दूरस्थ शिक्षा का दार्शनिक आधार

दूरस्थ शिक्षा का दार्शनिक आधार
(Philosophical foundation of Distance Education)


उद्देश्य प्रस्तावना , दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा , मुक्त अधिगम , दार्शनिक आधार , शिक्षा का औद्योगिकृत रूप , स्वतंत्र अध्ययन , निर्देशक शिक्षात्मक वार्तालाप , सहकारी अधिगम , दूरस्थ शिक्षा की अवस्थाएँ ,मुक्त दूरस्थ अधिगम के उदीयमान मॉडल
दूरस्थ शिक्षा
दूरस्थ शिक्षा


यह कहा जाता है कि दूरस्थ शिक्षा, शिक्षा की वह विधि है जो शिक्षण- अधिगम की इस प्रकार से व्याख्या करती है जिसमें शिक्षार्थी और शिक्षक दोनों सामान्यत: स्थान और/या समय द्वारा पृथक होते हैं और यही इसे पारंपरिक कक्षाकक्षों पर आधारित शिक्षा प्रणाली से विशिष्ट रूप से पृथक बनाती है । मुक्त अधिगम, शिक्षा प्रदान करने का दर्शनशास्त्र है ।

दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा (Definition of distance Education)
दूरस्थ शिक्षा को साधारणतया,शिल्प की उस प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जात "है जिसमें शिक्षार्थी को दूर स्थान से शिक्षा प्रदान की जाती है ।" इसमें दो मूल तत्व निहित हैं - शिक्षक और शिक्षार्थी की शारीरिक रूप से दूरी और शिक्षक की परिवर्तित भूमिका। शिक्षक मुख्यत: चुनिंदा कार्य निष्पादन द्वार जैसे कि परामर्श देकर शिक्षा देना और शिक्षार्थियों के अधिगम प्रयास में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायता देकर एक सहायक की तरह कार्य करता है। शिक्षार्थियों को सीमित - रूबरू सत्रों के साथ साथ प्रौद्योगकीय माध्यम जैसे कि मुद्रित सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर इंटरनेट द्वारा अनुदेश दिए जाते है। दूरस्थ शिक्षा को विभिन्न देशों में विभिन्न नामावली दी गई हैं ' इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे कि " पत्राचार शिल्प ", " गृह अध्ययन " "स्वतंत्र अध्ययन " "मूर्त अध्ययन ", 'दूरवर्ती कैम्पस अध्ययन","मुक्त अधिगम" "मुक्त शिक्षा" "फ्लैक्सी-स्टडी" इत्यादि' आस्ट्रेलिया में इसका' सरकारी नाम एक्सर्टनल सिस्टम और न्यूजीलैंड में एक एक्स्ट्रा -म्यूरल सिस्टम है। इस विवरण में पुरानी लंदन एक्सर्टनल प्रणाली की झलक मिलती है जिसमें कोई शिक्षण नहीं केवल परीक्षा है ' लंदन से भौगौलिक दूरी पर रह रहे लोगों की उच्च शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लंदन यूनिवर्सिटी द्वारा बाह्य परीक्षा प्रणाली शुरू की गई। ऐसी प्रणाली में शिक्षार्थी को किसी भी प्रकार की अध्ययन सामग्री प्रदान नहीं की जाती है और उसे स्वयं ही परीक्षा की तैयारी करनी होती है। उक्त लिखित सभी पारिभाषिक शब्दावलियां गैर- परम्परागत शिक्षण अधिगम विधियों से जुड़ी हैं ' तथापि, 1982 में वैभकूवर में आयोजित यह 12वा विश्व सम्मेलन था। जब विशाल स्तर पर प्रयोग किए जाने वाले परिभाषिक शब्द पत्राचार शिक्षा के स्थान पर दूरस्थ शिक्षा पारिभाषिक शब्द को अपनाया गया।

दूरस्थ शिक्षा की अत्यंत पूर्ण परिभाषा देने का श्रेय कीगन (1986; 1996) को दिया जा सकता है जिन्होंने दूरस्थ शिक्षा की सात मुख्य विशेषताएँ बताई हैं जो कि निम्नलिखित है :

1. शिक्षक और शिक्षार्थी की पृथकता (Separation of teacher and learner)
__ ऐसा बहुत सी परिभाषाओं में कहा गया है और यह दूरस्थ शिक्षा की संपूर्ण संकल्पना का केन्द्र है। परन्तु कीगन की परिभाषा में शिक्षक और शिक्षार्थी, शिक्षार्थियों के मध्य तथा प्रौद्योगिकीय मीडिया जैसे कि श्रव्य/दृश्य कांफ्रेसिंग इत्यादि द्वारा सीमित रूबरू संपर्क अनुमत है।

2. शैक्षिक संगठन संस्थान का प्रभाव (Influence of an educational organization /institution)
होल्मबर्ग (1981) द्वारा दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा में इस विशेषता पर बल दिया गया है (जिस पर हम अगले भाग में चर्चा करेगें) कीगन ने भी अधिगम सामग्रियों की आयोजना और तैयारी में, जो दूरस्थ शिक्षा को निजी अध्ययन से पृथक् करती हैं एक शैक्षिक संगठन/संस्थान के प्रभाव में सम्मिलित करने के लिए इसे अपनाया है ।

3. तकनीकी मीडिया का प्रयोग (Use of technical media)
स्वाभाविक रूप से शिक्षक और शिक्षार्थी की पृथकता में विचार संप्रेषण की प्रक्रिया किसी अन्य ढंग जैसे कि मुद्रण, इलेक्ट्रानिक, मैकेनिकल और अन्य यंत्रों द्वारा अपेक्षित है ।

4. द्विपक्षीय विचार. संप्रेषण का प्रावधान (Provision of two-way communication)
मूर (1973)और होल्म वर्ग (1981) की दूरस्थ शिक्षा की परिभाषाएं इस कारक पर बल देती है जिसे कीगन ने अपनी परिभाषाओं में समाविष्ट किया है । दूरस्थ शिक्षा में शैक्षिक प्रक्रिया को सुकर और सहायक भनाने के लिए शिक्षक और शिक्षार्थी के. मध्य वास्तविक,असंक्रामक दविपक्षीय विचार संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका सम्मिलित होनी चाहिए |

5. समकक्ष समूह से शिक्षार्थी की पृथक्ता (Separation of learner from peer group)
स्पष्टतया, जब शिक्षार्थी अपने स्थान पर दूरवर्ती अध्ययन कर रहा है तो उसकी अपने समकक्ष समूह से पृथकता होगी ।

6. शिक्षा का औद्योगिकीकरण (Industrialization of education)
यह धारणा, पीटर्स (1967) की दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा से उत्पन्न हुई है | कीगन ने पीटर्स के विचार को स्वीकार किया है कि दूरस्थ शिक्षा, परम्परागत मौखिक शिक्षा की तुलना में शिक्षा का अत्यंत औद्योगिकीकृत रूप है ।

7. अधिगम का निजीकरण (Privatization of Learning)
कीगन की तरह वेडमेयर (1981) ने भी दूरस्थ शिक्षा को स्वअध्ययन का एक रूप होने पर बल दिया है क्योंकि यह शिक्षक के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन से लगभग स्वतंत्र प्रत्येक शिक्षार्थी द्वारा वैयक्तिक कार्य पर आधारित है । दूसरे शब्दों में,रूबरू या इलैक्ट्रानिक साधनों

द्वारा यदा-कदा बेठको की संभावना के साथ, पूरी अधिगम प्रक्रिया में अधिगम समूह की अर्ध स्थाई अनुपस्थिति ।

मुक्त अधिगम (Open Learning)
___1969 में विश्व के प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय नामशः “ओपन यूनिवर्सिटी” यू. के. के शीर्षक में “Open” शब्द का प्रयोग "Open University" (04) शब्दों के प्रयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है । ओपन यूनिवर्सिटी, यू. के. के प्रथम उप कुलपति स्व.लार्ड क्रौथर ने 1989 में जब रॉयल चार्टर प्राप्त किया तो उनके भाषण में मुक्त विश्वविद्यालय का संदर्भ था उन्होंने कहा कि मुक्त विश्वविद्यालय केवल प्रवेश के लिए ही नहीं खुला होगा परन्तु स्थान (समानार्थक), साधन (विचार संप्रेषण माध्यम का प्रयोग) और विचारों (न केवल आवश्यक अपितु मानव विवेक में सम्मिलित सभी कौशलों और अनुभवों सहित) के लिए भी खुला होगा । शैक्षिक क्षेत्र में मुक्त अधिगम में विशाल परिवर्तनों और सुधारों का क्षेत्र सम्मिलित है । सामान्यत: इसे शिक्षार्थी केद्रित प्रणाली के रूप में जाना जाता है जो कि दूरस्थ शिक्षा से कहीं ज्यादा विस्तृत है | मुक्त अधिगम प्रणाली का उद्देश्य सामाजिक या शैक्षिक असमानताओं को दूर करना और पारंपरिक महाविदयालयों या विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान न किए जाने वाले अवसर उपलब्ध कराना है । शैक्षिक अवसरों की सुविचारित ढंग से आयोजना की जाती है ताकि समाज के विशाल समुदाय की शिक्षा तक पहुंच उपलब्ध हो तथापि इसमें न केवल प्रवेश, स्थान, विधि के संबंध में लचीलापन है अपितु पाठ्य क्रमों के चयन और संयोजन, मूल्यांकन और पाठ्यक्रम पूर्णता इत्यादि में भी लचीयापन है। जितनी अधिक संख्या में इन प्रतिबंधों को उपेक्षित किया जाता है उतना ही इसकी उदारता का स्तर ज्यादा होता है । अत: दूरस्थ शिक्षा, शिक्षा के प्राप्त करने के साधनों पर पहले बल देती है और बाद में उद्देश्यों और शैक्षिक प्रक्रिया की विशेषता पर | जैसा कि भारतीय मुक्त विश्वविद्यालयों के संस्थापक प्रो. राम रेड्डी (1988) ने कहा, “इसका उद्देश्य सभी स्थानों पर रह रहे अधिकांश लोगों को शैक्षिक सुविधाएं अर्थात शिक्षा तक विस्तृत पहुंच प्रदान करना है ।“ विश्व के कई देशों ने मुक्त अधिगम दर्शन-शास्त्र अपनाया है और उन्होंने परिवर्तनशील शिक्षा प्रदान करने और दूरस्थ शिक्षा' को बल प्रदान करने के लिए मुक्त विश्वविद्यालय शुरू किए हैं । मुक्त विश्वविद्यालयों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं (रेड्डी,1988)

* पारंपरिक विश्वविदयालयों की तरह ये स्वायत्तशासी निकाय हैं और स्वयं निर्णय लेने में स्वतंत्र हैं ।
*वे अनुदेशात्मक उद्देश्यों और अपने अधिगम उद्यमों में दूरस्थ शिक्षार्थियों की सहायता के लिए बहुविध मीडिया का प्रयोग करते हैं |
*उनके पास प्रबल शिक्षार्थी सहायता प्रणाली है |
*विशेषज्ञों के दल द्वारा उच्च गुणत्ता युक्त सामग्रियां तैयार की जाती हैं । प्रवेश अर्हताएँ लचीली और नम्य हैं ।
*शिक्षार्थी, अपनी गति, अपने स्थान पर अपनी सुविधानुसार अध्ययन कर सकता है ।
*शिक्षा की गुणता में एकरूपता है क्योंकि शिक्षार्थी जहां से भी इस तक पहुंचना चाहें वहीं से उसी उच्च गुणता शिक्षा तक उनकी पहुंच होती है । (रेड्डी,1988)

दार्शनिक आधार (Philosophical Foundation)

कई सिद्धांतवादियो ने मुक्त दूरस्थ अधिगम के बारे में अपना सिद्धांत विकसित किया है। आइए दूरस्थ शिक्षा से संबंधित कुछ सुप्रसिद्ध सिद्धांतों पर चर्चा करते हैं (श्रीवास्तव, 2006 से उद्धृत)

शिक्षा का औद्योगिकीकृत रूप (Industrialized from of Education)

ओटो पीटर्स (1973) का सिद्धांत प्रभावशाली है जिन्होंने दूरस्थ शिक्षा की व्याख्या औद्योगिक उत्पादन के वैज्ञानिक रूप में की है: पाठ्यक्रम दल में, उत्पादन में विभिन्न भूमिका वाले प्रत्येक सदस्य के साथ श्रम विभाग और ज्ञान का प्रचार- प्रसार यंत्रीकरण, क्योंकि ज्ञान का प्रचार प्रसार; एसेम्बली लाइन प्रोडक्शन सामूहिक उत्पादन द्वारा प्राप्त किया गया क्योंकि इसी पाठ्यक्रम की प्रतियाँ की संख्या जिनका उत्पादन हो सके या पाठ्यक्रम का एक भार उत्पादन होने के पश्चात जितने शिक्षार्थी इसका अध्ययन कर सके, सिद्धांत रूप में इसकी कोई सीमा नहीं है।

स्वतंत्र अध्ययन (Intependent Study)

__एक अन्य सिद्धांतवादी चार्ल्स वैडमेयर (1977) जो 1930 में प्रभावशाली था, उन्होंने दूरस्थ शिक्षा को आजीवन अधिगम के प्रावधान में आशावादी कार्य माना जिसमें शिक्षार्थी शिक्षकों से स्वतंत्र हैं जिसे उन्होंने स्वतंत्र अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है । माइकल मूर (1973) ने भी वैडमेयर (1977) की धारणा की पुष्टि की और उन्होंने स्वतंत्र अध्ययन की दो विवेचनात्मक विशेषताओं नामश: डायलॉग और वैयक्तिक अध्ययन पर बल देते हुए इसे ओर अधिक सुस्पष्ट किया । मूर के अनुसार डायलॉग की व्याख्या प्रभावी शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करने वाली शैक्षिक अन्योन्य क्रिया के रूप में की जा सकती है |

विशिष्टीकरण, एक विशेष शिक्षार्थी के उद्देश्यों के संबंध में कार्यक्रम की प्रतिक्रियाशीलता के विस्तार का माप है | मूर के अनुसार शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच की दूरी स्थानिक रूप में नहीं मापी जानी चाहिए बल्कि डायलॉग और वैयक्तिकरण के रूप में मापी जानी चाहिए । इन दोनों संघटकों का स्तर जितना अधिक होगा, शिक्षात्मक दूरी उतनी ही कम होगी और विलोमत: इन संघटकों का कम होना, पाठ्यक्रम/कार्यक्रम को अत्यधिक दूरस्थ बना देगा ।

उन्होंने आगे कहा कि दूरस्थ शिक्षार्थी एक स्वतंत्र शिक्षार्थी था क्योंकि वह उपस्थिति की बंदिश/क्रूरता से मुक्त था/थी और वह अपनी गति, स्थान और समय के अनुसार अध्ययन कर सकता था । अध्ययन के इस प्रकार की, स्वनिदेशित अधिगम के रूप में व्याख्या की जा सकती है जिससे शिक्षार्थी में परिपक्वता विकसित होती है । शिक्षा के इस प्रकार का संकेन्द्र शिक्षण की अपेक्षा अधिगम पर अधिक होता है । अत:, इसे शिक्षार्थी केंद्रित प्रणाली भी कहा गया है |


दिशा-निर्देशित शैक्षिक वार्तालाप (Guide Didactic conversation)

दूरस्थ शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण सिद्धांतवादी हॉल्मबर्ग (1981) था जिसने दूरस्थ शिक्षा में शिक्षण अधिगम वार्तालाप का सिद्धांत प्रस्तुत किया । उन्होंने जो विचार प्रस्तुत किया वह यह था कि दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम विचार संप्रेषण प्रक्रिया निरूपित करता है जिसमें वार्तालाप विशेषता का होना महसूस किया गया केवल तभी शिक्षार्थी वैयक्तिक टैक्स बुक विशेषता की अपेक्षा अधिक प्रेरित और सफल होगें । वार्तालाप विशेषता, शिक्षार्थियों की एसाइनमेंटस पर शिक्षक द्वारा टिप्पणियाँ, या टेलीफोन/फैक्स/ई-मेल/डाक इत्यादि द्वारा शिक्षक की टिप्पणियां और मुद्रित व रिकार्डिड विषय वस्तु में वार्तालाप विधि अपना कर जिसमें शिक्षार्थी भावनात्मक रूप से तथा विचार विनिमय व विकास में सम्मिलित हो, के द्वारा वास्तविक विचार संप्रेषण किया जा सकता है । जैसे कि कक्षाकक्ष में एक लेक्चर अनुदेश देता है और विषय-वस्तु को स्वाभाविक ढंग से समझाने का प्रयास करता है व विषय के प्रस्तुतीकरण में वार्तालाप विधि अपनाता है | तथ्यत: इसी ढंग से हॉल्मबर्ग ने दूरस्थ शिक्षार्थियों के लिए स्व अधिगम सामग्रियों के विकास में वार्तालाप विधि अपनाने का संदर्भ दिया है जिसे कईयों ने टेक्स्ट में शिक्षक के रूप में संदर्भित किया है |

__ उन्होंने इसे दिशानिर्देशित शैक्षिक वार्तालाप के रूप में माना है और दूरस्थ शिक्षा के सात आधार तत्व बताए हैं नामश: शिक्षण और अधिगम पक्षों के बीच वैयक्तिक संबंधों का सृजन; सुविकसित स्वअनुदेशात्मक सामग्रियों, अभ्यास में भौद्धिक सुख, भाषा और परंपरागत मेत्रीपूर्ण वार्तालाप को प्रोत्साहित करना, शिक्षार्थी द्वारा प्राप्त संदेश संवादोंचित लय में हो, सदैव सवादोचित अधिगम का प्रयोग किया जाए और अन्तत: सुव्यवस्थित अध्ययन के लिए आयोजना और दिशा-निर्देशन आवश्यक है। अत: हॉल्मबर्ग का प्रस्ताव पीटर के विश्लेषण' से अधिक मानवीय है।

सहकारी अधिगम (Cooperative Learning)
आज, ऑन लाइन अधिगम के प्रारंभ से (जो दूरस्थ शिक्षा के लिए सबसेट थे हमारे पास जॉनसन और जॉनसन (1990) और मैक कोनेल (2000)द्वारा प्रस्तुत सहकारी अधिगम हे जिसमें अधिगम प्रक्रिया को एक वैयक्तिक अनुसरण के रूप में नहीं बल्कि एक सामाजिक प्रक्रिया के भाग के रूप में देखा गया है जहां शिक्षार्थी एक दूसरे की सहायता करते हैं सुखद और प्रेरक प्रक्रिया द्वारा विषय में समझ विकसित करते हैं साथ ही ज्ञान वृद्धि करते हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर संभव नहीं होता बल्कि केवल समूह में संभव है। इस प्रकार का अधिगम विशेषकर कम्प्यूटर सहाय्य अधिगम वातावरण या वैब आधारित शिक्षा/ऑनलाइन अधिगम/ई-लर्निग में संभव है।

अत: अब ज्ञान का एकतरफा संचरण प्रचलन में नहीं है क्योंकि यह पत्राचार शिक्षा में था जो शिक्षार्थी की निष्क्रियता की ओर संकेत करता था। सहकारी अधिगम इस बात का सबसे उत्तम उदाहरण है कि दूरस्थ शिक्षा किस प्रकार से वर्षों से विकसित होते हुए शिक्षार्थी और उसके अधिगम पर संकेन्द्रित होकर सक्रिय अन्योन्य प्रक्रिया के चरम बिंदु तक पहुंची है।

दूरस्थ शिक्षा की अवस्थाएं (Generations of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा अपने आरंभ से ही अनुदेश वितरण और दूरस्थ शिक्षार्थियों के अधिगम प्रयासों में सहायता के लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने में अग्रसर रही है। जेम्स टेलर (2000) के अनुसार दूरस्थ शिक्षा विभिन्न प्रौद्योगिकियों के प्रयोग पर आधारित पांच अवस्थाओं द्वारा विकसित हुई है जिनका वर्णन नीचे किया गया है:

दूरस्थ शिक्षा का प्राचीनतम रूप पत्राचार शिक्षा मॉडल है अर्थात एक शिक्षार्थी मुख्यत: डाक द्वारा भेजी गई मुद्रित सामग्री द्वारा अन्य शिक्षार्थियों और अपने शिक्षक । अनदेशक से अलग अध्ययन करता है। (उदाहरण के लिए, भारत में पारंपरिक विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध पत्राचार पाठयक्रम संस्थान)।

दूरस्थ शिक्षा की पांच अवस्थाएं
(Five generations of Distance Education)

प्रथम अवस्था ।> पत्राचार मॉडल> मुद्रण प्रोद्योगिकी

दवितिया अवस्था |> मल्टीमीडिया मॉडल > मुद्रण और श्रव्यदृश्य प्रोद्योगिकी

तृतीय अवस्था > दूर अधिगम मॉडल > दूर संचार प्रोद्योगिकीयाँ

चतुर्थ अवस्था | > सुनम्य अधिगम > मॉडल इन्टरनेट

पंचम बौद्धिक > सुनम्य अधिगम मॉडल > इन्टरनेट और वेब

शिक्षा का अगला रूप मल्टीमीडिया मॉडल है जिसमें दूरस्थ शिक्षार्थी की सहायता के लिए और अनुदेशों के लिए मुद्रण के साथ-साथ अन्य प्रौद्योगिकियों जैसे कि सीमित स्वरू सत्रों सहित श्रव्यादृश्य, टेप, रेडियो और दूरदर्शन. | प्रसारण, टेलीफोन, टेलीकांफ्रेसिंग इत्यादि प्रयोग की जा रही हैं । (उदाहरण के लिए UKOU(UK),IGNOU (India),From Universitat(Germany)

तीसरा रूप दूर अधिगम मॉडल है जिसमें संस्थानों ने कैम्पस में स्थान की कठिनाई को कम करने के लिए, शिक्षार्थियों को उनके घर पर पाठयक्रम वितरण के लिए दूरदर्शन का प्रयोग शुरू किया । मूल दूर अधिगम मॉडल में तीन तत्व सम्मिलित हैं जैसे कि टेक्सट अध्ययन गाइड और वीडियों पाठों तथा आवसरिक कैम्पस बैठकों की एक श्रृंखला (उदाहरण के लिए सेन्ट्रल रेडियो एंड टी वी यूनिवर्सिटी, चीन) ।

दूरस्थ शिक्षा का चौथा रूप सुनम्य अधिगम मॉडल है । प्रधान प्रौद्योगिकीय कारक जो इस मॉडल तक ले गए हैं इंटरनेट और कम्प्यूटर आधारित सम्प्रेषण हैं दूरस्थ शिक्षा में पहले से प्रयोग में लाए जा रहे अन्यों के साथ इलैक्ट्रॉनिक मेल से लेकर वर्ल्ड वाइड वैब और सी.डी. रोम शिक्षार्थियों को किसी भी समय, कहीं भी पढ्ने का अवसर प्रदान करते हैं | ये उन्हें दोनों ने केवल तुल्य कालिक के साथ साथ तुल्यकालिक अन्योन्य क्रिया के लिए अधिक स्वस्थ वातावरण प्रदान करते हैं बल्कि विषय वस्तु व इसके मार्ग पर भी विस्तृत नियंत्रण रखते हैं तथा इस विषय वस्तु द्वारा एक नए प्रकार के अधिगम समुदाय का सृजन करते हैं । ये मुख्य विशेषताएं अतुल्यकालिक अन्योन्य क्रियाशीलता, संसाधन - आधारित, शिक्षार्थी - केंद्रित, स्वत: प्रवर्तित और साथ ही साथ स्वायत्त स्वतंत्र अधिगम पाठ्यक्रम को पुन: आकार दे रहे हैं । यह शिक्षार्थी को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार जो कि संस्थान तत्काल प्रदान करता है पाठ्यक्रम को अपने अनुकूल बनाने की अनुमति देता है । निरूपित विशेषताएँ अब भौगोलिक दूरी और शिक्षार्थी स्वतंत्रता नहीं है अपितु शिक्षार्थी नियंत्रण एक सक्रिय शिक्षार्थी वातावरण है जो संसाधनों अन्य शिक्षार्थियों और अनुदेशक के साथ शिक्षार्थी अन्योन्य क्रिया पर बल देता है । (उदाहरण के लिए, विश्व के मूल/ऑन लाइन विश्वविद्यालय) 
विश्व के कुछ प्रमुख मूल विश्वविद्यालयों की सूची नीचे दी गई है

1. African virtual university,www.avu.org

2. Bool virtual university,www.bool.tit.ac.kr

3. British aerospace virtual university, (UK),www.bac.co.uk

4. California virtual university,www.california.edu

5. Canada virtual university

6. Contact North,www.cnorth.edu.on.ca

7. CU Online (Colorado University), www.ccconline.org.

www.cuonline.edu

8. Cyber ED(University of Massachusetts Darthmouth),

www.umassd.edu/cybered/distancelearninghome.html

9. Digital Think,www.digitalthink.com

10. Edu.com, www.educom.edu 11. Knowledge Online (Mind Extension University),

www.mcu.edu/meu/

12. Korea University Consortium,www.knou.ac.ka

13. National Technological University,www.ntu.edu

14. Net Varsity, www.niitnetvarsity.com

15. Online University),www.uol.com 16. The global learning Network of NKI Norway),

www.nettakolen.com

17. virtual Online University (Athena University) www.athena.edu

18. virtual University (Athena University) www.vuc.com

19. virtual University of Hagan(Germany),www.femuni.de

20. Western Governors University,www.wgu.edu

मुक्त दूरस्थ अधिगम के उदीयमान मॉडल (Emerging Models of Open Distance Learning)

इस पृष्ठभूमि के विपरीत, अधिक से अधिक संस्थान अपने कार्यालयों के वितरण के लिए इंटरनेट प्रौद्योगिकी अपना रहे हैं। अत: ऐसे दूरस्थ शिक्षा संस्थानों की देन को निरंतरता के आधार पर भौतिक से वास्तविक रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। वास्तविक शिक्षा की वृद्धि और विकास नए संगठनात्मक रूपों को उदीयमान होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। जिनमें से कुछ का वर्णन नीचे किया गया है (मंजूलिका और रेड्डी, 2002; श्रीवास्तवा 2006)

मॉडल 1 (Model 1)

नेटवर्क मॉडल (Networked model): संस्थान जो पाठ्क्रमों के शिक्षण और वितरण के लिए तुल्यकालिक/अतुल्यकालिक रूप से डिजीटल नेटवर्क का प्रयोग करते हैं। शिक्षार्थी सहायता भी

ऑन लाइन प्रदान करते हैं। ये जहाँ भी स्थित होते हैं बेहतर संसाधनों की तरफ आकर्षित करते हैं। उदाहरण: अफ्रीकन वर्चअल यूनीवर्सिटी (अफ्रीका), आस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटीस ओवरसीज़ कैम्पसिस और विश्व के सभी मूल विश्वविद्यालय।

मॉडल 2 (Model 2)

अग्रवर्ती मुक्त दूरस्थ शिक्षा मॉडल:(Advanced Open distance education Model)- संस्थान जो दूरस्थ शिक्षण के लिए पहले से विद्यमान पाठयक्रमों को समर्थ बनाने के लिए इंटरनेट आधारित अनुदेश और सहायता अपनाते हैं। उदाहरण,UKOU,KNOU,IGNOU, इत्यादि । आस्ट्रेलिया के कुछ वैत प्रणाली के विश्वविद्यालय इस श्रेणी के अंतर्गत आएगें जिन्होंने अपने दूरस्थ शिक्षार्थियों को अनदेश और सहायता दोनों प्रदान करने के लिए दूररथ शिक्षा प्रौदयोगिकी की तीसरी अवस्था अपनाई है।

मॉडल 3 (Model 3)

संघ प्रमाणन मॉडल:- (Consortium Certificate Model) विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रदत्त दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रमों का एकत्रीकरण। ऐसा संघ अनुदेश नहीं देता परन्तु प्रत्यायक प्रदान करने और विविध सेवाएं जैसे कि रजिस्ट्रेशन, मूल्यांकन, अधिगम रिकार्ड इत्यादि प्रदान करने के लिए प्राधिकृत हैं। रीजेंट कालेज (यू एस) वैस्टर्न गवर्नरस यूनीवर्सिटी (यू.एस.ए.) ओपन लर्निंग एजेंसी (कनाडा) इत्यादि इसके उदाहरण हैं।

मॉडल 4 (Model 4)

__ संघ लोक प्रदाता मॉडल (Consortium service Provider Modal): यह एक अन्य संघ है जो अन्य संस्थानों द्वारा प्रदत्त पाठयक्रमों को एकत्रित रूप में प्रदान करता है परन्तु इसे प्रमाणन/पुरस्कार इत्यादि देने का अधिकार नहीं है। केलीफोर्निया वर्चयुल यूनिवसिर्टी (यू.एस.ए) इत्यादि इसके उदाहरण हैं।



Kkr Kishan Regar

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