सूक्ष्म शिक्षण | प्रस्तावना-कौशल | प्रश्न कौशल | उद्दीपन परिवर्तन कौशल | दृष्टान्त / उदाहरण कौशल | श्याम पट्ट प्रयोग-कौशल

सूक्ष्म शिक्षण- एक परिचय


शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय का प्रमुख कार्य प्रभावशाली शिक्षक तैयार करना है। मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षण क्रियाओं में सुधार तथा विकास हेतु अनेक प्रयोगों के आधार पर कई सुझाव प्रस्तुत किये हैं। उनके आधार पर यह मान्यता है कि प्रशिक्षण में शिक्षक व्यवहार में सुधार किया जा सकता है।

शिक्षक व्यवहार में सुधार के लिए अनेकों पृष्ठ पोषण की प्रविधियां (TECHNIQUES ) प्रयोग में ली जा रही है, सूक्ष्म शिक्षण उन्हीं में से एक है। इस प्रविधि के प्रयोग से शिक्षकों के कौशल एवं व्यवहारों में अपेक्षित सुधार एवं परिवर्तन लाया जा सकता है। 1961 में अमेरिका के शिक्षा शास्त्रियों ने फोर्ड फाउण्डेशन के अनुदान से यह ज्ञात करने का प्रयास किया कि शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम में कौन-कौन से अनुभव ऐसे हो सकते हैं, जिनसे शिक्षकों में अध्यापन कार्य को सुचारू रूप से करने की क्षमता विकसित की जा सकती है। प्रयोगों को उसी श्रृंखला में सूक्ष्म अध्यापन अभ्यास क्रम प्रारम्भ किये गये, इन्हें प्रदर्शन अध्यापन की संज्ञा दी गई। इन अभ्यास कार्यक्रमों में पर्यवेक्षक की प्रतिपुष्टि के आधार पर शिक्षण में सुधार के प्रयोग किये गये। विडियो, टेपरिकार्डर के उपयोग एवं उसके सहारे छात्राध्यापकों के अध्यापन व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने व निश्चित उद्देश्यों की सम्पूर्ति एवं अध्यापन प्रक्रिया में सुधार के विकल्प खोजने के प्रयास किये गये ।

प्रयोगों के आधार पर परम्परागत शिक्षण विधि एवं सूक्ष्म अध्यापन विधि में पृथक्-पृथक् समूहों में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने पर सूक्ष्म' अध्यापन विधि से प्रशिक्षित समूह की शिक्षण समता अधिक पाई गई।

ऐलन और रियान ने सूक्ष्म अध्यापन को निम्न पांच मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित बताया :-

(1) सूक्ष्म अध्यापन वास्तविक अध्ययन है ।

(2) इस प्रणाली में साधारण कक्षा अध्यापन की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है । (3) एकसमय में एक विशेष कौशल के प्रशिक्षण पर ही जोर दिया जाता है ।

(4) अभ्यासक्रम की प्रक्रिया पर अधिक नियन्त्रण रखा जा सकता है।

(5) परिणाम सम्बन्धी साधारण ज्ञान एवं प्रतिपुष्टि के प्रभाव की परिधि विकसित होती है ।

मैक्लीज और अनुविन का कहना था कि सरलीकृत वातावरण में शिक्षक को उसके निष्पादन सम्बन्धी प्रतिपुष्टि उपलब्ध कराने की प्रक्रिया से प्रशिक्षणप्रभावी हो सकता है। जटिलताओं का न्यूनीकरण किया जा सकता है ।

ऐलन और ईव ने इस प्रक्रियाको निम्न प्रकार बताया:-

"यह एक नियन्त्रित अभ्यास प्रक्रिया है जो किसी विशिष्ट शिक्षण व्यवहार और अध्यापन अभ्यास को नियन्त्रित परिस्थितियों में सम्भावित बनाती है।"

सूक्ष्म अध्यापन की सर्वसम्मत एवं सम्पूर्ण कोई परिभाषा नहीं है। यह एक बहुत ही लचीली एवं अनुकूलनशील प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षण व्यवहार के निश्चित प्रारूप को पृष्ठ पोषण द्वारा विकसित करने का प्रयास किया जाता है। यह एक उपचारात्मक योजना भी है। इसमें शिक्षक को किसी एक क्षमता केलिए अपने समूह में एक छोटे से प्रकरण का सुधार के लिए सुझाव दिये जाते हैं। यह व्यक्तिगत क्षमताओं के विकास में पूर्ण अवसर प्रदान करती है।

इस प्रविधि के अन्तर्गत छात्राध्यापक के शिक्षण का प्राध्यापक द्वारा भी निरीक्षण किया जाता है। शिक्षण समाप्त होने पर चर्चा द्वारा सुधार के लिए अवसर उपलब्ध होता है। विकास के सुझाव दिये जाते हैं। सुझाव को ध्यान में रखते हुए शिक्षक उसी पाठ को पुनः नियोजन कर पुनः शिक्षण करता है ।

सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग विभिन्न कौशलों को विकास के लिए किया जाता है। शिक्षण कौशल से अभिप्राय सुनिश्चित शिक्षक व्यवहार से है जो छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रभावशाली होते हैं। शिक्षण के अनेकों कौशल अभिज्ञात किये गये हैं।

शिक्षक को सामान्य तथा प्रभावी शिक्षक के रूप में विकसित करने की दृष्टि से निम्नांकित 5 कौशलों पर सूक्ष्म शिक्षण पाठों का आयोजन वर्तमान में प्रस्तावित है


(1) प्रस्तावना (पाठ विन्यास ) कौशल

(2) प्रश्न कौशल ।

(3) उद्दीपन परिवर्तन कौशल ।

(4) दृष्टान्त व उदाहरण कौशल।

(5) श्याम पट्ट प्रयोग कौशल ।

इन कौशलों को विकसित करने हेतु क्षमता का परिचय, पाठ-नियोजन अवलोकन पुनर्नियोजन अवलोकन तथा अन्य छात्र अध्यापकों केपाठों का अवलोकन कर प्रत्येक क्षमता में अन्तर्दृष्टि विकसित होने की सम्भावना बढ़ाने का प्रयास इस अभ्यासद्वारा किया गया है :-

योजना बनाना>पढ़ाना>प्रतिपुष्टि>पुनर्नियोजन>पुनः पाठन>पुनः प्रतिपुष्टि

प्रस्तावना-कौशल परिचय


अध्यापन प्रारम्भ करने के पूर्व यह आवश्यक है कि छात्राओं के मन में सीखने की उत्सुकता जागृत हो सके। उनमें प्रेरणा चिन्तन व अधिगम की तैयारी हेतु आकर्षण उत्पन्न किया जाये। छात्रों के अधिगम की ओर अग्रसर करने के लिए आवश्यक पूर्व ज्ञान से नवीन विषय सामग्री से अनुबन्धित करना है।

पाठ की सफलता का आधार अध्यापक द्वारा छात्रों को अधिगम की ओर अग्रसित करने के लिए नूतन अवधारणा प्रतिस्थापित करने की निमित्त प्रस्तावना कौशल अपेक्षित है।

घटक :-


1. पूर्व ज्ञान से सम्बन्ध ।

2. तात्कालिक घटनाओं एवं रूचि से सम्बन्ध ।

3. ज्ञात ज्ञान से तुलना ।

4. प्रश्नों में तारतम्यता ।

5. प्रेरणा हेतु साधनों व युक्तियों की उपयुक्तता ।

6.  प्रश्नों की प्रासंगिकता ।

7. हाव-भाव एवं दृष्टि सम्पर्क |

8. आत्म विश्वास ।

9. प्रस्तुतिकरण ।

मार्गदर्शी सिद्धान्तः-


1. छात्रों की आयु, योग्यता एवं रूचि के अनुकूल प्रस्तावना सार्थक होनी चाहिए।

2. प्रस्तावना का सम्बन्ध पाठ को अन्तर्वस्तु और पाठ उद्देश्यों से स्पष्ट दिखाई देनी चाहिए।

3. पूर्वज्ञान से सम्बन्ध, परिचित अपरिचित अथवासरल से कठिन के मध्य सम्बन्ध स्थापित होना परमावश्यक है।

4. एकही पाठ की प्रस्तावना के विभिन्न तरीके हो सकते हैं। विषय एवं विषय वस्तु के आधार पर प्रस्तावना का माध्यम उदाहरण, व्याख्यान, वर्णनकला, लघु कथा, कहानी कथन, कविता पाठ, खेल अभिनय, नाट्यीकरण, प्रयोग, प्रदर्शन एवं प्रद्योतन (चित्र, मानचित्र, मॉडल व अन्य श्रव्य-दृव्य उपकरण ) आदि हो सकते हैं।

प्रस्तावना के माध्यम:-

1. उदाहरण एवं दृष्टान्त केद्वारा ।

2. कविता, कहानीद्वारा ।

3. चित्र, चार्ट, मॉडलद्वारा ।

4. प्रयोग, उपकरण एवं वस्तुओं द्वारा ।

प्रश्न कौशल

परिचय

अध्यापक कक्षा में जितनी कुशलताओं का प्रयोग करता है, उनमें प्रश्न कौशल सर्वाधिक जटिल किन्तु अत्यन्त उपयोगी कौशल है। प्रश्नों केद्वारा शिक्षण का स्तर उन्नत करने में सहायता मिलती है तथा कक्षा में शैक्षणिक वातावरण का सृजन करना सम्भव हो सकता है।

घटक-

1. प्रकरण से सम्बन्ध ।

2. प्रश्नों की स्पष्टता ।

3. प्रश्नों में तारम्यता ।

4. नुकीले प्रश्न ।

5. मानसिक स्तरानुकूल।

6. उचित गति एवं विराम ।

7. उपयुक्त उचित आवाज।

8. प्रश्नों की पुनरावृति कान होना ।

9. पर्याप्त मात्रा में प्रश्न ।

10. प्रश्नों का समान वितरण ।

11. पूरक प्रश्न ।

12. विचारोत्तेजक प्रश्न |

13. समस्यात्मक प्रश्न ।

मार्गदर्शी सिद्धान्त

1. समान्यतः प्रश्न सम्पूर्ण कक्षा को सम्बोधित किये जाए। तत्पश्चात क्षण भर आशा भरी दृष्टि विद्यार्थी पर डालें, उत्तर प्राप्त करने के लिए छात्र की ओर संकेत करें।

2. कक्षा समूह के छात्रों के मानसिक स्तरानुसार प्रश्न पूछे जाएँ।

3. पाठ पढ़ाने से पूर्व महत्त्वपूर्ण प्रश्न की तैयारी की जानी चाहिए।

4. प्रश्न पूछने एवं उत्तर निकलवाने, सुधरवाने हेतु छात्रों के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए।

5. प्रश्न निश्चित उद्देश्य से पूछे जाने चाहिए।

6. सामूहिक उत्तर स्वीकार नहीं करें।

उद्दीपन परिवर्तन कौशल

कौशल परिचय:

उद्दीपन परिवर्तन की कुशलता के अन्तर्गत ये क्रियाएं आती हैं, जिनका उपयोग अध्यापन की क्रिया में प्रस्तुतीकरण की विधियों में परिवर्तन करने के लिए किया जाता है। अध्यापन के तीन मुख्य पहलु हैं।

(1) व्यवहार का ढंग, वाणी अध्यापन की वैयक्तिक शैली।

(2) शिक्षण सामग्री और उसके माध्यम ।

(3) पाठ के समय छात्र - अध्यापक सम्बन्ध ।

इस कौशल के उपयोग से छात्रों का ध्यान अधिगम विषय वस्तु की ओर आकर्षित होता है, रूचि जागृत होती है तथा छात्र अधिक सीखने के लिए उत्प्रेरित होते हैं। छात्रों का अधिगम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सकेगा तथा विषय वस्तु रूचिप्रद लगेगी।

घटक :-


(1)  शारीरिकसंचलन ।

(2) हाव-भाव ।

(3) वाक्पद्धति में परिवर्तन ।

(4) अन्तः क्रियाशैली में परिवर्तन ।

(5) ध्यान केन्द्रित करने हेतु दिया गया विराम ।

(6) दृश्य श्रव्य क्रम में परिवर्तन ।

(7) छात्रगति ।

(8) भावकेन्द्रीकरण ।

मार्गदर्शी सिद्धान्तः-


(1) अध्यापकको स्पष्ट होना चाहिए किपाठान्तर्गत किये जाने वाली क्रियाओं के परिवर्तन का उद्देश्य क्या है ?

(2) परिवर्तन का सीधा सम्बन्ध पाठ की विषय वस्तु से बना रहे ।

(3) परिवर्तन सामान्य गति से हो जिससे पाठ में बाधा उपस्थित न हो ।

(4) यदि अध्यापक दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग करना चाहता हो तो पाठ योजना अंकित करें तथा यह भी ध्यान रखें कि परिवर्तन अधिगन परिष्कार के निमित्त प्रयास है।

दृष्टान्त (उदाहरण) कौशल

कौशल परिचय:-

छात्रों को अमूर्त विचारों अवधारणाओं का अर्थ दृष्टान्त व उदाहरण के उपयोग द्वारा सरलता पूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है। छात्रों को भी दृष्टान्त (उदाहरण) देकर निर्देशित किया जा सकता है। यह स्पष्ट करेगा कि छात्र अर्थ समझ रहा है वही सही है। दृष्टान्त (उदाहरण) में उपग़ा कहानी, वस्तुएँ प्रद्योतन सामग्री आदि सम्मिलित होते हैं, जिनके द्वारा कोई विचार सम्प्रत्यय अथवा सिद्धान्त स्पष्ट किया जा सकता है। छात्रों की जानकारी पर आधारित दृष्टान्त (उदाहरण) श्रेष्ठ माने जाते हैं।

इस कौशल के माध्यम से छात्रों के समक्ष विभिन्न नियम, सिद्धान्त अथवा सम्प्रत्यय स्पष्ट किये जा सकते हैं तथा पाठान्तर्गत छात्रों के अवबोध की जांच होती रहती है ।

घटक :-

(1) उदाहरणों की सरलता । 

(2) उदाहरणों की प्रासंगिकता ।

(3) उदाहरणों के रूचिपूर्ण होना ।

(4) उदाहरणों के लिए उपयुक्त माध्यम । 

(5) उदाहरणोंकीपर्याप्तता ।

(6) उदाहरणों की सुसंगतता ।

(7) छात्रसहयोग ।

मार्गदर्शी सिद्धान्तः-


(1) पाठ पढ़ाने के पूर्व उदाहरण निश्चित कर लिये जाने चाहिए।

(2) अध्यापन के समय छात्रों के व्यवहार तथा मौखिक सम्प्रेषण के प्रयोग द्वारा यह ज्ञात किया जाना चाहिए कि उदाहरण उपयुक्त है। 
(3) किसी नियम-सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए दृष्टान्त प्रस्तुत किये जाने चाहिए।

(4) प्रयुक्त पाठसे सम्बन्धित नियम-सम्प्रत्यय के आधार पर होना चाहिए।

श्याम पट्ट प्रयोग-कौशल

परिचय :-

श्याम पट्ट शिक्षण में उपयोगी दृश्य साधन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। श्याम पट्ट को उचित एवं सही विधि पूर्वक प्रयुक्त करने से पाठ का प्रभावी विकास होता है। पाठ को रोचक बनाने में तथा छात्रों को पाठ्यद्य वस्तु को समझने में सम्प्रभावी भूमिका प्रस्तुत करता है । श्याम पट्ट अध्यापन क्रिया का मुख्य सहायक स्रोत है।

घटक :

(1) लेखकी स्पष्टता, अक्षरों की बनावट, लेखन कार्य में एक रूपता, व्यवस्थित तरीके से लेखन कार्य सम्पन्न करना।

(2) श्याम पट्ट कार्य में स्वच्छता, सुन्दरता और विरल रेखायुक्त व्यस्थित शिरोरेखायुक्त हो। मुख्य अध्ययन बिन्दु को रेखांकित करना ।

 (3) लेखन बिन्दु का आधार तथा क्रमबद्धता युक्त हो ।

(4) उदाहरणों के लिए उपयुक्त माध्यम ।

मार्गदर्शी सिद्धान्त:-

(1) श्याम पट्ट का कार्य ऐसा हो कि जिसे सरलता से सम्पूर्ण कक्षा देख सके ।

(2) श्यामपट्ट कार्य के पूर्व श्याम पट्ट स्वच्छ हो और कार्योपरान्त भी श्याम पट्ट साफ कर लेना चाहिए।

(3) श्याम पट्ट के कार्य के समय अध्यापक को अपनी स्थिति का पूर्ण ध्यान रखना चाहिये, जिसमें अध्यापक की दृष्टि श्याम पट्ट साथ - साथ छात्र पर भी हो और छात्र श्याम पट्ट कार्य का अच्छी तरह अवलोकन कर सके।

(4) श्यामपट्ट कार्य के समय उचित निर्देशों का उपयोग आवश्यक है।

(5) श्यामपट्ट कार्य के समय खड़िया का उपयोग विधिवत् पर्याप्त दबाकर करना चाहिये ताकि लेखन स्पष्ट होकर पढ़ने योग्य बने ।

(6) श्याम पट्ट कार्य में वर्तनी की अशुद्धि का पूर्ण ध्यान रखना चाहिये ।

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Kkr Kishan Regar

Dear friends, I am Kkr Kishan Regar, an enthusiast in the field of education and technology. I constantly explore numerous books and various websites to enhance my knowledge in these domains. Through this blog, I share informative posts on education, technological advancements, study materials, notes, and the latest news. I sincerely hope that you find my posts valuable and enjoyable. Best regards, Kkr Kishan Regar/ Education : B.A., B.Ed., M.A.Ed., M.S.W., M.A. in HINDI, P.G.D.C.A.

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