बाल मजदूर
बाल श्रमिक से आशय : उत्पत्ति, स्थिति एवं समस्याए बाल श्रमिक उन्मूलन हेतु किए जा रहे प्रयासों का विवरण
बाल श्रमिक/मजदूर से आशय
दुनिया भर में 17 करोड़ बाल श्रम कर रहे हैं जबकि भारत में 43.53 लाख बच्चे (2011 जनगणना अनुसार) बाल श्रमिक/मजदूर के रूप में मेहनत और मजदूरी करने को मजबूर है। जिन बच्चों के हाथों में खिलौने, कागज, कलम और कापी-किताब तथा स्लेट और पेंसिल होना चाहिए आज उन हाथों में पालिश करने का ब्रश, दूसरों के पढ़ने के लिए स्लेट निर्माण की सामग्री या औजार है। माता-पिता का प्यार, दुलार और स्नेह पाने तथा अपने भाई-बहनों के साथ खेलना-कूदने की उम्र में बच्चे धूप, गर्मी और वर्षा को सहते हुए कारखानों, होटलों या बंद कोठियों में काम कर रहे होते हैं।
बाल मजदूरी (निषेध और नियम) अधिनियम 1986
के अनुसार, "वह प्रत्येक बच्चा, जो कि 14 वर्ष कम उम्र का हो, बाल श्रमिक कहलायेगा।"दूसरे शब्दों, किसी कारखाने, खदान या होटल आदि में 14 वर्ष से कम उम्र के शारीरिक या मानसिक श्रम करने वाले बच्चे बाल श्रमिक कहलाते हैं। बाल श्रमिकों में बालक और बालिकाओं, दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। जब इन बच्चों की उम्र खेलने, खाने और पढ़ने की होती है, तब ये कारखानों, होटलों और दुकानों पर कार्य कर रहे होते हैं।
बाल श्रम की उत्पत्ति एवं स्थिति विश्व में बाल श्रम
का प्रारम्भ औद्योगीकरण के साथ ही प्रारम्भ हो गया था। सस्ते श्रम के लालच में बच्चों को उद्योगों में कार्य करने पर लगाया गया और बाल श्रम कानून के अभाव में लम्बे समय तक इन बच्चों से कम मजदूरी पर दर ही काम लिया जाता रहा। आज के समय में बाल मजदूरी अविकसित एवं विकासशील देशों में व्याप्त विभिन्न प्रकार की समस्याओं का ही परिणाम है। भारत में 14 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या अमेरिका की आबादी और बाल श्रमिकों की संख्या हालैण्ड वस्पेन जैसे देशों की पूरी जनसंख्या के बराबर है। देश की कुल श्रम शक्ति का 3.6 प्रतिशत हिस्सा 14 वर्ष से भी कम उम्र के बच्चों का है। इनमें से 85.7 प्रतिशत बच्चे तो कृषिगत कार्यों में और शेष 14.3 प्रतिशत गैर कृषिगत कार्यों में संलग्न है, इमें से 9 प्रतिशत से भी कम बच्चे उत्पादन, सेवा और मरम्मत जैसे कार्यों को करते हैं, जबकि सिर्फ 0.8 प्रतिशत बच्चे ही कारखानों में काम करते हैं। बाल श्रम कानून 1986 के अनुसार 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को खतरनाक प्रक्रियाओं और विशेष उद्योगों में काम करने से रोकता है, परन्तु कृषि क्षेत्र के विषय में यह कानून पूरी तरह से मौन है जबकि इस क्षेत्र में देश के 85 प्रतिशत से अधिक बच्चे कार्य कर रहे हैं। बाल श्रम की दर अफ्रीका में अधिकतम है, किन्तु संख्या की दृष्टि से भारत का स्थान पहला है। राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना द्वारा 2010-11 में किए सर्वे के अनुसार यह संख्या 49.84 लाख है।
बाल श्रमिकों/मजदूरों के सम्बन्ध में समस्याएँ-
14 वर्ष की उम्र के बच्चों की पहचान करने की एक प्रमुख समस्या है, क्योंकि बालक मजदूरों को पहचान करने का कोई मापदण्ड नहीं जो की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्य हो।
1. बच्चों की उम्र एवं आयु के निर्धारण सम्बन्धी कोई प्रामाणिक रिकार्ड उपलब्ध नहीं होता है।
2. सरकार द्वारा बाल मजदूरों की वास्तविक संख्या के सही आँकड़े उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं।
3. बाल श्रमिकों जब शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल हो जाता है उसे उसे मिलने वाली सहायता की राशि उसे प्राप्त नहीं होती है।
4. अतिरिक्त पैसों की आवश्यकता के कारण माता-पिता के द्वारा बच्चों को पढ़ाई से
दूर कर उनसे पुन: कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
5. विशेष विद्यालयों द्वारा इन बच्चों को प्रदान किए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी अनेक खामिया और कमियाँ है।
6. व्यावसायिक प्रशिक्षण के दौरान जिन उत्पादनों का निर्माण किया जाता है उनका विपणन भी ठीक प्रकार से नहीं किया जाता है।
7. सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं का प्रसार-प्रसार ठीक प्रकार से नहीं होने और शिक्षा के अभाव में पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो पाते हैं।
8. बाल श्रम रोकने सम्बन्धी कानून को जमीनी स्तर पर सही मायने में लागू नहीं किया जाता है।
9. बाल श्रम से मुक्त कराए गए मजदूरों का पुनर्वास का कार्य जल्द व सही प्रकार से नहीं होता है इसके साथ ही पुनर्वास के लिए उन्हें दी जाने वाली राशि बहुत कम है।
बाल श्रमिकों/मजदूरों के उन्मूलन, शिक्षा और कल्याण हेतु प्रयास
सरकार ने देश में बाल श्रम उन्मूलन के लिए विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया और लाखों बच्चों को बाल मजदूरी करने से रोका। बाल श्रम से छुड़ाए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए श्रम और रोजगार मंत्रालय ने महानगरों सहित देश के 266 जिलों में 14 अगस्त 1987 को राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना प्रारम्भ की। सम्पूर्ण देश में बाल श्रमिक बच्चों को समाज एवं शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इस परियोजना के तहत संचालित विशेष विद्यालय में भर्ती कर उन्हें सम्पर्क शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पोषण भत्ता और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान की जाती है और उन्हें औपचारिक शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तैयार किया जाता है। वर्तमान समय में देश में 7311 विशेष विद्यालय इस दिशा में कार्य कर रहे हैं जिनका संचालन स्वयं सेवी संगठनों (एन.जी.ओ.) द्वारा सरकार के सहयोग से किया जा रहा है। दूसरी और बेसहारा बच्चों के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय समेकित बाल संरक्षण योजना के माध्यम से आश्रय एवं रख-रखाव की व्यवस्था प्रदान करता है तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना एवं पुस्तकें आदि उपलब्ध कराता है। सरकार ने बाल श्रम को खत्म करने के लिए वर्ष 2009 में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम लागू कर 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया जिससे बाल श्रम को रोकने में काफी मदद मिल रही है। भारत सरकार बाल श्रम के खिलाफ अपने संघर्ष तेज करते हुए खतरनाक उद्योगों में बच्चों को कार्य करने से रोकने के लिए अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर एक समझौता करने की भी तैयारी कर रहा है।