किशोरावस्था में सामाजिक विकास
सामाजिक विकास क्या है? किशोरावस्था में इसके स्वरूप की व्याख्या
किशोरावस्था में सामाजिक विकास |
सामाजिक विकास (Social Development) सामाजिक विकास से तात्पर्य
विकास की उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है, सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं व रुचियों पर नियंत्रण करता है, दूसरों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करता है तथा अन्य व्यक्तियों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से सामाजिक संबंध स्थापित करता है। सामाजिक विकास के फलस्वरूप व्यक्ति समाज का एक मान्य, सहयोगी तथा कुशल नागरिक बन जाता है।
किशोरावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in the Adoles cence)-
किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियों का सामाजिक परिवेश अत्यंत विस्तृत हो जाता है। शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ उनके सामाजिक व्यवहार में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है। किशोरावस्था में सामाजिक विकास का स्वरूप निम्नांकित होता है
1. समूहों का निर्माण (Formation of Groups)-
किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियाँ अपने-अपने समूहों का निर्माण कर लेते हैं। परन्तु ये समूह बाल्यावस्था के समूहों की तरह अस्थायी नहीं होते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन करना होता है। पर्यटन, नृत्य, संगीत, पिकनिक आदि के लिए समूहों का निर्माण किया जाता है। किशोर-किशोरियों के समूह प्रायः अलग-अलग होते हैं।
2.मैत्री भावना का विकास (Developmentof Friendsship)-
किशोरावस्था में मैत्रीभाव विकसित हो जाता है। प्रारम्भ में किशोर किशोरों से तथा किशोरियाँ किशोरियों से मित्रता करती हैं, परन्तु उत्तर किशोरावस्था में किशोरियों की रुचि किशोरों से तथा किशोरों की रुचि किशोरियों से मित्रता करने की भी हो जाती है। वे अपनी सर्वोत्तम वेशभूषा, श्रृंगार व सजावट के साथ एक दूसरे के समक्ष उपस्थित होते हैं।
3.समूह के प्रति भक्ति (Devotion to the Group)-
किशोरों में अपने समूह के प्रति अत्यधिक भक्तिभाव होता है। समूह के सभी सदस्यों के आचार-विचार, वेशभूषा, तौर तरीके आदि लगभग एक ही जैसे होते हैं। किशोर अपने समूह के द्वारा स्वीकृत बातों को आदर्श मानता है तथा उनका अनुकरण करने का प्रयास करता है।
4.सामाजिक गुणों का विकास (Development of social qualities)-
समूह के सदस्य होने के कारण किशोर-किशोरियों में उत्साह, सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना, नेतृत्व आदि सामाजिक गुणों का विकास होने लगता है। उनकी इच्छा समूह में विशिष्ट स्थान प्राप्त करने की होती है, जिसके लिए वे विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास करते हैं।
5. सामाजिक परिपक्वता की भावना का विकास (Development of the Feel ings of Social Maturity)-
किशोरावस्था में बालक-बालिकाओं में वयस्क व्यक्तियों की भाँति व्यवहार करने की इच्छा प्रबल हो जाती है। वे अपने कार्यों तथा व्यवहारों के द्वारा समाज में सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं। स्वयं को सामाजिक दृष्टि से परिपक्व मान कर वे समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने का प्रयास करते हैं।
6.विद्रोह की भावना (Feeling of Revolt)-
किशोरावस्था में किशोर किशोरियों में अपने माता-पिता तथा अन्य परिवारजनों से संघर्ष अथवा मतभेद करने की प्रवृत्ति आ जाती है। यदि माता-पिता उनकी स्वतंत्रता का हनन करके उनके जीवन को अपने आदर्शों के अनुरूप डालने का प्रयत्न करते हैं अथवा उनके पास नैलिक आदर्शों का उदाहरण देकर उनका अनुकरण करने पर बल देते हैं तो किशोर-किशोरियाँ विद्रोह कर देते हैं।
7. व्यवसाय चयन में रुचि (Interest in Selection of Vacation)-
किशोरावस्था के दौरान किशोरों की व्यावसायिक रुचियाँ विकसित होने लगती हैं । वे अपने भावी व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सदैव चिन्तित से रहते हैं। प्रायः किशोर अधिक सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अधिकार सम्पन्न व्यवसायों को अपनाना चाहते हैं।
8.बहिर्मुखी प्रवृत्ति (Extrovert Tendency)-
किशोरावस्था में बहिर्मुखी प्रवृत्ति का विकास होता है। किशोर-किशोरियों को अपने समूह के क्रियाकलापों तथा विभिन्न सामाजिक क्रियाओं में भाग के अवसर मिलते हैं जिसके फलस्वरूप उनमें बहिर्मुखी रुचियाँ विकसित होने लगती है। वे लिखने-पढ़ने, संगीत, कला, समाजसेवा, जनसम्पर्क आदि से संबंधित कार्यों में रुचि लेने लगते हैं।
9.राजनीतिक दलों का प्रभाव (Influence of Political Parties)-
किशोरावस्था में राजनीतिक दलों की विचारधाराओं का किशोरों पर प्रभाव पड़ता है। किशोर प्रायः किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होकर किसी राजनीतिक दल के अनुयायी बन जाते हैं। दल के सम्मान, प्रतिष्ठा तथा प्रशंसा प्राप्त करने के लिए किशोर अदम्य उत्साह तथा समर्पण भाव से जनकल्याण के कार्य करते हैं। इससे एक ओर जहाँ किशोरों को अपने सामाजिक विकास में सहायता मिलती है, वहीं दूसरी ओर दूषित राजनीतिक वातावरण में पड़कर गलत रास्ते पर चलकर किशोरों के दादा बन जाने की सम्भावना भी रहती है। किशोरावस्था में होने वाले सामाजिक विकास की उपरोक्त वर्णित मुख्य विशेषताओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि किशोरावस्था सामाजिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण अवस्था है।