शिक्षण का अर्थ तथा उद्देश्य | Meaning and Aims of Teaching | प्रश्न उत्तर - KKR Education

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बुधवार, 25 दिसंबर 2024

शिक्षण का अर्थ तथा उद्देश्य | Meaning and Aims of Teaching | प्रश्न उत्तर

 शिक्षण का अर्थ तथा उद्देश्य (Meaning and Aims of Teaching)

शिक्षा व शिक्षण विश्व में पवित्रतम, परमावश्यक, परहिताय व सर्वश्रेष्ठ कार्य है।

शिक्षण का अर्थ, शिक्षण का व्यापक व संकुचित अर्थ, शिक्षण की परिभाषाएं, उत्तम शिक्षण की विशेषताएं, शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य, शिक्षण में प्रयुक्त प्रमुख क्रियाकलाप

यह हम सभी जानते हैं कि शिक्षा राष्ट्रीय विकास की आधारशिला है। शिक्षा के माध्यम से ही हम अपने देश के भावी कर्णधारों को उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से परिचित कराते हैं। शिक्षा की प्रक्रिया को प्रभावी रूप से संचालित करने वाले केन्द्र के रूप में विद्यालय की भूमिका अति महत्वपूर्ण है।

शिक्षण का अर्थ (Meaning of Teaching)

विद्यालयों में सीखने-सिखाने व पढ़ने-पढाने की प्रक्रिया सामान्यतः शिक्षक द्वारा ही सम्पन्न की जाती हैऔर इसे ही शिक्षण कहा जाता है। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक सामाजिक परिवेश में पारस्परिक सहभागिता से अपने छात्रों तक अपने ज्ञान, कौशल, व्यवहार व दक्षताओं को पहुंचाने का कार्य करता है।

शिक्षा एक त्रिध्रुवीय, गत्यात्मक, अन्तः क्रियात्मक (दो या अधिक लोगों के मध्य) व सोद्देश्य प्रक्रिया है जिसके तीन प्रमुख ध्रुव हैं-

शिक्षक

शिक्षार्थी

पाठ्यक्रम/पाठ्यवस्तु


उपरोक्त तीनों ध्रुवों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया ही शिक्षण है। तीनों पक्षों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य शिक्षक अपने शिक्षण के माध्यम से करता है। शिक्षण में इन तीनों पक्षों का होना आवश्यक है।

शिक्षण का सामान्य अर्थ है- 

ज्ञान प्रदान करना या तथ्यों का बोध कराना। विद्यालय में छात्र अकेले ही ज्ञान प्राप्त नहीं करता है, बल्कि शिक्षक अपने ज्ञान को छात्रों तक पहुंचाने के लिए कक्षा में विभिन्न क्रियाकलापों/ शिक्षण अधिगम सामग्रियों/शिक्षण विधाओं जैसे-खेल, वार्तालाप, प्रश्न, वर्णन, कहानी, कविता, टी0एल0एम0 पाठ्यपुस्तकों का सहारा लेता है। वह अपने शिक्षण द्वारा ही छात्रों को विषय वस्तु सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है।

शिक्षण और अधिगम एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। शिक्षण तब तक अधूरा है जब तक सीखने वाले में अपने प्राप्त ज्ञान को जीवन में प्रयोग करने की क्षमता न उत्पन्न हो। शिक्षण शब्द का प्रयोग प्राचीनकाल से होता रहा है और इसकी सफलता सीखने वाले द्वारा प्राप्त/अर्जित ज्ञान पर निर्भर है। शिक्षण उस समय ही होता है जब कुछ सीखा जाता है।

शिक्षण का व्यापक व संकुचित अर्थ-

शिक्षण का सर्वमान्य अर्थ बताना अत्यन्त कठिन है। शिक्षा की भाँति शिक्षण के भी दो अर्थ हैं-

व्यापक अर्थ व संकुचित अर्थ।

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शिक्षण का व्यापक अर्थ (Wider Meaning of Teaching)

व्यापक अर्थ में 'शिक्षण' मनुष्य के जीवन में निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत सभी व्यक्ति, वस्तुएं, वातावरण, साधन, माध्यम व घटनाएं व्यक्ति को जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ सिखाती हैं। परिवार, विद्यालय, समाज, वातावरण, उद्योग, सिनेमा, राजनीति, कला व साहित्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को कुछ न कुछ शिक्षण प्रदान करते हैं। इस प्रकार के शिक्षण में औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार के साधनों से व्यक्ति जीवन भर सीखता रहता है।

शिक्षण का संकुचित अर्थ- (Narrower Meaning of Teaching)

संकुचित अर्थ में बालकों को ज्ञान, सूचना, जानकारी व परामर्श देना ही शिक्षण है। यह शिक्षण पूर्व नियोजित व नियन्त्रित होता है तथा बालक को कुछ निश्चित वर्षों तक ही दिया जाता है और इसमें केवल औपचारिक साधनों का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ- विद्यालय व कक्षा-कक्ष में शिक्षार्थियों को प्रदान किया जाने वाला शिक्षण।

निश्चित उद्देश्यों को लेकर निश्चित समय में, निश्चित स्थान पर, निश्चित व अनुभटी व्यक्तियों द्वारा टी जाने वाली प्रक्रिया ही शिक्षण है।

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शिक्षण की परिभाषाएँ (Definition of Teaching)

डॉ0 माथुर के अनुसार- "शिक्षण का अर्थ शिक्षार्थी को ऐसे अवसर प्रदान करना है जिनसे शिक्षार्थी अपनी अवस्था एवं प्रकृति के अनुरूप समस्याओं को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें। वह स्वयं योजना बना सकें, शैक्षिक सामग्री इकट्ठी कर उसे सुसंगठित रूप में प्रयोग कर सकें तथा लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।" 

रायन्स के अनुसार- "दूसरों को सीखने के लिए दिशा निर्देश देने तथा अन्य प्रकार से उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहते हैं।"

योकम व सिम्पसन- "शिक्षण वह साधन है जिसके द्वारा समूह के अनुभवी सदस्य अपरिपक्व व छोटे सदस्य का जीवन से अनुकूलन करने में पथ प्रदर्शन करते हैं।"

जेम्स एम0 थाइन- "समस्त शिक्षण का अर्थ सीखने में वृद्धि करना है।"

शिक्षण के अर्थ व परिभाषाओं के आधार पर शिक्षण के स्वरूप को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

  • शिक्षण का अर्थ शिक्षक, विद्यार्थी व पाठ्यक्रम के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना है।
  • शिक्षण का अर्थ सूचना, ज्ञान व जानकारी देना है।
  • शिक्षण का अर्थ सिखाना व बालकों को अपने वातावरण के अनुकूल बनने में सहायता करना है।
  • शिक्षण शिक्षार्थी को उत्प्रेरित करने, मार्गदर्शन प्रदान करने व क्रियाशील रखने की प्रक्रिया है।
  • शिक्षण तैयारी का एक साधन व सीखने का संगठन है।
  • शिक्षण शिक्षक का स्वमूल्यांकन है।

उत्तम शिक्षण की विशेषताएं (Characteristics of Good Teaching)

उत्तम शिक्षण छात्रों में सीखने की तीव्र इच्छा जाग्रत कर उन्हें विकास की ओर बढ़ाता है। योकम व सिम्पसन ने अच्छे शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएं बताई हैं-

  • अच्छे शिक्षण में वांछित सूचनाएं प्रदान की जाती हैं।
  • यह आदेशात्मक न होकर निर्देशात्मक व जनतंत्रीय आदर्शों पर आधारित होता है अर्थात् हर छात्र
  • महत्वपूर्ण होता है।
  • इसमें सीखने वाला स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होता है।
  • अच्छा शिक्षण शिक्षक व छात्रों के सहयोग पर आधारित व प्रगतिशील होता है।
  • उत्तम शिक्षण में छात्रों की कठिनाइयों को जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है।
  • इसमें छात्र सदैव क्रियाशील रहते हैं तथा उनकी अन्तर्निहित क्षमताओं का पूर्ण विकास होता है।
  • यह प्रेरणात्मक व सृजनात्मक होता है।
  • उत्तम शिक्षण में छात्रों की वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखा जाता है।

शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य (Main objectives of Teaching)

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तीव्र गति से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव शिक्षा प्रक्रिया पर भी पड़ा है, जिससे शिक्षा व शिक्षण के उद्देश्यों, विधियों/प्रविधियों, पाठ्यक्रम व शिक्षक की भूमिका में व्यापक बदलाव आया है। आज शिक्षण का मुख्य व महत्वपूर्ण उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया को बालोपयोगी, रुचिकर, आनन्ददायी, प्रभावी, व्यावहारिक व बोधगम्य बनाना है जिससे बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार विषय वस्तु को अच्छी तरह से समझ सकें व उसका यथा समय प्रयोग कर सकें।
· शिक्षण का उद्देश्य मात्र तथ्यों का स्मरणीकरण न होकर दक्षता की प्राप्ति तथा ज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक योग्यताओं का विकास है।
• रायबर्न के अनुसार- "शिक्षण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी को इस योग्य बनाना है कि वह सफल जीवन जी सके।"

 शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नवत् हैं-

  • शिक्षण का उद्देश्य शिक्षार्थियों को जीवनोपयोगी ज्ञान
  • व्यक्तित्व/क्षमताओं/योग्यताओं व कुशलताओं का अधिकतम विकास करना है।
  • शिक्षार्थियों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करना जिससे वे पढ़ने व अन्य कार्यों में रुचि ले सकें।
  • छात्रों में आत्मविश्वास की भावना जाग्रत करना।
  • छात्रों की मूल प्रवृत्तियों को सही दिशा देना व उनमें स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास करना जिससे वे समाज, देश व विश्वकल्याण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
  • जीविकोपार्जन करना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण होता है। अतः छात्रों को स्वावलंबी बनाना व उनमें व्यावसायिक दक्षता उत्पन्न करना भी शिक्षण का उद्देश्य है।
  • छात्रों में नेतृत्व क्षमता तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों का विकास करना।
  • छात्रों को स्वास्थ्य, स्वच्छता व अपने परिवेश के प्रति जागरुक बनाना।
  • छात्रों का मार्गदर्शन करना क्योंकि उचित समय पर प्राप्त मार्गदर्शन सफलता दिलाने में सहायक
  • होता है।
  • छात्र-छात्राओं को सक्रिय रखना व उनमें रचनात्मक दृष्टिकोण का विकास करना।
  • छात्रों की कठिनाइयों को दूर करना व अशुद्धियों का निवारण करना।
  • छात्रों को अपने वातावरण से समायोजन करना सिखाना ताकि वह समाज व लोकतन्त्रिक राष्ट्र के
  • जिम्मेदार नागरिक बन सकें।
शिक्षण कार्य करना शिक्षक का प्रमुख दायित्व है। अपने दायित्व के बेहतर निर्वहन, शिक्षण को सफल बनाने व छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए वह कक्षा शिक्षण में विभिन्न तरीकों/विधाओं/क्रियाकलापों का प्रयोग करता है। शिक्षक द्वारा अपनाये गये जिस तरीके से छात्र अच्छी तरह सीख जायें वही शिक्षण का सबसे उत्तम तरीका होता है।
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शिक्षण में प्रयुक्त प्रमुख क्रियाकलाप

कक्षा-कक्ष में छात्रों के मध्य शिक्षण करते समय शिक्षक निम्नलिखित क्रियाकलाप करा सकते हैं-

  • विषय व पाठ्यवस्तु आधारित गतिविधियों/ क्रियाकलापों को कराना।
  • छोटे व बड़े समूह में कार्य कराना जिससे बच्चे स्वयं कार्य करते हुए सीख सकें, समझ सकें।
  • ऐसे प्रोजेक्ट कार्य कराना जिन्हें बच्चे स्वयं व साथियों के सहयोग से कर सकें।
  • विविध प्रकार के अभ्यास कार्य कराना व उनकी जाँच करना।
  • शैक्षिक व मनोरंजनात्मक खेल खिलवाना।
  • वर्णन, व्याख्यान व कथन कहना।
  • प्रश्नोत्तर व प्राप्त उत्तरों को सभी बच्चों के सामने स्पष्ट करना।
  • लिखित और मौखिक अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु प्रत्येक बच्चे से वार्तालाप करना, कविता,
  • कहानी, दृश्य/चित्र आधारित लेख लिखवाना।
  • सहायक सामग्री का समुचित प्रयोग करना।
  • प्रायोगिक कार्य कराना।
  • चर्चा- परिचर्चा करवाना।
  • महत्वपूर्ण बिन्दुओं को श्यामपट्ट पर लिखना।
  • प्रेरणा व आवश्यक सुझाव प्रदान करना।
  • मूल्यांकन करना।
  • स्वाध्याय व विचार-विमर्श के अवसर प्रदान करना।
वर्तमान सन्दर्भों में शिक्षण केवल ज्ञान, सूचना व जानकारी प्रदान करना ही नहीं है। शिक्षण तथा सीखना दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शिक्षण का कार्य अधिगम में प्रभावशीलता लाना है। शिक्षण एक कार्य है जबकि अधिगम एक उपलब्धि है। शिक्षण तभी सार्थक व प्रभावी होगा जब छात्र सीखे गये विषय व ज्ञान के आधार पर अपने व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों व परिस्थितियों में उसका समुचित उपयोग कर सकें।
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