ब्रिटिश शासन की भारतीय शिक्षा को देन - KKR Education

Breaking

Breaking News

test banner

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

सोमवार, 26 जुलाई 2021

ब्रिटिश शासन की भारतीय शिक्षा को देन

ब्रिटिश शासन की भारतीय शिक्षा को देन


यद्यपि अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये भारत में शिक्षा प्रसार के लिये प्रयास किये। हम उनके द्वारा प्रचलित शिक्षा प्रणाली की चाहे जितनी आलोचना करें किन्तु हमको निष्पक्ष भाव से स्वीकार करना होगा कि भारत तत्कालिक सुव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक-अनेक योगदान है किन्तु उनमें से पाँच महत्त्वपूर्ण योगदान निम्न है -
ब्रिटिश शासन की भारतीय शिक्षा को देन
ब्रिटिश शासन की भारतीय शिक्षा को देन 


1. शिक्षा की व्यवस्थित प्रणाली- 

इनके आने से पूर्व देश में शिक्षा की व्यवस्था तो थी लेकिन आज की तरह विद्यालय नहीं थे। गुरुकुलों में एक व्यक्ति द्वारा सभी छात्रों को शिक्षा दी जाती थी। मुस्लिम काल में मस्जिदों में मदरसा होते थे ओर मौलवी शिक्षा प्रदान करते थे। उस समय शिक्षा में क्रमिक प्रणाली नहीं थी। अंग्रेजों द्वारा विद्यालय स्थापित करने के साथ शिक्षा प्रबन्ध एवं संगठन का ढाँचा तैयार किया गया तथा विद्यालयों में कक्षा प्रणाली का विकास किया गया।

2. विज्ञान को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना - 

विद्यालयों के पाठ्यक्रम में पाश्चात्य विज्ञान को अध्ययन का विषय बनाना। यद्यपि हमारे वेदों में समस्त विज्ञानों का ज्ञान निहित था लेकिन धीरे-धीरे हमने उसे भुला दिया। आज विद्यालयों में विज्ञान और तकनीकी का जो ज्ञान दिया जा रहा है उसका ही परिणाम है कि हम अपने यहाँ कृषि, वनस्पति, जीव चिकित्सा, धातु, खनिज, मौसम आदि क्षेत्रों में उन्नति कर सके हैं। हमारे देश के छात्र विदेशों में रिकार्ड बनाते हैं।

3. विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रारम्भ - 

अंग्रेजों ने ही सर्वप्रथम, कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना करके उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। आज देश में उच्च शिक्षा का जो स्वरूप विद्यमान है वह अंग्रेजी शासन की देन

4. विद्यालयों को अनुदान देने की व्यवस्था - 

अंग्रेजी शासन से पूर्व भारत में शिक्षा ऋषियों-मुनियों द्वारा आश्रम में दी जाती थी। यहाँ छात्र भिक्षा माँग कर अपना तथा शिक्षक के परिवार का भरण पोषण करते थे। मिशनरियों ने यहाँ विद्यालयों की स्थापना की तो समाज के अन्य लोगों ने भी विद्यालय खोलना प्रारम्भ किया। अंग्रेज शिक्षा का भार अपने कन्धों पर नहीं लेना चाहते थे। अतः उस समय चलते विद्यालयों की दशा सुधारने के लिये अनुदान देने की व्यवस्था की जो आज भी देश में प्रचलित है।

5.शिक्षक प्रशिक्षण का प्रारम्भ-

देश में शिक्षक प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी और न विषय विशेषज्ञ हुआ करते थे। एक ही शिक्षक सारे विषय पढ़ाता था। अंग्रेजी शासनकाल में शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करके प्रत्येक प्रान्त में प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना का प्रारम्भ वुड के घोषणा-पत्र के साथ हुआ। इन्होंने प्रत्येक विषय के विशेषज्ञ शिक्षकों को विद्यालयों में रखना प्रारम्भ किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कमेंट में बताए, आपको यह पोस्ट केसी लगी?

Blogger द्वारा संचालित.

Search This Blog

Post Top Ad

Responsive Ads Here