किशोरावस्था के शारीरिक व संज्ञानात्मक विशेषताएँ

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किशोरावस्था के शारीरिक संज्ञानात्मक विशेषताएँ

किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक रिवर्तन 
संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य है
किशोरों में संज्ञानात्मक विकास की मुख्य विशेषताएँ  
किशोरावस्था के शारीरिक व संज्ञानात्मक विशेषताएँ
किशोरावस्था के शारीरिक व संज्ञानात्मक विशेषताएँ

किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence)

बाल्यावस्था के उपरान्त किशोरावस्था प्रारम्भ होती हैकिशोरावस्था, बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच का काल है जिसमें प्रजनन क्षमता का विकास होता हैयह 18 वर्ष की आयु तक रहती हैकिशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता हैकिशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं 


1.लम्बाई (Length)-

किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं की लम्बाई बहुत तीव्र गति से बढ़ती हैबालिकाएँ प्रायः 16 वर्ष की आयु तक तथा बालक लगभग 18 वर्ष की आयु तक अपनी अधिकतम लम्बाई प्राप्त कर लेते हैंकिशोरावस्था में बालकों की लम्बाई बालिकाओं से अधिक रहती हैअट्ठारह वर्ष की आयु का बालक इसी आयु की बालिका से लगभग 10 से.मी. अधिक लम्बा होता है। 


2. भार (Weight)

किशोरावस्था में भार में काफी वृद्धि होती हैबालकों का भार बालिकाओं के भार से अधिक बढ़ता हैइस अवस्था के अंत में बालकों का भार बालिकाओं के भार की तुलना में लगभग 10-11 किग्रा. अधिक होता है। किशोरावस्था के विभिन्न वर्षों में बालक तथा बालिकाओं का औसत भार निम्नांकित तालिका में दर्शाया गया है 

किशोरावस्था के शारीरिक व संज्ञानात्मक विशेषताएँ


3.सिर तथा मस्तिष्क (Head and Brain)

किशोरावस्था में सिर तथा मस्तिष्क का विकास जारी रहता है, परन्तु इसकी गति काफी मंद हो जाती हैलगभग 16 वर्ष की आयु तक सिर तथा मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता हैमस्तिष्क का भार प्रायः 1200 ग्रा.से लेकर 1400 ग्राम के बीच होता है। 


4. हड्डियाँ (Bones)-

किशोरावस्था में हड्डियों के दृढीकरण अर्थात् अस्थिकरण (Osscification) की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती हैजिसके परिणाम स्वरूप अस्थियों का लचीलापन समाप्त हो जाता है तथा वे दृढ़ हो जाती हैंकिशोरावस्था में हड्डियों की संख्या कम होने लगती हैअस्थिपंजर की कुछ हड्डियाँ आपस में मिलकर एक हो जाती हैंप्रौढ़ व्यक्ति में केवल 206 हड्डियाँ होती हैं। 


5. दाँत (Teeth)

किशोरावस्था में प्रवेश करने से पूर्व बालक तथा बालिकाओं के लगभग 27-28 स्थायी दाँत निकल जाते हैंप्रज्ञा दन्त सबसे अन्त में निकलते हैंप्रज्ञादन्त (Wisdom Teeth) प्रायः किशोरावस्था के अन्तिम वर्षों में अथवा प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भिक वर्षों निकलते हैंकुछ व्यक्तियों में प्रज्ञादत नहीं निकलते हैं। 


6. माँस पेशियाँ (Muscles)-

किशोरावस्था में माँसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता हैकिशोरावस्था की समाप्ति पर माँसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का लगभग 45% हो जाता हैमाँसपेशियों के गठन में भी दृढ़ता जाती है। 


7.अन्य अंग (Other Organs)-

किशोरावस्था के अन्त तक बालक तथा बालिकाओं की सभी ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक, त्वचा तथा जिह्वा) तथा कमेन्द्रियों (हाथ, पैर, मुख) का पूर्ण विकास हो जाता हैवे शारीरिक दृष्टि से परिपक्व हो जाते हैंशरीर के सभी अंग पुष्ट तथा मुडौल दिखाई देते हैंकिशोरों के कंधे चौड़े हो जाते हैं एवं मुख पर दाढी तथा मूंछ आने लगती हैंकिशोरियों के वक्षस्थल तथा कूल्हों में परिवर्तन आने लगता हैकिशोर तथा किशोरियों के प्रजनन अंगों का पूर्ण विकास हो जाता हैलगभग 14-15 वर्ष की आयु में किशोरियों में मासिक धर्म (Mensus) प्रारम्भ हो जाता हैथॉयरायड ग्रंथि के सक्रिय हो जाने के कारण किशोरों की आवाज में भारीपन जाता है, जबकि किशोरियों की आवाज में कोमलता तथा मृदुलता जाती हैहृदय की धड़कन की गति में निरन्तर कमी आती जाती हैप्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते समय व्यक्ति का हृदय एक मिनट में लगभग 72 बार धड़कता है। 


संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development)

संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य बालक या व्यक्ति की संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करना, उन पर चिन्तन करना तथा क्रमिक रूप से उनमें काँट-छाँट कर इस लायक बना देना है कि उनका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में आने वाली मस्याओं का समाधान करने के लिए किया जा सकेइस प्रकार संज्ञानात्मक विकास का सम्बन्ध बालकों के बौद्धिक विकास से हैइस विकास की प्रक्रिया में संवेदन (Sensation),


प्रत्यक्षीकरण (Perception), प्रतिभा (Imagery), धारण (Retention), चिन्तन (Thinking), तर्कणा (Reasoning) प्रत्यास्मरण (Recall), समस्या समाधान (Problem Solving) आदि मानसिक प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। 


किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development in Adolescene)-

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास का दायरा और अधिक विस्तृत होता चला जाता हैइसमें मानसिक योग्यताएँ अधिक स्थिर हो जाती हैंकिशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास बहुत शीघ्र और अधिक मात्रा में होती हैइस अवस्था में बुद्धि अपने विकास की चरम सीमा पर होती हैकिशोरावस्था की अवधि में संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-


(1)अमूर्त चिन्तन (Abstract Thinking)-

इस अवधि में किशोर अमूर्त चिन्तन कर सकता हैबाल्यकाल की चंचलता लगभग समाप्त हो जाती है। 


(2) कल्पनाशक्ति का विकास (Development of Imagination)-

इस अवधि के दौरान कल्पना शक्ति का व्यापक विस्तार होता है और इसी विकास के आधार पर वह अपनी अन्य आन्तरिक शक्तियों का विकास करने में सक्षम होता हैलेखक, कवि, दार्शनिक तथा संगीतकार इसी अवस्था का परिणाम होता हैकिशोर किसी भी बात को लेकर काल्पनिक संसार में जा सकता है। 


(3) ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता (Capacity to Concentrate)-

इस अवस्था में किशोर किसी वस्तु या विषय के प्रति बाल्यकाल की अपेक्षा अपना ध्यान अधिक केन्द्रित करने की क्षमता रखता हैतः किशोरों में ध्यान-विस्तार (Span of attention) की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। 


(4) स्थाई स्मृति का विकास (Development of Permanent Memory)

किशोरावस्था में विकसित हुई स्मृति स्थाई होती हैरटन स्मृति का स्थान स्थाई स्मृति धीरे-धीरे लेती रहती है। 


(5)तर्क-शक्ति का विकास (Developmentof Logic)-

किशोरावस्था में बालक जल्दी से किसी के साथ सहमत नहीं होतेइसका कारण है कि उनमें तर्क-शक्ति का व्यापक विकास हो जाता हैसाथ में उनमें प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति भी प्रबल हो जाती है, जो उनकी तर्क शक्ति का विकास करती है। 


(6) रुचियों का विकास (Development of Interests)-

रुचियों का विकास किशोरावस्था में बड़ी तीव्रता के साथ होता हैइनमें विभिन्न प्रकार की रुचियों का समावेश होता हैआत्म-प्रदर्शन (Self assertion) की रुचि बड़ी प्रबल होती हैलड़के समूह खेलों (Groups Games) में बड़ी रुचि लेते हैं,जबकि लड़कियाँ संगीत, नृत्य आदि में इन रुचियों के साथ-साथ किशोरों में शारीरिक प्रदर्शन की रुचि भी अत्यधिक विकसित हो जाती हैसमय व्यतीत करने के लिए वे पुस्तकें पढ़ते हैं, फिल्में देखते हैं तथा संगीत सुनते हैंअपने शरीर को सुन्दर बनाने के लिए वेशभूषा, बालों, नाखूनों आदि की सजावट में वे विशेष रुचि लेते हैं। 


(7)निर्णय करने की योग्यता (Ability of Decision Making)

किशोरावस्था में किशोर बाल्यकाल से कुछ अलग प्रकार के विकास का प्रदर्शन करते हैंजैसे-जैसे उनमें स्वतन्त्र निर्णय लेने की योग्यता विकसित होती जाती हैवे अब अच्छे और बुरे के बारे में तथा ठीक या गलत के बारे में निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैंइस योग्यता के विकास के परिणामस्वरूप किशोरों में 

आत्म-विश्वास पैदा होने लगता है, जो उसे भविष्य में समायोजन में सहायता करता है। 


(8)समस्या-समाधान की योग्यता (Problem SolvingAbility)-

किशोरावस्था के दौरान किशोरों में समस्या समाधान की योग्यता देखने को मिलती हैकिशोरों में सूझ-बूझ की योग्यता का इतना विकास हो जाता है कि दिन-प्रतिदिन की छोटी-मोटी समस्याओं का समाधान ढूँढने के वे योग्य हो जाते हैंसमस्याओं के समाधान में किशोरों को खुशी का अहसास होने' लगता है। 


(9)स्वतंत्र पठन का विकास (Development of Independent Reading)

किशोरावस्था ही एक ऐसी अवस्था है जहाँ से बालकों में स्वतंत्र पठन की रुचि का विकास शुरू होता हैलड़के अधिकतर रोमांचकारी साहित्य पढ़ने में रुचि रखते हैं और लड़कियाँ अधिकतर प्रेम कहानियाँ पढ़ने में रुचि लेती हैं। 


(10) भविष्य के प्रति जागरुकता (Consciousness about Future)

किशोरावस्था में प्रवेश पाने के पश्चात् किशोर अपने भविष्य के बारे में धिजागरूक होते हैं 

और भविष्य से सम्बन्धित योजनाओं का निर्माण करते हैंइस कार्य में लड़के अधिक सक्रिय एवं जागरूक होते हैं। 


(11) बुद्धि का अधिकतम विकास (Maximum Development of Intelligence)-

किशोरावस्था में बुद्धि का अधिकतम विकास माना गया हैलगभग 14 से 16 वर्ष की आयु तक बुद्धि का अधिकतम विकास जारी रहता हैटर्मन (Terman) के अनुसार स्कूल के विद्यार्थी और वयस्क 16 वर्ष तक बुद्धि के विकास के शिखर पर होते हैं। 


(12) सामाजिक कार्यों में रुचि (Interest in Social Works)--

किशोरावस्था की अवधि में बालक एवं बालिकाएँ विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों में रुचि लेने लगते हैंइस दृष्टि से वह अधिक सामाजिक (Social) हो जाता हैसमाज में उसका कुछ रुतबा बनता है। 


(13) भाषा ज्ञान और शब्द-भण्डार में वृद्धि (Increase in Knowledge of Language and Vocabulary)

इस अवधि में बालक की भाषा का विकास अधिकतम होता है और शब्दों के भण्डार में भी पर्याप्त वृद्धि होती हैइस अवस्था में बालक स्वयं को भाषा के माध्यम से प्रस्तुत कर सकता है। 


(14) यौन विषयों में रुचि (Interestin Sexual Matters)-

किशोरावस्था से ही यौवनारम्भ (Puberty) होता है तथा बालक एवं बालिकाओं में यौन सम्बन्धी भावनाओं की उत्पत्ति होनी शुरू हो जाती हैपरिणामस्वरूप इस अवस्था में लड़के-लड़कियाँ यौन विषयों में रुचि लेना शुरू कर देते हैं। 


(15) प्रत्ययों का निर्माण (Concept Formation)

बाल्यकाल में प्रत्ययों का विकास उतनी स्पष्टता से बच्चों में नहीं हो पाता जितना कि किशोरावस्था में हो जाता है; उदाहरणार्थ-ईमानदारी या दूसरे की भावनाओं को ठीक प्रकार से समझ सकना वह विश्व में अन्य पहलुओं के बारे में स्वयं की रुचि रखता है तथा अपने ही तरीके से सोचता हैइससे उसमें विभिन्न प्रत्यय निर्मित होते हैं, जो उसे भविष्य में भी खोजबीन के कार्य में सहायता देते हैं। 


(16) नायक पूजा (Hero Worship)-

किशोरावस्था के दौरान हीरो-पूजा प्रमुख हो जाती हैकिशोर किसी एक को अपना नायक बना लेते हैं चाहे वह फिल्मी कलाकार हो, राजनीतिज्ञ हो, शिक्षाशास्त्री हो, कवि हो, कलाकार हो, आदर्श अध्यापक हो या धार्मिक व्यक्ति होकिशोर अपने हीरो अर्थात् आदर्श मनुष्य की पूजा करने लगते हैं तथा स्वयं को उन्हीं के अनुसार ढालने का प्रयास करते हैंकभी-कभी वह नायक पूजा प्रेम में भी बदल जाती हैअतः शैक्षिक दृष्टि से अध्यापक स्वयं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करें ताकि किशोर उसका अनुसरण करें। 


(17) संवेगात्मक रूप में अस्थिर (Emotionally Unstable)-

संवेगात्मक रूप से किशोर बहुत ही अस्थिर होते हैंवे दूसरों से अपनी प्रशंसा और आत्म-सम्मान की बहुत अधिक अपेक्षा करते हैंऐसा होने पर वे मानसिक रूप से अशांत हो जाते हैंअतः संवेगात्मक रूप से अस्थिरता मानसिक विकास की ओर संकेत करता है। 


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Kkr Kishan Regar

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