पाठ्य वस्तु विश्लेषण का अर्थ, उदाहरण व स्त्रोत
पाठ्य-वस्तु विश्लेषण का अर्थ
आई.के. डेवीज ने अपनी पुस्तक 'मेनिजमेण्ट अफ लर्निंग' में pathya vastu vishleshan का उल्लेख किया है तथा इसकी परिभाषा दी है।
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"अनुदेशन तथा शिक्षण की पाठ्य-वस्तु के प्रकरण का उसके तत्त्वों में
विश्लेषण करके उन्हें तार्किक ढंग से क्रमबद्ध रूप संश्लेषण करने को pathya vastu vishleshan कहते हैं।"
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इस परिभाषा से
पाठ्य-वस्तु के व्यावहारिक स्वरूप का बोध होता है कि इसमें पाठ्य-वस्तु के प्रकरण
का तत्त्वों में विभाजित किया जाता है और अधिगम की सुविधानुसार उन्हें तार्किक
क्रम में नियोजित किया जाता है।
पाठ्य वस्तु विश्लेषण |
पाठ्य-वस्तु विश्लेषण विधि :
pathya vastu vishleshan की अनेकों विधियाँ
है। इनका विकास उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप से लिखने की विधि के साथ हुआ है।
मेगर तथा मिलर ने (1962) में उद्देश्यो को व्यावहारिक रूप में
लिखने की विधियों का विकास किया। साथ ही (1962) मे होमे ने pathya
vastu vishleshan की विधि का विकास किया। इसके बाद 'ग्लेसर' ने (1963) तथा 'मेकसर' ने (1965) में pathya vastu vishleshan की विधियों का विकास किया। 'डेवीज' की अविधा अधिक उपयोगी मानी जाती हैं। pathya vastu vishleshan के लिये निम्नांकित बातों का बोध होना चाहिये।
1. pathya vastu vishleshan का स्रोत
2. प्रकरण के तत्वों
की विशेषतायें
3. तत्त्वों की
क्रम-बद्ध व्यवस्था
पाठ्य-वस्तु के विश्लेषण में उसके
स्रोत, तत्त्वों की विशेषताओं तथा तत्त्वों
की तार्किक क्रम ने व्यवस्था के ज्ञान तथा कौशल के आधार पर अभिक्रमिक पाठ्य-वस्तु
पाठ्य-वस्तु
विश्लेषण का उदाहरण |
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इकाई |
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प्रकरण |
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शिक्षण बिन्दु |
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1. पाठ्य-वस्तु विश्लेषण के स्त्रोत :
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अभिक्रमिक पाठ्य-वस्तु-विश्लेषण के लिये अनेकों स्रोतों का उपयोग करता है। यह सर्जनात्मक कार्य माना जाता है। पाठ्य-वस्तु के प्रकरण में निहित तत्त्वों तथा अनुक्रियाओं की पहचान वह तभी कर सकता है, जब कि उसे pathya vastu vishleshan के स्रोत का उपयोग करना आता हो। अभिक्रमिक का पाठ्य-वस्तु के प्रकरण का स्वामित्त्व होना आवश्यक होता है। पाठ्य-वस्तु-विश्लेषण में निम्नांकित स्त्रोतों का उपयोग किया जाता है।पाठ्य वस्तु विश्लेषण, pathya vastu vishleshan , विषय वस्तु क्या होता है, विषय वस्तु की रोचकता, व्याख्या और विश्लेषण, विषय वस्तु के प्रकार, विषय वस्तु का ज्ञान, विषय वस्तु का मतलब इंग्लिश में
(2) प्रमाणिक पाठ्य-पुस्तकों का अध्ययन -
जिस प्रकरण पर अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री को तैयार करना होता है उस
पाठ्य-वस्तु की शुद्धता को जानने के लिये अभिक्रमित को उससे सम्बन्धित प्रमाणिक
पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिये।
(3) छात्रों की आवश्यकता -
किसी प्रकरण का
स्वरूप निश्चित नहीं होता अपितु अधिक व्यापक होता है। अधिकाँश विषयों के प्रकरण को
माध्यमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक पढ़ाया जाता है। इसलिये यह मालूम होना
आवश्यक है कि प्रकरण का कितना स्वरूप प्रस्तुत किया जाय। इसके लिये अभिक्रमित को
छात्रों के पूर्व व्यवहार तथा छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिये।
(4) शैक्षिक आवश्यकता -
सामाजिक तथा
राष्ट्र की आवश्यकताओं के लिये शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। विभिन्न शिक्षा के
विषयों को विभिन्न शैक्षिकआवश्यकताओं के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
किसी प्रकरण का क्यों प्रस्तुतीकरण करना है? इसका उत्तर शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। अतः यह अभिक्रमक को प्रकरण की शैक्षिक उपयोगिता का बोध होना चाहिये।पाठ्य वस्तु विश्लेषण, pathya vastu vishleshan , विषय वस्तु क्या होता है, विषय वस्तु की रोचकता, व्याख्या और विश्लेषण, विषय वस्तु के प्रकार, विषय वस्तु का ज्ञान, विषय वस्तु का मतलब इंग्लिश में
(5) परीक्षा प्रणाली का स्वरूप -
अनुदेशन के नियोजन
में परीक्षा प्रणाली का स्वरूप एक आधार प्रदान करता है। निबन्धात्मक परीक्षा के
लिये महत्वपूर्ण प्रकरणों तथा तत्वों को अनुदेशन की व्यवस्था में महत्त्व दिया
जाता है परन्तु वस्तुनिष्ठ के परीक्षा में सूक्ष्म तत्वों के लिये अनुदेशन की
व्यवस्था की जाती है। इस प्रकार पाठ्य-विश्लेषण के स्वरूप को परीक्षण प्रणाली
निर्धारित करती है।
(6) अनुदेशन सहायक सामग्री -