राजस्थान में 1857 की क्रांति

राजस्थान में 1857 की क्रांति

- राजस्थान की रियासतों ने 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि करके बाह्य आक्रमणों के प्रति निश्चिंत हो गए लेकिन कंपनी द्वारा उन संधि की शर्तों के अनुसार आंतरिक मामलों में भी हस्तक्षेप किया जाने लगा।

राजस्थान का प्रथम AGG कौन था |

- राजस्थान का प्रथम एजेंट टू गवर्नर जनरल लॉकेट को बनाया गया।

- 1832 ई. में ए. जी. जी. का मुख्यालय अजमेर में स्थापित किया गया।

- 1845 में ए. जी. जी. का मुख्यालय ग्रीष्मकाल में माउण्ट आबू  (सिरोही)  में स्थापित किया गया।

- राजस्थान में लॉर्ड डलहौजी की हड़पनीति / गोदनिषेध नीति / डाक्ट्रिन ऑफ लेप्स नीति द्वारा हड़पा गया प्रथम क्षेत्र ब्यावर तथा हड़पी गई प्रथम रियासत उदयपुर थी।

- चर्बी लगे कारतूसों का प्रयोग 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण माना जाता है।

- कैनिंग ने 1857 में ब्राउन बैस रायफल की जगह एनफील्ड रायफल का प्रयोग शुरू करवाया। इसमें कारतूस लगाने के लिए दाँत से चर्बी का खोल उतारना पड़ता था। इस कारतूस में गाय व सूअर दोनों की चर्बी का प्रयोग हुआ था। अत: हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों के सैनिकों में असंतोष उत्पन्न हुआ और 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई।

राजस्थान में 1857 की क्रांति Questions | 

- राजस्थान में 1857 की क्रांति में फाँसी पर चढ़ने वाला प्रथम क्रांतिकारी बीकानेर निवासी अमरचंद बांठिया था, जिसे 22 जून, 1857 को ग्वालियर में पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गई।

- 1857 की क्रांति का भामाशाह ‘अमरचंद बांठिया’ को कहते हैं तथा इसे राजस्थान का मंगल पांडे भी कहते हैं।

- राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी अजमेर में गुरुवार के दिन हुई।

- 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों का शस्त्रागार अजमेर में था, वहीं ए.जी.जी. का मुख्यालय माउण्ट आबू (सिरोही) में था।

- उस समय ए.जी.जी. जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस था।


राजस्थान में 1857 की क्रांति में मेवाड़ के योगदान का वर्णन कीजिए | 

- 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों की चार प्रमुख एजेंसियाँ कार्यरत थी-

क्र. सं.

नाम

केन्द्र

अंग्रेज अधिकारी

1.

मेवाड़ राजपूताना स्टेट एजेंसी

उदयपुर

मेजर शॉवर्स

2.

राजपूताना स्टेट एजेंसी

कोटा

मेजर बर्टन

3.

पश्चिम राजपूताना स्टेट एजेंसी

जोधपुर

मैक मोसन

4.

जयपुर राजपूताना स्टेट एजेंसी

जयपुर

कर्नल ईडन

1857 की क्रांति और राजस्थान PDF 

- राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय 6 सैनिक छावनियाँ थी-

 

क्र. सं.

छावनियाँ

रियासत

सैनिक टुकड़ियाँ

1.

खैरवाड़ा

उदयपुर

भील रेजीमेंट

2.

नीमच

कोटा

कोटा बटालियन

3.

एरिनपुरा

पाली

जोधपुर लीजन

4.

ब्यावर

अजमेर

मेर रेजीमेंट

5.

नसीराबाद

अजमेर

बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री

6.

देवली

टोंक

कोटा रेजीमेंट

- इनमें से 2 सैनिक छावनियाँ खैरवाड़ा और ब्यावर ने 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया।

- क्रांति के समय इन छावनियों में पाँच हजार सैनिक थे, लेकिन सभी भारतीय सैनिक थे।

नसीराबाद में विद्रोह

- राजस्थान में क्रांति की शुरुआत नसीराबाद छावनी से हुई।

- नसीराबाद छावनी अजमेर में स्थित है। इसका निर्माण 25 जून, 1818 ई. में किया गया।

- 15वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री के एक सैनिक बख्तावर सिंह द्वारा एक अंग्रेज अधिकारी प्रिचार्ड से पूछा गया कि तुम्हें हमारे ऊपर विश्वास नहीं है, अंग्रेज अधिकारी से उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, अत: 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी में दोपहर 3 बजे के लगभग विद्रोह हो गया।

- नसीराबाद में स्पोटिश वुड व कर्नल न्यूबरी नामक दो अंग्रेज अधिकारियों को काटकर टुकड़े कर दिए गए।

- नसीराबाद से क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हुए।

राजस्थान की सैनिक छावनी | 

नीमच में विद्रोह

- 2 जून, 1857 को कर्नल एबॉट ने हिंदू सिपाहियों को गंगा और मुस्लिम सिपाहियों को कुरान की शपथ दिलाई कि वे ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहेंगे। एबॉट ने स्वयं भी बाइबिल को हाथ में लेकर शपथ ली, जिससे वे सिपाहियों का समर्थन प्राप्त कर सके, इसी शपथ के समय एक सैनिक मोहम्मद अली बेग ने अंग्रेजों से कहा कि- अंग्रेजों ने स्वयं अपनी शपथ का पालन (वफादारी) नहीं किया है, क्या आपने अवध का अपहरण नहीं किया? इसलिए भारतीय भी अपनी शपथ का पालन करने को बाध्य नहीं हैं।

- 3 जून, 1857 ई. को रात्रि के 11 बजे मो. अली बेग व हीरालाल के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।

- नीमच छावनी, मेजर शावर्स के नियंत्रण में थी।

- नीमच छावनी को नष्ट-भ्रष्ट कर क्रांतिकारी सैनिक वहाँ से चित्तौड़गढ, हम्मीरगढ़ व बनेड़ा के सरकारी बंगलों को लूटते हुए शाहपुरा पहुँचे, वहाँ के शासक लक्ष्मणसिंह ने अंग्रेजों के लिए किले का दरवाजा नहीं खोला। वहाँ से शॉवर्स जहाजपुर होता हुआ वापस नीमच गया और 8 जून, 1857 ई. को नीमच पर वापस ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया।

-  नीमच छावनी के क्रांतिकारियों ने डूंगला (चित्तौड़गढ) में रूगाराम किसान के घर 40 अंग्रेज अधिकारियों को बंदी बनाकर रखा। मेजर शावर्स के कहने पर उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह ने इन 40 अंग्रेज अधिकारियों को यहाँ से निकालकर पिछोला झील के किनारे जगमंदिर नामक मन्दिर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया। यहाँ इन अंग्रेज अधिकारियों की देखभाल गोकुल चन्द मेहता द्वारा की गई।

एरिनपुरा में विद्रोह

|एरिनपुरा छावनी कहा है | 

- एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत 21 अगस्त, 1857 ई. को शीतल प्रसाद, तिलकराम व मोती खाँ के नेतृत्व में हुई।

- एरिनपुरा में ए.जी.जी. लॉरेन्स के पुत्र एलेक्जेण्डर की हत्या कर दी गई। यहाँ से क्रांतिकारी ईडर( डूँगरपुर ) के शिवनाथ के नेतृत्व में 'चलो दिल्ली, मारो फिरंगी' का नारा देते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुए। रास्ते में रेवाड़ी (हरियाणा) पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया, परंतु 16 नवम्बर, 1857 ई. को नारनोल में अंग्रेज अधिकारी ‘गराड़’ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में ‘गराड़’ मारा गया लेकिन शिवनाथ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की हार हुई।

राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब हुई 

आउवा में विद्रोह

- आउवा में क्रांति का नेतृत्व कुशालसिंह चम्पावत ने किया।

- आउवा, पाली में है जो कि क्रांति के समय मारवाड़ का प्रमुख केन्द्र था।

- आउवा के क्रांतिकारियों की कुलदेवी सुगाली माता है। जिसके 10 सिर व 54 हाथ है।

- एरिनपुरा के सैनिक दिल्ली जाते समय बीच में खैरवा (पाली) पहुँचे, जहाँ आउवा परगने के ठाकुर कुशालसिंह चंपावत ने क्रांतिकारियों का पूर्ण सहयोग किया।

- आस-पास के परगनों को भी अपने साथ मिलाया जो निम्न है - आसोप, आलनियावास, लांबिया, गूलर, रूढ़ावास इस प्रकार आउवा में 6000 सैनिक इकट्ठे हो गए।

- ए.जी.जी. लॉरेन्स के कहने पर क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने अपने किलेदार औनाड़सिंह पंवार और फौजदार लोढ़ा के नेतृत्व में 10000 सैनिक एवं घुड़सवार तथा 12 तोपें आउवा रवाना की। इस फौज के साथ लेफ्टिनेंट हीथकोट भी सम्मिलित था।

 

- 8 सितम्बर, 1857 ई. को ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत कैप्टन हीथकोट व तख्तसिंह के बीच बिथौड़ा का युद्ध (पाली) में हुआ इस युद्ध में कुशालसिंह चम्पावत विजयी हुआ।

 

- बिथौड़ा युद्ध में पराजित होकर कैप्टन हीथकोट भाग गया व तख्तसिंह का सेनापति औनाड़सिंह मारा गया। बिथौड़ा युद्ध के पश्चात् कुशालसिंह चम्पावत को कोठारिया (भीलवाड़ा) के जोधसिंह ने शरण दी।

 

- 18 सितम्बर, 1857 ई. को क्रांतिकारियों तथा जोधपुर के गवर्नर मैक मोसन के बीच चेलावास का युद्ध (पाली) हुआ। चेलावास युद्ध में क्रांतिकारियों ने मेक मोसन का सिर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया।

 

- चेलावास युद्ध ‘गोरों-कालों’ का युद्ध भी कहलाता है। आउवा को कर्नल होम्स ने नियंत्रण में लिया तथा यहाँ से होम्स, सुगाली माता की मूर्ति, 6 पीतल की तोपे व 7 लोहे की तोपों को लेकर अजमेर चला गया।

 

- वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति पाली के बांगड़ संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है।

 

- ऊँट पालक (रेबारी) समुदाय के लोग मैक मोसन की कब्र पर पूजा अर्चना करते हैं।

 

- ए.जी.जी. लॉरेंस ने पालनपुर व नसीराबाद से सेना बुलाकर गवर्नर लॉर्ड कैनिंग व कर्नल हॉप्स के नेतृत्व में 20 जनवरी, 1858 ई. को सेना भेजी जिसने कुशालसिंह व एरिनपुरा के सैनिकों का 24 जनवरी, 1858 ई. को दमन किया। युद्ध में विजय की उम्मीद न रहने पर कुशालसिंह ने किले की सुरक्षा का भार लांबिया (पाली) के ठाकुर पृथ्वीसिंह को सौंपकर मेवाड़ में सलूम्बर की ओर चला गया।

 

- आउवा से कुशालसिंह ने सलूम्बर (उदयपुर) के रावत केसरी तथा कोठारिया के रावत जोधसिंह के घर जाकर शरण ली।

 

- 1857 की क्रांति के दो विजय स्तंभ पाली में स्थित है।

 

- कुशाल सिंह चम्पावत ने अगस्त, 1860 ई. में नीमच में समर्पण कर दिया।

 

- आउवा में विद्रोह की जाँच के लिए टेलर आयोग का गठन किया गया।

 

- टेलर आयोग ने इसकी जाँच की तथा नवम्बर, 1860 ई. में कुशालसिंह चम्पावत को रिहा कर दिया लेकिन महाराजा जोधपुर ने उनकी जागीर का  एक बड़ा भाग जब्त कर लिया।

 

- ठाकुर कुशालसिंह चंपावत की 1864 ई.को उदयपुर में मृत्यु हो गई।

 

कोटा में विद्रोह

 

- यहाँ क्रांति की शुरुआत 15 अक्टूबर, 1857 ई. को लाला जयदयाल व मेहराब खां के द्वारा की गई।

 

- राजस्थान में सबसे ज्यादा सुनियोजित व सुनियंत्रित क्रांति कोटा में हुई।

 

- कोटा में लाला जयदयाल व मेहराब खां के समर्थन में नारायण व भवानी पलटन के द्वारा क्रांति की गई। नारायण व भवानी पलटन के द्वारा कैप्टन बर्टन का सिर काटकर पूरे कोटा शहर में घुमाया गया।

 

- क्रांतिकारियों ने कोटा के राजा रामसिंह से अंग्रेज अधिकारियों को सौंपने को कहा। रामसिंह ने डरकर अंग्रेज अधिकारियों को विद्रोहियों को सौंप दिया तो विद्रोहियों ने पॉलिटिकल एजेंट बर्टन के दो पुत्रों फ्रेंक तथा आर्थर व डॉ. सेडलर व कांटम को मार डाला।

 

- कोटा के शासक महाराव रामसिंह-द्वितीय को क्रांतिकारियों के द्वारा कोटा दुर्ग में कैद कर दिया गया जिसे करौली के शासक मदनपाल ने रिहा करवाया।अंग्रेजों के द्वारा मदनपाल को Grand Comnander State of India की उपाधि दी गई तथा तोप सलामी की संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई।

 

- कोटा के महाराव रामसिंह-द्वितीय के द्वारा अंग्रेजों का सही समय पर साथ न देने के कारण तोप सलामी की संख्या 17 से घटाकर 13 कर दी गई।

 

कोटा महाराव ने मथुराधीश मंदिर के महंत गुसाई जी महाराज को मध्यस्थ बना विद्रोहियों के साथ सुलह के प्रयास किए।

 

- 30 मार्च, 1858 ई. में मेजर एच.जी.रॉबर्ट्स ने करौली के शासक मदनपाल ने गैंता के ठाकुर चतुर्भुज सिंह व पीपलदा के ठाकुर अजीत सिंह के सहयोग से कोटा शहर में विद्रोह को दबाया। कोटा शहर पर जनरल रॉबर्ट का अधिकार हो जाने पर कोटा में क्रांतिकारियों का संघर्ष समाप्त हो गया।

 

धौलपुर में विद्रोह

 

- शुरुआत 27 अक्टूबर, 1857 ई. को गुर्जर देवा के समर्थन में हुई।

 

धौलपुर राजस्थान की एकमात्र रियासत थी, जहाँ विद्रोह बाहर के क्रांतिकारियों (ग्वालियर, इंदौर) द्वारा किया गया तथा इस विद्रोह को बाहर के सैनिकों (पटियाला) के द्वारा दबाया गया।

 

- धौलपुर में ग्वालियर व इंदौर के विद्रोही सैनिकों ने राव रामचंद्र व हीरालाल के नेतृत्व में स्थानीय सैनिकों की सहायता से विद्रोह कर राज्य पर अपना अधिकार कर लिया।

 

- धौलपुर के शासक भगवंत सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया।

 

टोंक में विद्रोह

 

- टोंक राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत थी, उस समय टोंक का शासक वजीरूद्दौला खां था।

 

- टोंक के नासिर मोहम्मद ने तात्या टोपे के साथ मिलकर टोंक पर अधिकार कर लिया।

 

- मोहम्मद मुजीब ने अपने नाटक 'आजमाइस' में लिखा है कि 1857 की क्रांति में टोंक की स्त्रियों ने भी भाग लिया था पुष्ट प्रमाण के अभाव में इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जा सका।

 

तात्या टोपे तथा राजस्थान

 

- तात्या टोपे के बचपन का नाम 'रामचन्द्र पाण्डुरंग' था।

 

- तात्या टोपे का जन्म येवला, अहमदनगर (महाराष्ट्र) में हुआ।

 

- तात्या टोपे के पिता का नाम पाण्डुरंग भट्ट व माता का नाम रूकमा देवी था।

 

- राजस्थान में तात्या टोपे दो बार माण्डलगढ़, (भीलवाड़ा) व बाँसवाड़ा में आया था।

 

- 9 अगस्त, 1858 ई. को भीलवाड़ा में कोठारी नदी के किनारे 'कुंवाड़ा' नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें तात्या टोपे को पीछे हटना पड़ा और बूँदी गया, क्योंकि बूँदी का शासक रामसिंह तात्या टोपे की सहायता करना चाहता था लेकिन हॉम्स की सेना पीछा कर रही थी अत: उसने सहयोग न कर बूँदी शहर के किवाड़ बंद कर दिए।

 

- राजस्थान में दूसरी बार तात्या टोपे दिसम्बर, 1858 ई. को आया और उसने बाँसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह को पराजित कर बाँसवाड़ा राज्य पर अपना अधिकार किया लेकिन अंग्रेज अधिकारी लिन माउथ व मेजर रॉक के नेतृत्व वाली सेना ने तात्या को पराजित कर दिया।

 

- जनवरी, 1859 ई. को तात्या सीकर पहुँचा जहाँ मानसिंह नरूका के विश्वासघात के कारण नरवर के जंगलों से 7 अप्रैल, 1859 ई. को गिरफ्तार किया गया।

 

तात्या टोपे जैसलमेर के अलावा राजपूताना राज्य की प्रत्येक रियासत में घूमा।

 

- शंकरदान सामौर ने तात्या टोपे के लिए निम्न पंक्तियाँ लिखी है-

 

  “जठै गियो जग जीतियो, खटके बिण रण खेत।

 

  तगड़ो लडियो तांतियो, हिंदथान रे हेत।।"

 

- तात्या टोपे को 18 अप्रैल, 1859 ई. में क्षिप्रानदी पर फाँसी दी गई।

 

बीकानेर

 

- 1857 की क्रांति के दौरान बीकानेर का शासक सरदार सिंह था, उसने अपने पाँच हजार सेना के साथ राजस्थान की सीमा से बाहर निकलकर विद्रोह दमन में जनरल वॉन कॉर्टलैंड का सहयोग किया।

 

- अंग्रेजों ने सरदार सिंह को टिब्बी परगने के 41 गाँव उपहार में दिए।

 

अजमेर में विद्रोह

 

- अजमेर के केन्द्रीय कारागार में 9 अगस्त, 1857 ई. को कैदियों ने विद्रोह कर दिया तथा 50 कैदी जेल से भाग गए।

 

- 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश सरकार के शस्त्रागार और गोला-बारूद का भंडार अजमेर में था।

 

भरतपुर में विद्रोह

 

- भरतपुर में क्रांति का नेतृत्व 31 मई, 1857 ई. को गुर्जर-मेवों ने किया।

 

क्रांति के समय भरतपुर का राजा जसवंत सिंह नाबालिग था इसलिए यहाँ की शासन व्यवस्था मेजर मॉरीसन के हाथ में थी लेकिन मॉरीसन विद्रोह के दौरान भागकर आगरा चला गया।

 

तिथ्यानुसार विद्रोह का क्रम

 

क्रांति की तिथि

स्थान

28 मई, 1857

नसीराबाद में विद्रोह

31 मई,1857

भरतपुर राज्य में विद्रोह

3 जून, 1857

नीमच में विद्रोह

10 जून, 1857

देवली छावनी में विद्रोह

14 जून,1857

टोंक राज्य में विद्रोह

11 जुलाई,1857

अलवर राज्य में विद्रोह

9 अगस्त, 1857

अजमेर के केंद्रीय कारागार में विद्रोह

21 अगस्त,1857

एरिनपुरा के सैनिकों का विद्रोह

23 अगस्त,1857

जोधपुरा लीजियन में विद्रोह

8 सितम्बर, 1857

बिठौड़ा / बिथौड़ा का युद्ध

18 सितम्बर, 1857

चेलावास का युद्ध

27 अक्टूबर, 1857

धौलपुर राज्य में विद्रोह

15 अक्टूबर, 1857

कोटा में विद्रोह


1857 की क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व -

अमरचंद बांठिया-

- ये मूलत: बीकानेर के निवासी थे तथा ग्वालियर में व्यापार करते थे। इन्हें ‘ग्वालियर का नगर सेठ’ और ‘कोषाध्यक्ष’ का सम्मान प्राप्त हुआ।

 

- 1857 की क्रांति के समय अमरचंद बांठिया ने रानी लक्ष्मी बाई की आर्थिक सहायता की थी। अत: इनको ग्वालियर में सराफा बाजार में 22 जून, 1858 ई.  को फाँसी दे दी गई। इन्हें राजस्थान का प्रथम शहीद और राजस्थान का मंगलपांडे कहा जाता है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की आर्थिक सहायता करने के कारण इनको इस क्रांति का भामाशाह भी कहा गया।

 

डूंगरजी – जवाहर जी  (काका-भतीजा)

 

- यह मूलत: सीकर के बठोठ-पटोदा के निवासी थे व शेखावाटी रेजीमेंट में रिसालहदार के पद पर कार्यरत थे।

 

- इन्होंने 1875 ई. में नसीराबाद छावनी को लूटा था। शेखावाटी  रेजीमेंट का मुख्यालय झुंझुनूँ में था। अंग्रेजों ने डूंगरजी को बंदी बनाकर आगरा दुर्ग में रखा था।

 

- जवाहरजी ने लोठिया जाट, करणिया मीणा व साँवता नाई आदि की सहायता से डूंगरजी को मुक्त करवाया।

 

- बीकानेर रियासत ने जवाहरजी को संरक्षण दिया।

 

मेहराब खान (कोटा) –

 

- कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार मेहराब खान का जन्म तत्कालीन कोटा रियासत के करौली में 11 मई, 1815 ई. को हुआ। इन्होंने कोटा में एजेंसी हाउस पर अक्टूबर, 1857 में आक्रमण किया। इस आक्रमण में राजनीतिक एजेंट मेजर बर्टन, उनके दो पुत्र और कई सारे लोग मारे गए तथा इन्होंने लाला जयदयाल भटनागर के साथ कोटा राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया।

 

- 1859 ई. में अंग्रेजों के हाथों पकड़े गए और इन्हें मृत्युदंड दे दिया गया था।

 

रावत जोधसिंह (कोठारिया) –

 

- मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह ने 1857 ई. की क्रांति के समय क्रांतिकारियों का साथ दिया।

 

रावत जोधसिंह ने आउवा के ठाकुर कुशालसिंह को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता दी

 

- जोधसिंह ने अगस्त, 1858 ई. में तात्या टोपे की रसद आदि से सहायता की। विद्रोही नेता नाना साहब जब बिठुर से भाग कर कोठारिया की ओर आया, तब रावत जोधसिंह ने उसे शरण दी तथा उसकी हरसंभव सहायता की।

 

लाला जयदयाल भटनागर (कोटा)-

 

- इनका जन्म भरतपुर रियासत के कामां नामक स्थान पर हुआ।

 

- ये कोटा महाराव के दरबार में वकील थे। इन्होंने 1858 ई. में अंग्रेजी आक्रमण के विरुद्ध जनता में विप्लवकारी टुकड़ियों का नेतृत्व किया। कोटा के महाराव ने इनकी गिरफ्तारी के लिए 10 हजार रुपये का इनाम की घोषणा की।

 

- 17 सितम्बर, 1860 में इस क्रांतिकारी नेता को कोटा के एजेंसी हाउस में फाँसी दी गई।

 

- लाला जयदयाल, कोटा में 1857 ई. की क्रांति का मुख्य संगठनकर्ता था।

 

 

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