अंग्रेजी शासन की शिक्षा व्यवस्था

अंग्रेजी शासन की शिक्षा व्यवस्था


पश्चिमी देशों से आने वाले अंग्रेजों का उद्देश्य व्यापारियों के रूप में आकर भारतीयों के ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसर करना था, किन्तु शिक्षा के अभाव में इन सिद्धान्तों की ग्राह्यता एवं स्वीकृति बहुत कम थी। अत: ईसाईयों से अपने धार्मिक सिद्धान्तों के सम्प्रेषण की सफलता के लिये लोगों में शिक्षा का आविर्भाव दिया। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रारम्भ होने के दो कारण बताये हैं। पहला तो यह कि मिशनरी भारतीयों को शिक्षित बनाकर उनमें धार्मिक सिद्धान्तों का विकास करना चाहते थे। दूसरा यह है कि ये शिक्षा संस्थाएँ उन्हें भारतयों से सम्पर्क सूत्र स्थापित करने तथा धर्म का प्रचार करने का पर्याप्त अवसर प्रदान करती थीं। अंग्रेजी शासन काल में इंग्लैण्ड के व्यापारियों ने एकजुट होकर एक नई कम्पनी का निर्माण किया। इस कम्पनी का नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी रखा गया।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रारम्भिक शिक्षा नीति

ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने शिक्षा का प्रसार, धर्म का उत्थान अंग्रेज कर्मचारियों के लिये किया, कुछ भारतीयों को प्रोटेस्टेण्ड धर्म की दीक्षा हेतु इंग्लैण्ड भेजा गया, निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई। अंग्रेज मिशनरियों ने भी भारत में धर्म प्रचार हेतु शिक्षा को अनिवार्य माना । उन्होंने दान आश्रित विद्यालयों की स्थापना की, साथ ही साथ निःशुल्क शिक्षा एवं फ्री स्कूल की स्थापना की।
    ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक कर्मचारी चार्ल्स ग्रान्ट ने भी शिक्षा के विदेशी पौधे रोपने का महान कार्य किया, उन्होंने शिक्षा हेतु प्राप्त नियत धन राशि का कम प्राचीन भारतीय विधाओं का संरक्षण, विकास एवं सम्प्रेषण अथवा पाश्चात्य ज्ञान का सम्प्रेषण एवं उन्नयन हेतु किया। उन्होंने शिक्षा का माध्यम संस्कृत, अरबी, फारसी और अंग्रेजी को बनाया।।

    लार्ड मैकाले भी एक सुयोग्य शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक था। अंग्रेजी साहित्य का विद्वान था। मैकाले ने भी शिक्षा योजना के बारे में अपना विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने साहित्य के परिमार्जन हेतु अरबी, संस्कृत साहित्य के अलावा अंग्रेजी साहित्य को भी शामिल किया उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा की पैरवी के साथ ही विज्ञान के प्रचार पर भी जोर दिया।

    विलियम ऐडम ने शिक्षा योजना के तहत तीन प्रतिवेदन प्रस्तुत किये। प्रथम में बंगाल के तात्कालिक भारतीय शिक्षा के प्रसार सम्बन्धी आँकड़ें प्रस्तुत किये। द्वितीय में राजशाही जिले की शिक्षा उपलब्धियों की समीक्षा प्रस्तुत की तथा तृतीय प्रतिवेदन में शिक्षा की उचित व्यवस्था हेतु क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता दिया। देशी-विदेशी विद्वान मिलकर पाठ्य-पुस्तकों का क्रमबद्ध रूप से प्रकाशन एवं मुद्रण करने को प्राथमिकता दी, शिक्षकों के कार्यों का निरन्तर निरीक्षण हेतु निरीक्षक नियुक्त किया जाए, शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु नार्मल स्कूलों की स्थापना की जाए समस्त परीक्षाएँ निश्चित समय पर आयोजित की जाए।

    सर चार्ल्स वुड जो कम्पनी के बोर्ड ऑर्फ कन्ट्रोल के अधिष्ठाता थे शिक्षा योजना सम्बन्धित घोषणा पत्र का निर्माण किया। वुड के अनुसार भारतीयों की शिक्षा में अंग्रेजी ज्ञान देना, उनके अनुसार सिर्फ उच्च बौद्धिक क्षमताएँ ही नहीं, बल्कि उनके नैतिक मूल्यों को भी उच्च बनाना । वुड के आधार पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी एवं क्षेत्रीय भाषाएँ होनी चाहिए, सरकार संस्थाओं में स्वैच्छिक धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था, शिक्षक-प्रशिक्षण कॉलेजों की स्थापना की जाए, साथ ही साथ उन्होंने स्त्री शिक्षा, विश्वविद्यालयों की स्थापना एवं जन शिक्षा प्रसार में भी बल दिया।

    लार्डकर्जन ने अपनी शिक्षा नीति को एक सरकार दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिये प्राथमिक शिक्षा दी जाए, शिक्षकों की मूर्ति हेतु शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाए। उन्होंने लिखने, पढ़ने एवं गणित के अतिरिक्त कृषि-कार्य को अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किया। इसके अलावा उन्होनें माध्यमिक शिक्षा हेतु माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुकूल किया, आवश्यक विषयों के शिक्षण की सुव्यवस्था होनी चाहिए। छात्रों के व्यायाम, खेलकूद, स्वास्थ्य एवं अनुशासन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा उनकी शैक्षिक योजनाओं के अन्तर्गत सुप्रशिक्षित, योग्य एवं चरित्रवान शिक्षकों को नियुक्त किया जाना चाहिए।
    
     महारानी विक्टोरिया की शिक्षा योजना के अन्तर्गत शिक्षा विभागों का संगठन, शिक्षा प्रचार के साधनों का भारतीयकरण, सहायत अनुदान प्रणाली का विकास साथ ही-साथ माध्यमिक शिक्षा का प्रसार, महाविद्यलयी शिक्षा एवं विश्वविद्यालय की स्थापना आदि की। इसके अलावा विषय सामग्री का पाश्चत्यीकरण, स्त्री शिक्षा, मुस्लिम शिक्षा, हरिजन एवं आदिवासियों हेतु शिक्षा का विकास किया गया।

अतएव अंग्रेज के शासन-काल की शिक्षा व्यवस्था कुछ अर्थों में उपयुक्त थी और कुछ अर्थों में विदेशी शिक्षा का बहुत ज्यादा प्रभुत्व था। फैक्ट्री में काम करने हेतु बाबुओं और कर्मचारियों का भी निर्माण किया जा रहा था। भारतीय संस्कृति के गुण जैसे ईमानदारी, नैतिकता, धैर्यता, भाईचारा आदि पर बत न देकर नागरिकों को शरीर, रूप एवं रंग से तो भारतीय थे पर मन एवं हृदय से वे पाश्चात्य संस्कृति में ढलते जा रहे थे।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा के गुण व दोष 


    अंग्रेजी शासन काल में शिक्षा प्रभाव भारतीय नेताओं एवं शिक्षा विशारदों के विचार में अंग्रेजों की शिक्षा नीति तथ अंग्रेजी शिक्षा पद्धति भारत के लिए सर्वथा अनुपयुक्त, अहितकर एवं राष्ट्र विरोधी थी। इनके विपरीत भारत के अंग्रेज शासकों के कथनानुसार अंग्रेजी शिक्षा तथा शिक्षा-अंग्रेजी भारत के लिए श्रेष्ठ वरदान थी। निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करने से हम जान सकेंगे कि इन दोनों दृष्टिकोणों में कितना सत्य है। 

भारत में अंग्रेजी शिक्षा के लाभ

1. पाश्चात्य ज्ञान एवं अज्ञान के सम्पर्क 

भारत समय गुजरने पर अपनी प्राचीन संस्कृति तथा सभ्यता को भूलता जा रहा था। अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को अपनाकर पाश्चात्य साहित्य एवं विज्ञानों से भारतवासियों ने परिचय प्राप्त किया और उन्नति के पथ पर अग्रसर हुआ।

2. भारतीय समाज का आधुनीकरण 

अंग्रेजी शासन की स्थापना के समय भारतीय समाज की दशा बहुत ही शोचनीय थी। यहाँ पर सतीप्रथा, शिशुहत्या, बाल विवाह, अस्पृश्यता आदि हानिप्रद कुरीतियाँ प्रचलित थीं। अंग्रेजी शिक्षा तथा सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीयों ने समाज को एक नया रूप प्रदान किया।

3.साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जागृति 

देश में बौद्धिक जागरण प्रारम्भ हुआ। प्रान्तीय भाषाओं का भी विकास हुआ।

4. वैज्ञानिक पद्धति 

अंग्रेजी के द्वारा भारत में वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा दी जाने लगी। 1897 में जगदीशचन्द्र बोस ने भौतिक विषयक अपनी खोजों से यूरोप के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया। फलतः भारतीयों में यह आत्मविश्वास जाग्रत हुआ कि वैज्ञानिक क्षेत्र में भी प्रगति कर सकते हैं।

5. ललित कलाओं की उन्नति–

भारत सरकार ने मुम्बई, मद्रास, कोलकाता और लाहौर में कला-विद्यालय स्थापित करके भारतीय कलाओं को पुनर्जीवित किया।

6. शिक्षा प्रसार के नवीन साधन 

अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत, मुद्राणालयों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, रेडियो, चल-चित्रों आदि को महत्वपूर्ण स्थान दिया।

7. भारतीय पुनर्जागरण—

अंग्रेजी शिक्षा द्वारा भारतीयों के विचारों तथा दृष्टिकोणों में अमूल परिवर्तन आया। परिणामस्वरूप भारत में उसी प्रकार की मानसिक प्रगति हुई जैसे कि यूरोप में पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दियों में पुनर्जागरण के समय हुई थी। 

भारत में अंग्रेजी शिक्षण प्रणाली से हानियाँ


    यह सर्वमान्य है कि मैकाले द्वारा प्रारम्भ की गई शिक्षा प्रणाली समयानुरूप नहीं है। गाँधी जी ने अनुभव किया कि प्राचीन शिक्षा प्रणाली वास्तविकता से दूर और वैकल्पिक है। उन्होंने कहा कि कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बेकार ही नहीं बल्कि हानिकारक भी है। अधिकांश छात्र अपने परिवार के लिए निरर्थक सिद्ध होते हैं और ये का भी लाभ नहीं उठा पाते जिसके लिए वे उपयुक्त हो सकते थे। उनमें बुरी आदतें विकसित होती हैं और वे नागरिक जीवन अपनाते हैं जिसमें शिक्षा का नितान्त अभाव होता है। गांधीजी के विचार में शिक्षा प्रणाली किसी भी प्रकार देश की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं । अंग्रेजी उच्च शिक्षा का माध्यम है जिससे कोई भी शिक्षित और असंख्य अशिक्षित लोगों में भारी अन्तर आ गया है। उनका विचार है कि हम बच्चों के मस्तिष्क को विभिन्न जानकारियों के बोझ से भर देते हैं और कभी नहीं सोचते कि इसका उनके विकास से कोई सम्बन्ध है अथवा नहीं। अब हमें इसे समाप्त कर देना चाहिए और उसकी शिक्षा मूलरूप में क्रियात्मक ढंग की देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

1. अंग्रेजों द्वारा चलाई गई शिक्षा पद्धति भारतीय नहीं है— 

श्री अरविन्द ने लिखा है कि दुर्भाग्यवश भारत में सौ वर्ष से अधिक समय से वह शिक्षा चल रही है जो भारतीय नहीं है। यह शिक्षा पश्चिमी ढंग की है और इसे भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप भी नहीं बताया गया है। वास्तव में अंग्रेजी शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि इसमें कोई अर्थ सिद्ध नहीं होता है। यह हमारी भौतिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है इसलिए हमें इससे कोई लाभ नहीं हो पाता है।

अंग्रेजी शिक्षा ने विभाजित भारत को भी विभाजित किया है जहाँ बहुत-सी जाति प्रथा है वहाँ एक और जाति को जन्म दिया है।

2.ग्राम प्रधान देश के लिए हानिकारक शिक्षा-प्रणाली- 

भारत एक देश है जिसमें गाँव की संख्या अधिक है। इसलिए वह शिक्षा प्रणाली उपयुक्त नहीं है, जो गाँवों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं करती है । नागरिक विचारों और उनके अनुसार बने पाठ्यक्रम के द्वारा ग्रामीण सभ्यता नष्ट हो गई है। शिक्षित ग्रामीण बालक गाँव में नहीं रहना चाहता और न ही गाँव में सुधार लाने का प्रयत्न करता है।

3. अंग्रेजी केन्द्रित पाठ्यक्रम- 

अंग्रेजी माध्यम ने हमारे बच्चों के मस्तिष्क को निष्क्रिय बना दिया है और इतना बोझ डाला है कि वे रटने के अतिरिक्त कोई अनुसन्धान कार्य करने योग्य नहीं रहे हैं और इस प्रकार वे अपने ज्ञान को अपने समाज और परिवार के लिए उपयोगी नहीं बना पाते हैं।

4. पुस्तकों पर आधारित शिक्षा प्रणाली— 

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पुस्तकों पर आधारित है। इसके द्वारा बालक ग्रामीण जीवन के लिए उपयुक्त नहीं बन पाता है। इसके द्वारा उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं होता है।

5.शिक्षा प्रणाली में नागरिकता का अभाव 

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बालकों के भाव और शारीरिक विकास के प्रशिक्षण का अभाव है। यह उनमें नागरिकता के गुण उत्पन्न करने में पूर्णतया असफल रही है।

6. शिक्षा में भारी व्यर्थता- 

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से बहुत थोड़े ही बच्चे हाई स्कूल पास कर पाते हैं। प्रत्येक कक्षा में बहुत से बच्चे असफल हो जाते हैं। प्रतिवर्ष सामाजिक धन का भारी अपव्यय होता है। इतना ही नहीं, धन के अपव्यय के साथ-साथ विद्यार्थियों की शक्ति तथा समय की भी हानि होती है और माता-पिता को भी भारी असन्तोष होता है।

7.शिक्षा प्रणाली का क्लर्क बनाना-

प्रचलित शिक्षा का आधार पुस्तकें हैं। इससे शिक्षित लोग क्लर्क बन जाते हैं और विद्यार्थियों को सही व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त नहीं हो पाती है। स्कूल अथवा कॉलेज छोड़ने पर बालक अपने को असमर्थ पाते हैं। परिणामस्वरूप शिक्षित बेकार लोगों की संख्या बढ़ती है।

8. ध्येय रहित शिक्षा प्रणाली 

शिक्षा प्रणाली का कोई उद्देश्य, योजना अथवा ध्येय नहीं है।

9.महंगी शिक्षा– 

परम्परागत शिक्षा प्रणाली महंगी है। शिक्षा आत्मनिर्भर नहीं, अत: लाखों लोगों को शिक्षा देने का कार्य बहुत महंगा पड़ता है।

Kkr Kishan Regar

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