भारतीय संविधान की विशेषताएँ
Features of Indian Constitution
भारतीय संविधान की विशेषताएँ -भारतीय संविधान एक उच्च कोटि की रचना है जिसे गहन चिन्तन के बाद तैयार किया गया। यह अपनी सामग्री तथा भावना की दृष्टि से अनोखा है। इंग्लैण्ड, अमेरिका तथा आयरलैंड से भी कुछ विशेषताएं ग्रहण , की हैं। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
भारतीय संविधान की विशेषताएँ |
सम्पूर्ण सत्ता सम्पन्न लोकतन्त्रतात्मक गणराज्य-
संविधान की प्रस्तावना में भारत के सम्पूर्ण सत्ता सम्पन्न गणराज्य होने की व्यवस्था की है। इसके सम्पूर्ण सत्ता सम्पन्न होने का अर्थ यह है कि भारत अब किसी साम्राज्य के अधीन नहीं है, और न किसी पर निर्भर है। भारत अब अन्य राज्यों की तरह पूर्ण स्वतंत्र एवं सत्ताधारी है। किसी बाहरी शक्ति को इसकी विदेश नीति पर नियन्त्रण रखने अथवा आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
भारत में लोकतंत्र भी है। इसकी राज्य सत्ता इनके नागरिकों में निहित है, जिनके द्वारा चुने हुए व्यक्ति उनके प्रतिनिधि बनकर शासन कार्य चलाते हैं। भारत के प्रत्येक नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म, वर्ग तथा जाति का है, राज्य की ओर से समान अधिकार प्राप्त है।
संविधान हमारे देश को एक गणराज्य घोषित करता है। हमारा देश गणराज्य इसलिए है कि देश का सर्वोच्च पदाधिकारी राष्ट्रपति जनता के प्रतिनिधियों द्वारा एक निश्चित समय के लिए चुना जाता है।
पंथ निरपेक्ष राज्य की स्थापना—
संविधान भारत में पंथ निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है। 42वें संशोधन द्वारा पंथ निरपेक्ष शब्द को जोड़ दिया है। संविधान नागरिकों के लिए विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखता है। यही भावना भारत को पंथ निरपेक्ष राज्य बनाती है। धर्म के आधार पर राज्य नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं करता । राज्य धर्म के मामले में पूर्ण रूप से तटस्थ है। भारत के पंथ निरपेक्ष राज्य में रहने वाले सब व्यक्तियों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। वे अपनी इच्छा से किसी धर्म को अपना सकते हैं या छोड़ सकते हैं। उन्हें अपने पंथ (धर्म) का पालन एवं प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। अत: भारत में धर्म (पंथ) मनुष्य का एक व्यक्तिगत मामला है।
संसदीय शासन प्रणाली-
भारतीय संविधान द्वारा हमारे देश में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। इसी कारण से राज्य तथा केन्द्र में इस शासन पद्धति के मूल सिद्धान्तों को अपनाया गया है। परिणामस्वरूप केन्द्र में राष्ट्रपति क राज्यों में राज्यपाल दोनों संवैधानिक प्रमुख हैं। उनके पास केवल नाम मात्र की शक्तियाँ हैं। शासन की वास्तविकता सत्ता मन्त्रि परिषद के पास है जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्री परिषद केवल उसी समय तक शासन कार्य चलाती है, जब तक कि उसे व्यवस्थापिका में बहुमत रखने वाले दल का समर्थन प्राप्त होता है।
कठोर एवं लचीला संविधान–
भारतीय संविधान में कठोर एवं लचीले दोनों संविधान की विशेषताएँ पाई जाती है। पूर्ण रूप से कठोर संविधान को अच्छा संविधान नहीं कहा जा सकता। एक अच्छे संविधान का यह गुण होता है कि उसमें इतनी कठोरता न हो कि उसे परिवर्तित न किया जा सकें। साथ ही इतना लचीला भी न हो कि सरलता से जब चाहे बदल दिया जाय। इसलिए संविधान निर्माताओं ने संविधान में कुछ धाराओं में परिवर्तन या संशोधन की प्रक्रिया को कठोर बनाया है। अन्य कुछ धाराएँ ऐसी हैं जिनमें साधारण रीति से अर्थात् दो तिहाई बहुमत से परिवर्तन किया जा सकता है। एक प्रगतिशील संविधान में संशोधन करने की गुंजाइश अवश्य रहनी चाहिए।
एकल नागरिकता-
भारत में संघीय व्यवस्था है। प्रायः संघ शासन में दो प्रकार की नागरिकता प्रदान की जाती है। एक तो उस राज्य की जहाँ व्यक्ति रहता है, दूसरी केन्द्र या संघ की नागरिकता। संघ शासन होते हुए भी भारत में संविधान द्वारा एक ही नागरिकता समस्त नागरिकों को प्रदान की गई है। वह है भारतीय नागरिकता। देश की एकता व अखण्डता के लिए यह आवश्यक है।
संघात्मक तथा एकतात्मक शासन-
भारत के संविधान में संघ एवं एकात्मक दोनों शासन की विशेषताएँ पाई जाती हैं। एक संघ शासन के लिए लिखित संविधान, केन्द्र एवं राज्यों में अधिकारों का विभाजन तथा स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। ये तीनों ही संघात्मक तत्व हमारे संविधान में हैं। भारत का संविधान लिखित है। केन्द्र और राज्यों के बीच अधिकारों का विभाजन तीन सूचियों के द्वारा किया गया है। इन अधिकारों के सम्बन्ध होने वाले विवादों से बचने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। अत: हमारे देश में संघीय शासन है। भारत के संविधान में कुछ एकात्मक शासन के लक्षण भी पाये गये हैं। भारत के राज्यों को संघ से पृथक होने का अधिकार नहीं है। संविधान एकल नागरिकता की व्यवस्था करता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पूरे देश में माने जाते हैं। संकटकाल में केन्द्र सरकार राज्यों के अधिकार छीन लेती है। राज्यों को केन्द्र के बराबर अधिकार भी नहीं दिये गये हैं। अन्य रीतियों से भी प्रशासकीय एकात्मकता लाने का भी प्रयास किया गया है।
वयस्क मताधिकार
हमारे संविधान में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था की गई है। प्रारम्भ में इक्कीस वर्ष पूर्ण करने वाले व्यक्ति व्यस्क माना जाता था बाद में संशोधन करके यह आयु कम कर दी गई तथा अब हमारे संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर मत देने का अधिकार दिया है। इस अधिकार से देश के अधिक से अधिक नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनने एवं शासन संचालन में अपना हाथ बँटाते हैं। देश के शासन की सहभागिता में यह विशेषता अधिक योगदान देती है।
मौलिक अधिकार-
हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। ये अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए परम आवश्यक हैं । संविधान निर्माताओं ने इन अधिकारों को साधारणतया सात भागों में बाँटा है-जैसे समानता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार, सम्पत्ति का अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार । इनमें से सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। कानून के सामने सभी नागरिकों को समान समझा गया है। भारतीय नागरिकों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है। संविधान में केवल अधिकारों की घोषणा ही नहीं की गई है, बल्कि उनको लागू करने की उचित व्यवस्था भी की गई है। प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय के पास अपील करने का अधिकार है। संकट काल में ये अधिकार समाप्त हो जाते हैं।
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त -
भारतीय संविधान के भाग चार में कुछ ऐसे आदर्शों तथा उद्देश्यों का विवरण दिया गया है जो केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए मार्ग दर्शन का काम करते हैं। ये सिद्धान्त देश की सरकारों तथा शासन नीतियों को निर्धारित करते समय सामने रखे जाते हैं। इनके लागू होने पर भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना होगी। ये सिद्धान्त समाजवादी, आर्थिक व गाँधीवादी विचारों के अनुकूल है। इन सिद्धान्तों ने लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण में भी सहायता की है। ये सिद्धान्त ही भारत में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करते हैं।
स्वतंत्र न्यायपालिका
भारतीय संविधान में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। न्यायाधीशों की नियुक्ति उनके वेतन तथा कार्य काल के सम्बन्ध में ऐसे नियम बनाये हैं कि वे बिना किसी भय या पक्षपात के अपना कार्य कर सकते हैं क्योंकि उन्हें अपने पद से हटाने की प्रक्रिया अत्यन्त कठिन है। न्यायाधीशों की शक्तियों तथा अधिकारों को संविधान में स्थान दिया गया है और भारतीय संसद उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकती। न्यायपालिका को व्यवस्थापिका द्वारा पारित विधेयकों व अध्यादेशों के पुनरावलोकन का अधिकार भी दिया गया है।
लिखित एवं विशाल संविधान-
हमारे मूल संविधान में 395 धाराएँ तथा 9 अनुसूचियाँ थी। इसमें पिछड़ी हुई जातियों, अल्पसंख्यक वर्गों के लिए संवैधानिक व्यवस्था की गई है। संघात्मक ढाँचे को स्पष्ट करने के लिए भी लिखित रूप दिया गया है। सभी उच्च पदाधिकारियों की शक्तियों को लिखित रूप दिया गया ताकि विवाद उत्पन्न नहीं हो सके। इसी कारण से संविधान को अच्छी तरह से समझने के लिए भी उसका लिखित रूप होना आवश्यक था। संसार के विभिन्न संविधानों की विशेषताओं को ग्रहण करने के कारण भी यह संविधान विशाल बन गया। इस विशाल संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 महीने तथा 18 दिन लगे।
एक राष्ट्र भाषा-
भारत के संविधान में जहाँ क्षेत्रीय भाषाओं के विकास की पूरी सुविधाएँ प्रदान की है, वहां राष्ट्रीय एकता और सम्पर्क भाषा के रूप में देवनागरी लिपि में हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया है। संविधान हिन्दी भाषा के विकास के लिए भी विशेष निर्देश देता है।
शान्ति का समर्थक—
भारत अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का इच्छुक है। वह राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानपूर्वक सम्बन्धों को स्थापित करना चाहता है तथा विवादों के निपटाने के लिए शान्तिमय साधनों पर बल देता है । वह किसी दूसरे देश की सीमाओं का अतिक्रमण करना नहीं चाहता है और न ही किसी देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करना चाहता है।