई और इस्लामी शक्तियों के बीच लड़े गए। यह इस्लाम के विकास की रणनीति और यूरोप में बदली हुई राजनीतिक और आर्थिक स्थिति के कारण हुआ। चर्च और अभिजात वर्ग यूरोप को एक बेहतर जगह बनाने के लिए शांति चाहते थे, इसलिए घरेलू संघर्षों को जानबूझकर देश के बाहर ले जाया गया। बेजेन्टिन सम्राट एलेक्सियस I और पोप अर्बन II के सुझाव पर ईसाई सेना सीरिया और यरुशलम की ओर बढ़ी, जो यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल था। धर्मयुद्ध के दौरान बहुत हिंसा हुई, लोग मारे गए और यहूदियों और मुसलमानों को सताया गया।धर्माधिकरण:
धर्माधिकरण कैथोलिक चर्च का एक संगठन था जिसने ईशनिंदा और अन्य प्रकार की असहमति को रोकने की कोशिश की। यह समूह संदिग्धों को प्रताड़ित करने और उनसे बातें उगलवाने के लिए क्रूर तरीकों का उपयोग करने के लिए कुख्यात था।डायनों का शिकार:
15वीं से 18वीं सदी के बीच यूरोप में डायनों का शिकार एक आम घटना थी। चर्च ने इन मामलों में एक बड़ी भूमिका निभाई, जिसके कारण हजारों लोगों, विशेषकर महिलाओं को यातनाएं दी गईं, जेल में डाला गया और मार डाला गया।अनुग्रह की बिक्री:
कैथोलिक चर्च में, लोग अनुग्रह खरीदकर अपने पापों के लिए क्षमा प्राप्त कर सकते थे। मार्टिन लूथर जैसे सुधारक इस प्रथा के खिलाफ थे, जिन्होंने प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार की शुरुआत की।यौन शोषण कांड:
हाल के वर्षों में, कई घटनाओं में पादरियों और चर्च के अन्य सदस्यों पर बच्चों का यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया है। यह चर्च की छवि को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने वाला मुद्दा बन गया है।
इस प्रकार, चर्च ने यूरोपीय समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन इसके कुछ कार्यों ने इसकी छवि को धूमिल भी किया।
8 आधुनिक यूरोप में संक्रमण
18वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप में कई महत्वपूर्ण कारकों ने एक नए युग की शुरुआत की। इन कारकों ने यूरोपीय समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।
प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट):
प्रबोधन एक बौद्धिक आंदोलन था जिसने विज्ञान, तर्क और मानवतावाद पर जोर दिया। इस आंदोलन ने पारंपरिक धार्मिक और राजनीतिक सत्ता को चुनौती दी और व्यक्तिगत अधिकारों, स्वतंत्रता और समानता के विचारों को बढ़ावा दिया। प्रबोधन के विचारकों ने समाज और सरकार में सुधार की वकालत की, जिसने बाद में क्रांतियों और लोकतांत्रिक संस्थाओं के उदय को प्रेरित किया।वैज्ञानिक क्रांति:
17वीं शताब्दी में हुई वैज्ञानिक क्रांति ने आधुनिक विज्ञान की नींव रखी। इस दौरान वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक दुनिया को समझने के नए तरीके विकसित किए। गैलीलियो, न्यूटन और केपलर जैसे वैज्ञानिकों के कार्यों ने लोगों की सोच को बदल दिया और तकनीकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।स्पेनिश उत्तराधिकार का युद्ध (1701-1714):
यह युद्ध यूरोप की प्रमुख शक्तियों के बीच लड़ा गया और इसने महाद्वीप पर शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप स्पेन और फ्रांस की शक्ति कमजोर हुई, जबकि ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया की शक्ति में वृद्धि हुई।निरंकुश राजशाही का उदय:
18वीं शताब्दी में यूरोप में निरंकुश राजशाही का विकास हुआ। इन राजशाहियों में शासकों का अपने देशों पर पूरा नियंत्रण था। फ्रांस में लुई XIV और रूस में पीटर द ग्रेट जैसे शासकों ने अपने साम्राज्यों को मजबूत किया और केन्द्रीकृत शासन प्रणाली को बढ़ावा दिया।औद्योगिक क्रांति:
18वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति ने यूरोप के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को पूरी तरह से बदल दिया। इस क्रांति ने मशीनीकरण, उत्पादन के नए तरीकों और तकनीकी प्रगति को जन्म दिया। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदलाव ने शहरीकरण और मजदूर वर्ग के उदय को प्रेरित किया।राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद:
18वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद के विकास ने यूरोपीय देशों में राष्ट्रीय पहचान को मजबूत किया। साथ ही, उपनिवेशवाद के उदय ने यूरोपीय शक्तियों को एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत किया।
9 आधुनिक समय में परिवर्तन
आधुनिक युग की शुरुआत में यूरोप में राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों ने यूरोपीय समाज को एक नए रूप में ढाला और आधुनिक दुनिया की नींव रखी।
1. राजनीति में बदलाव:
पवित्र रोमन साम्राज्य का उदय: वर्ष 1000 तक, पश्चिमी यूरोप में पवित्र रोमन साम्राज्य का गठन हुआ। यह साम्राज्य जर्मनी और ऑस्ट्रिया के कुछ हिस्सों से मिलकर बना था और ईसाई धर्म के प्रसार तथा धर्मयुद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कॉन्स्टेंटिनोपल का पतन: 1453 में तुर्कों ने कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा कर लिया, जो रोमन साम्राज्य के पूर्वी भाग का केंद्र था। इस घटना ने यूरोप की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला।
2. आर्थिक विकास:
व्यापार में बदलाव: तुर्कों द्वारा कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा करने के बाद, पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार मार्ग बंद हो गया। हालांकि, इतालवी व्यापारियों ने अपने धार्मिक विश्वासों को एक ओर रखकर पूर्व के साथ व्यापार जारी रखा।
नए व्यापार मार्गों की खोज: यूरोपीय शहरों में एशियाई वस्तुओं की मांग बढ़ने के कारण, व्यापारियों और शासकों ने नए समुद्री मार्गों की खोज शुरू की। इसने यूरोपीय खोजकर्ताओं को नए स्थानों की खोज के लिए प्रेरित किया।
3. धार्मिक विकास:
चर्च का प्रभुत्व: मध्यकालीन चर्च प्रणाली ने धार्मिक अनुष्ठानों और कर्मकांडों पर जोर दिया। यीशु के सरल और कर्मकांड-मुक्त धर्म की शिक्षाएँ एक जटिल और नियम-आधारित धर्म में बदल गईं।
नए धार्मिक विचारों का उदय: इस दौरान, नए धार्मिक विचारों और मतों ने जन्म लिया, जो चर्च के प्रभुत्व को चुनौती देने लगे। इन विचारों ने बाद में धर्म सुधार आंदोलन को जन्म दिया।
4. समाज में परिवर्तन:
सामंती अर्थव्यवस्था से शहरीकरण: सामंती अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, लेकिन समय के साथ नए शहरों का विकास हुआ। सामंतों की महंगी वस्तुओं की मांग और धर्मयुद्धों के दौरान पूर्वी सामानों की लोकप्रियता ने इस प्रक्रिया को तेज किया।
कृषि में सुधार: खेती की तकनीकों में सुधार और कृषि उत्पादन में वृद्धि के कारण भोजन का अधिशेष हुआ। इस अतिरिक्त भोजन का उपयोग व्यापार के लिए किया गया, जिससे शिल्प और व्यापार को बढ़ावा मिला।
कुलीन व्यवस्था का पतन: इन परिवर्तनों के कारण, सामंती व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हो गई और कुलीन वर्ग का प्रभुत्व कम होने लगा।
10 सामंती व्यवस्था का अंत
सामंती व्यवस्था, जो मध्ययुगीन यूरोप की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना का आधार थी, 16वीं और 17वीं शताब्दी तक धीरे-धीरे समाप्त हो गई। इसके पतन के पीछे कई कारक थे, जिन्होंने यूरोपीय समाज को एक नए युग की ओर अग्रसर किया।
1. केंद्रीकृत राष्ट्र-राज्यों का उदय:
मध्ययुग के अंत और आधुनिक युग की शुरुआत में, यूरोप के कई राज्यों ने अपनी शक्तियों को संयुक्त करना शुरू किया और केंद्रीकृत राष्ट्र-राज्यों का गठन किया। इस प्रक्रिया में सामंतों की शक्ति कम हो गई और वे केंद्र सरकार के प्रति अधिक जवाबदेह बन गए। इससे सामंती व्यवस्था का आधार कमजोर हुआ।
2. ब्लैक डेथ (काली मौत):
14वीं शताब्दी में यूरोप में फैली ब्लैक डेथ ने सामंती व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया। इस महामारी ने यूरोप की आबादी का एक बड़ा हिस्सा समाप्त कर दिया, जिससे श्रमिकों की भारी कमी हो गई। इस कमी के कारण मजदूरी बढ़ी और सामंती मालिकों की शक्ति कम हो गई। श्रमिकों की मांग बढ़ने से किसानों और मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ।
3. किसान विद्रोह:
ब्लैक डेथ के बाद, किसानों और मजदूरों ने सामंती स्वामियों के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया। फ्रांस में जैकेरी विद्रोह और इंग्लैंड में कृषक विद्रोह जैसे आंदोलनों ने सामंती व्यवस्था की नींव को हिला दिया। इन विद्रोहों ने सामंती स्वामियों की शक्ति को चुनौती दी और सामाजिक परिवर्तन की मांग को बल दिया।
4. व्यापार और व्यवसाय का विकास:
यूरोप में व्यापार और व्यवसाय के विकास ने एक नए धनी वर्ग को जन्म दिया, जिसमें व्यापारी और शिल्पकार शामिल थे। यह वर्ग सामंती व्यवस्था के अनुकूल नहीं था और इसने धन और आर्थिक शक्ति के आधार पर एक नई सामाजिक व्यवस्था की मांग की। इससे सामंती व्यवस्था का पतन तेज हुआ।
5. सैन्य प्रौद्योगिकी में परिवर्तन:
बारूद और बंदूकों जैसे नए सैन्य उपकरणों के आविष्कार ने युद्ध के तरीकों को बदल दिया। अब सामंती अधिपतियों और बख्तरबंद घुड़सवारों की भूमिका युद्ध में कम हो गई। इससे सामंती स्वामियों की सैन्य शक्ति कमजोर हुई और केंद्रीकृत राज्यों की सैन्य शक्ति मजबूत हुई।
6. सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन:
कृषि तकनीकों में सुधार और खेती के प्रसार ने भोजन के अधिशेष को जन्म दिया। इस अतिरिक्त भोजन का उपयोग व्यापार के लिए किया गया, जिससे शिल्प और व्यापार को बढ़ावा मिला। इसके कारण नए शहरों का विकास हुआ और सामंती व्यवस्था का आधार और कमजोर हुआ।
11 यूरोप में आधुनिकता के उदभव का कारण
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पुनर्जागरण
- पुनर्जागरण एक सांस्कृतिक और बौद्धिक आंदोलन था जो 14वीं शताब्दी में इटली में शुरू हुआ और पूरे यूरोप में फैल गया।
- इसने मानवतावाद, स्वतंत्रता और पारंपरिक शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
- इस आंदोलन ने सांस्कृतिक पहचान और रचनात्मकता की एक नई भावना को जन्म दिया।
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वैज्ञानिक क्रांति
- 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोजें हुईं।
- इन खोजों ने पुराने विचारों को चुनौती दी और आधुनिक विज्ञान की नींव रखी।
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अन्वेषण का युग
- यह युग 15वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ, जब यूरोपीय लोग नई जगहों की खोज और बसावट में लगे।
- इसने नए व्यापार मार्गों की खोज को प्रोत्साहित किया और वैश्विक शक्तियों के उदय का कारण बना।
- यूरोप और अन्य क्षेत्रों के बीच विचार, वस्तुएँ और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हुआ।
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प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार
- 16वीं शताब्दी में हुए इस धार्मिक आंदोलन ने कैथोलिक चर्च की शक्ति को चुनौती दी।
- इसके परिणामस्वरूप नए प्रोटेस्टेंट संप्रदायों का गठन हुआ।
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राष्ट्र-राज्यों का उदय
- 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में केंद्रीकृत राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ।
- इसने राजनीतिक शक्ति को संगठित किया और आधुनिक शासन प्रणालियों की नींव रखी।
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प्रबोधन (एनलाइटनमेंट)
- 18वीं शताब्दी में प्रबोधन एक शैक्षिक और दार्शनिक आंदोलन के रूप में उभरा।
- इसने तर्क, विज्ञान और मानव अधिकारों पर जोर दिया।
- इस आंदोलन ने पुराने शासन और सामाजिक व्यवस्थाओं को चुनौती दी, जिससे नए राजनीतिक और सामाजिक विचारों का जन्म हुआ।
12 यूरोप का वाणिज्यिक विकास
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कॉन्स्टेंटिनोपल का पतन (1453)
- यूरोप और पूर्व के बीच व्यापार मार्ग टूट गया।
- यूरोपीय अर्थव्यवस्था समृद्ध हो रही थी, और उन्हें महंगे सामान प्राप्त करने के लिए पूर्व तक पहुंचने की आवश्यकता थी।
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समुद्री यात्राओं में वृद्धि
- नई भूमि और समुद्री मार्गों की खोज शुरू हुई।
- 1492 में अमेरिका और 1498 में भारत के लिए समुद्री मार्ग खोजा गया।
- धीरे-धीरे पूरी दुनिया की खोज हुई, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण हुआ।
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यूरोपीय मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली का विकास
- व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों में वृद्धि हुई।
- एक नया "वाणिज्यिक वर्ग" या "मध्यम वर्ग" उभरकर सामने आया।
13 औद्योगिक क्रांति के प्रभाव
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वाणिज्यवाद का उदय
- 17वीं शताब्दी तक व्यापार में वृद्धि हुई, और राजा-रानी व्यापार के प्रमुख बन गए।
- इसे "वाणिज्यवाद" कहा जाता है, जो राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्य पर केंद्रित था।
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वाणिज्यवाद के प्रमुख विचार
- किसी देश की ताकत उसके पास मौजूद दुर्लभ धातुओं से मापी जाती थी।
- व्यापार संतुलन सकारात्मक रहना चाहिए (निर्यात अधिक, आयात कम)।
- वाणिज्यवाद ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया, जिससे यूरोपीय देशों ने विदेशी बाजारों पर नियंत्रण किया।
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अमेरिकी क्रांति और वाणिज्यवाद का अंत
- उपनिवेशों का उद्देश्य कच्चे माल और बाजार उपलब्ध कराना था।
- अमेरिकी क्रांति के बाद वाणिज्यवाद की प्रमुखता घट गई।
14 पुनर्जागरण
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परिचय
- पुनर्जागरण 1400 के दशक में इटली में शुरू हुआ और 1700 तक पूरे यूरोप में फैल गया।
- "रेनेशां" शब्द फ्रांसीसी भाषा से आया, जिसका अर्थ "पुनर्जन्म" है।
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मुख्य विशेषताएँ
- ग्रीक और रोमन कला, साहित्य, और संस्कृति का पुनरुद्धार।
- मानवतावाद पर जोर, जिसमें ईश्वर की बजाय मानव और प्रकृति के अध्ययन को महत्व दिया गया।
- विज्ञान, कला और शिक्षा के प्रति नई जागरूकता।
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प्रिंटिंग प्रेस और ज्ञान का प्रसार
- 15वीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से ज्ञान का प्रसार हुआ।
- इससे पढ़ने-लिखने की संस्कृति बढ़ी, हालांकि गरीब तबके पर इसका प्रभाव सीमित था।
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व्यापारिक वर्ग का उदय
- आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के कारण नया "मध्यम वर्ग" उभरा।
- इस वर्ग ने समाज में नए विचारों और जागरूकता को बढ़ावा दिया।
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यूरोप में विचारों का प्रवाह
- एशियाई प्रौद्योगिकी (जैसे प्रिंटिंग) से यूरोप को लाभ हुआ।
- अरब विद्वानों और समुद्री यात्राओं से ज्ञान का आदान-प्रदान हुआ।
15 महत्वपूर्ण पुनर्जागरण विचारक
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निकोलो मैकियावेली
- "द प्रिंस" नामक पुस्तक लिखी, जिसमें राजनीतिक सत्ता बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाने की वकालत की गई।
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फ्रांसेस्को पेट्रार्क
- मानवतावाद के जनक माने जाते हैं।
- ग्रीक और रोमन क्लासिक्स में रुचि रखते थे।
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मिशेल डी मॉन्टेन
- फ्रांसीसी दार्शनिक, जिन्होंने आत्मविश्लेषण, राजनीति और मानवीय स्थिति पर लिखा।
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रेने डेसकार्टेस
- आधुनिक दर्शन के जनक।
- "Cogito, ergo sum" (मैं सोचता हूँ, अतः मैं हूँ) का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
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थॉमस मूर
- "यूटोपिया" पुस्तक लिखी, जिसमें आदर्श समाज की परिकल्पना की गई।
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फ्रांसिस बेकन
- प्रत्यक्ष अवलोकन और वैज्ञानिक प्रयोगों पर जोर दिया।
यह पाठ काफी विस्तृत और सूचनात्मक है। इसे पॉइंट-वाइज़ लेकिन अनुच्छेद (पैराग्राफ) प्रारूप में व्यवस्थित करने के लिए, मैं इसे निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ:
16 धर्मसुधार
धर्मसुधार 1600 के दशक में हुआ और इसे दो भागों में बांटा जा सकता है—प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार और कैथोलिक धर्मसुधार। यह आंदोलन मुख्य रूप से कैथोलिक चर्च की नीतियों और उसकी कार्यप्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ। इसके परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेंटवाद का विकास हुआ, और विभिन्न यूरोपीय देशों में नए चर्च स्थापित किए गए।
मार्टिन लूथर, जो चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार और भोगपत्रों के विरोधी थे, ने जर्मनी में पहला प्रोटेस्टेंट चर्च स्थापित करने में मदद की। जर्मन शासकों ने इसे समर्थन इसलिए दिया क्योंकि वे पोप की शक्ति से मुक्त होना चाहते थे और चर्च की संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण चाहते थे।
प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार का प्रभाव पूरे यूरोप में तेजी से फैला। इंग्लैंड के राजा हेनरी VIII ने खुद को चर्च का प्रमुख घोषित कर दिया, और बाद में रानी एलिजाबेथ I ने चर्च को रोम से अलग कर दिया। इस दौरान, प्रोटेस्टेंट चर्चों ने आमजन की भाषाओं को अपनाया, जिससे बाइबिल का अनुवाद क्षेत्रीय भाषाओं में हुआ और लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएँ मजबूत हुईं।
धर्मसुधार के कारण
धर्मसुधार के पीछे धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण थे।
- धार्मिक कारण: चर्च में फैले भ्रष्टाचार के कारण इसकी वैधता पर प्रश्न उठने लगे। हालाँकि, आंतरिक सुधार पहले से ही शुरू हो चुके थे, इसलिए धार्मिक कारक उतने निर्णायक नहीं थे।
- आर्थिक कारण: रोमन कैथोलिक चर्च ने धन उधार देने पर रोक लगा रखी थी, जो व्यापारियों के लिए नुकसानदायक था। साथ ही, चर्च के पास देश की बेहतरीन भूमि थी, जिसे पाने के लिए शासकों ने प्रोटेस्टेंट आंदोलन का समर्थन किया।
- राजनीतिक कारण: रोम स्थित चर्च को दिए जाने वाले करों को अन्य देशों ने आर्थिक बोझ के रूप में देखा। इसके अलावा, कुछ शासकों ने प्रोटेस्टेंट आंदोलन का समर्थन इसलिए किया ताकि चर्च की शक्ति को कमजोर कर वे अपनी राजनीतिक सत्ता मजबूत कर सकें।
17 तीस वर्षीय युद्ध (1618-1648)
यह युद्ध कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच जर्मनी में शुरू हुआ, लेकिन बाद में इसका प्रभाव पूरे यूरोप पर पड़ा।
- यह युद्ध धार्मिक संघर्ष के रूप में शुरू हुआ, लेकिन बाद में यह राजनीतिक शक्ति संतुलन का विषय बन गया।
- फ्रांस के बूर्बन और ऑस्ट्रिया-स्पेन के हैब्सबर्ग परिवारों के बीच प्रतिद्वंद्विता ने इस युद्ध को और भड़काया।
- भले ही फ्रांस एक कैथोलिक राष्ट्र था, उसने पवित्र रोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- युद्ध के अंत में, पवित्र रोमन साम्राज्य कमजोर हो गया और यूरोप की राजनीति में नई शक्तियाँ उभरने लगीं।
18 वेस्टफेलिया की संधि (1648)
इस संधि पर तीस वर्षीय युद्ध के अंत में हस्ताक्षर किए गए और इसे यूरोपीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।
- संधि के बाद यूरोप में "राष्ट्र-राज्य" की अवधारणा उभरी।
- जर्मन राज्यों को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाने की अनुमति दी गई।
- सभी यूरोपीय देशों को समान कूटनीतिक दर्जा दिया गया, जिससे शक्ति संतुलन को प्राथमिकता दी गई।
19 प्रबोधन (Enlightenment)
प्रबोधन आधुनिक पश्चिमी सभ्यता की बौद्धिक क्रांति थी। इसे "अज्ञानता के अंधकार के बाद सुबह के प्रकाश" के रूप में देखा जाता है। इस आंदोलन ने तर्क, वैज्ञानिक सोच और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया।
प्रबोधन के सामाजिक एवं वैज्ञानिक आधार
- सामाजिक आधार: आर्थिक बदलाव के कारण मध्य वर्ग का उदय हुआ, जिसने राजाओं, चर्च और उच्च वर्ग की सत्ता को चुनौती दी।
- वैज्ञानिक आधार: 17वीं शताब्दी में वैज्ञानिक क्रांति के कारण तकनीकी प्रगति हुई। "रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन" और "फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस" जैसी संस्थाएँ स्थापित हुईं।
- राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव: वैज्ञानिक क्रांति के बाद लोगों ने धार्मिक विश्वासों और सामाजिक व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए।
प्रबोधन के प्रमुख विचारक
- मैरी वॉलस्टनक्राफ्ट: महिलाओं की समानता और शिक्षा के अधिकार की समर्थक।
- डेविड ह्यूम: अनुभववाद और संशयवाद के विचारक।
- बेंजामिन फ्रैंकलिन: विज्ञान, राजनीति और साहित्य में योगदान देने वाले अमेरिकी संस्थापक।
- जॉन लॉक: प्राकृतिक अधिकारों और सामाजिक अनुबंध के समर्थक, जिनके विचार अमेरिकी संविधान पर प्रभावी रहे।
- वॉल्टेयर: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चर्च-राज्य अलगाव के पक्षधर।
- जीन-जैक्स रूसो: समाज द्वारा मानवता के नैतिक पतन की अवधारणा देने वाले विचारक।
- मॉन्टेस्क्यू: शक्ति पृथक्करण और संतुलन की अवधारणा के समर्थक।
- इमैनुएल कांट: तर्क और नैतिकता के महत्व पर जोर देने वाले दार्शनिक।
- एडम स्मिथ: आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक, जिन्होंने "द वेल्थ ऑफ नेशंस" लिखी।
- डेनिस डाइडरॉट: "एनसाइक्लोपीडिया" के संपादक, जिन्होंने ज्ञान के प्रसार पर बल दिया।
प्रबोधन का प्रभाव
- तर्कवाद और वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग कर राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था और धर्म की समस्याओं के समाधान खोजे गए।
- इस आंदोलन ने लोकतंत्र, मानवाधिकारों और स्वतंत्रता की अवधारणाओं को मजबूत किया, जिसने आगे चलकर आधुनिक समाज को आकार दिया।
इस प्रकार, धर्मसुधार, तीस वर्षीय युद्ध, वेस्टफेलिया की संधि और प्रबोधन ने यूरोप के इतिहास को नया स्वरूप दिया और आधुनिक समाज की नींव रखी।