कोठारी कमीशन की संस्तुतियाँ
भारतीय सरकार ने शिक्षा के समग्र पक्षों पर गहराई से विचार के लिए आयोग का गठन सन् 1964 में किया। इस आयोग के अध्यक्ष प्रो. डी. एस. कोठारी थे। इसलिए उन्हीं के नाम पर इस आयोग का नाम कोठारी कमीशन पड़ा। इस आयोग ने शिक्षा की उन्नति के संबंध में निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए
कोठारी कमीशन || kothari kamisan |
1. प्राथमिक स्तर के बालकों को निःशुल्क पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध की जाएं।
2. प्रतिभाशाली छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाएं।
3. विकलांग बालकों के लिए प्रत्येक जिले में पृथक विद्यालय खोले जाएं।
4. अध्यापकों के वेतन, प्रशिक्षण तथा स्थिति में सुधार किया जाएं। रहा
5.स्त्री तथा पुरुषों की शिक्षा के अन्तर को दूर किया जाएं।
6. उच्च स्तर पर बुक-बैंक की व्यवस्था की जाएं।
7.पंचम पंचवर्षीय योजना पूरी होने पर निम्न प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा को निःशुल्क बनाया जाएं।
8.पिछड़े वर्ग तथा आदिवासियों की शिक्षा में विस्तार करने के लिए उन्हें छात्रावास, छात्रवृत्ति आदि की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएं।
9. प्रत्येक विद्यालय में 'राज्य विद्यालय शिक्षा परिषद्' की स्थापना की जाएं।
10. शिक्षा मंत्रालय 'राष्ट्रीय विद्यालय शिक्षा परिषद्' की स्थापना की जाएं।
11. छात्र व अध्यापकों के लिए सार्थक और विशेष पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाएं।
12. सरकारी विद्यालयों के समान गैर सरकारी विद्यालयों की स्थिति में सुधार किया जाएं।
13. स्त्रियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किए जाएं।
14. विद्यालय में प्रचलित पाठ्यक्रम के दोषों को समाप्त किया जाएं।
कोठारी कमीशन के गुण
1. अधिक से अधिक लोगों से शिक्षा ग्रहण करने के लिए आग्रह करना।
2. नवीन प्रयोगों एवं शोध कार्यों को प्रोत्साहन देना।
3. शिक्षा के पुनर्संगठन द्वारा उसे उपयोगी बनाये जाने के व्यावहारिक प्रतिरूप का सुझाव प्राप्त होना।
4.शिक्षा का सर्वांगीण विकास।
5. शिक्षा पर अधिक से अधिक धन व्यय किए जाने का सुझाव।
6. शिक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन।
7. विद्यार्थियों को अधिकाधिक सहायता प्राप्त होना।
8. प्राथमिक से उच्च शिक्षा का माध्यम प्रान्तीय भाषायें (यदि हो सके तो) अन्यथा नहीं।
9. शिक्षा के राष्ट्रीय उद्देश्य पर बल।
10. प्रौढ़ शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन।
11. विज्ञान एवं कृषि-शिक्षा के विकास पर बल।
12. शिक्षा का जीवन से संबंधित होना है-जिसके कारण इस आयोग की प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता।
कोठारी आयोग के दोष
1. इस आयोग को पूर्णरूपेण क्रियान्वित रूप देने से गाँधी जी की बेसिक शिक्षा का दाह-संस्कार हो जायेगा।
2. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर बल देने के कारण बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास रूक जाना।
3. अंग्रेजी पर बल देने से भारतीय भाषाओं का विकास अवरूद्ध हो जाना।
4. संस्कृति के अध्ययन के अभाव में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का लोप हो जाना।
5. प्रारंभिक शिक्षा के संबंध में स्पष्ट विचारों का अभाव।
6. भारत को शिक्षा में कोई रूचि न रखने वाले विदेशी व्यक्तियों को आयोग का सदस्य नियुक्त करना।
7. भारतीय शिक्षा का विभेदीकरण। 8.शिक्षकों को अधिक सुरक्षा देने में असफल। 9. शिक्षा में श्रम-विभाजन के पक्ष को अधूरा छोड़ना।
10. भारत के समस्त मुख्यमंत्रियों द्वारा देवनागरी लिपि को सामान्य लिपि स्वीकार किए जाने की उपेक्षा।
वास्तव में आयोग पर लगाये गए ये समस्त दोषारोपण पूर्ण सत्य नहीं है। यह बात दूसरी है कि धनाभाव नेताओं की मूर्खता, प्रशासनिक कठिनाइयों आदि के कारण अभी भारत में इस आयोग के सभी एवं सिफारिशों को क्रियान्वित रूप न दिया जा सका।
कोठारी कमीशन द्वारा उच्च शिक्षा में छात्रों की अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए सुझाव
कोठारी कमीशन में छात्र अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान करने के लिए बहुत ही सुलझे हुए सुझाव दिए है जो निम्न प्रकार हैं
1. शिक्षा व प्रशासन से संबंधित सब कमियों को दूर किया जाना चाहिए।
2. शिक्षा के सब स्तरों व संस्थाओं में सुधार किया जाना चाहिए।
3. छात्र-संघ एवं छात्रों को सभी समितियों में शिक्षक अवश्य होने चाहिए।
4. उच्च शिक्षा की सब संस्थाओं द्वारा छात्रों को निर्देशन व परामर्श दिए जाने का कार्य किया जाना चाहिए।
5. छात्रों में स्व-अनुशासन व सकारात्मक अनुशासन की भावनाओं का विकास किया जाना चाहिए।
6. छात्रों एवं शिक्षकों में पारस्परिक प्रेम एवं सम्मान पर आधारित एक-दूसरे का साथी होने की भावना का विकास किया जाना चाहिए।
7.सम्पूर्ण विश्वविद्यालय जीवन को एक माना जाना चाहिए। अत: छात्रों, शिक्षकों एवं प्रशासन के मध्य विभेदीकरण के सब प्रयासों का अन्त किया जाना चाहिए।
8. प्रत्येक विश्वविद्यालय की सभा एवं साहित्यिक परिषद् के छात्रों के प्रतिनिधि होने चाहिए, ताकि वे अपने दायित्वों को समझ सकें और आवश्यकता पड़ने पर अपनी मांगों को प्रस्तुत कर सके।
इन सुझावों का सतर्कता से अध्ययन करने के बाद हम कह सकते है कि अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान करने के लिए निम्न 8 उपाय विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो सकते है यथा
(i) उच्च शिक्षा के दोषों का विवरण,
(ii) नैतिक शिक्षा की व्यवस्था,
(iii) निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था,
(iv) छात्र-क्रियाओं एवं छात्र-कल्याण-सेवाओं की व्यवस्था,
(v) अतिरिक्त शैक्षिक सुविधाओं का आयोजन,
(vi) छात्रों एवं शिक्षकों के निकट सम्पर्क,
(vii) छात्रों में स्व-अनुशासन की भावना का विकास, और
(viii) विश्वविद्यालय की भाषाओं व साहित्यिक परिषदों में छात्रों का प्रतिनिधित्व।