भारत की संघीय व्यवस्था
भारत की संघीय व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
भारत में संघीय व्यवस्था भारतीय संविधान ने मौलिक रूप से द्विस्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था संघ सरकार या हम जिसे केन्द्र सरकार कहते हैं और राज्य सरकारें। केन्द्र सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था और राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्य का । बाद में पंचायतों और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया। किसी भी संघीय व्यवस्था की तरह अपने यहाँ भी तीनों स्तर की शासन व्यवस्थाओं के अपने अलग-अलग अधिकार क्षेत्र हैं । संविधान में स्पष्ट रूप से केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन हिस्सों में बाँटा गया है। ये तीन सूचियाँ इस प्रकार हैं
भारत की संघीय व्यवस्था क्या है?
संघ सूची
इस सूची में रक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। पूरे देश के लिए इन मामलों में एक तरह की नीतियों की जरूरत है। इसी कारण इन विषयों को संघ सूची में डाला गया है। संघ सूची में वर्णित विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को है।
राज्य सूची
इस सूची में पुलिस, व्यापार, कृषि और सिंचाई जैसे प्रान्तीय और स्थानीय महत्त्व के विषय है। राज्य सूची में वर्णित विषयों के बार में सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है।
भारतीय संविधान के संघीय व्यवस्था संबंधित प्रावधान क्या है?
समवर्ती सूची
इस सूची में शिक्षा, वन, मजदूर-संघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे विषय हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार, दोनों को ही है लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।
भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं?
अवशिष्ट शक्तियाँ
इनमें से सभी मामले शामिल हैं जिनका उल्लेख किसी भी सूची में नहीं हुआ है; जैसे—साइबर कानून, इन विषयों पर केवल केन्द्रीय विधायिका ही कानून बना सकती है।