उपलब्धि परीक्षण
* प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अनेक प्रकार का ज्ञान तथा कौशल प्राप्त करता है , इस ज्ञान तथा कौशल में कितनी दक्षता व्यक्ति ने प्राप्त की है इसका पता उस ज्ञान तथा कौशल के उपलब्धि परीक्षण से ही चलता है । विद्यालय की विभिन्न कक्षाओं में अनेक प्रकार के छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते है , समान मानसिक योग्यताओं से सम्पन्न न होने के कारण वे समय की एक ही अवधि में विभिन्न विषयों तथा कुशलताओं में विभिन्न सीमाओं तक प्रगति करते है उनकी इस प्रगति , प्राप्ति या उपलब्धि का मापन या मूल्यांकन करने के लिए उपलब्धि परीक्षण की व्यवस्था की गयी ।
* उपलब्धि परीक्षायें वे परीक्षायें है जिनकी सहायता से विद्यालय में पढ़ाये जाने विषयों और सिखायी जाने वाली कुशलता में छात्रों की सफलता या उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।
* प्रेसी , रॉबिन्सन व हॉरक्स - " उपलब्धि परीक्षण का निर्माण मुख्य रूप से छात्रों के सीखने के स्वरूप और सीमा का माप करने के लिए किया जाता है । है ।
* गैरीसन व अन्य - " उपलब्धि परीक्षा बालक की वर्तमान योग्यता या किसी विशिष्ट विषय के क्षेत्र में उसके ज्ञान की सीमा मूल्यांकन करती हैं । "
* इबेल - " उपलब्धि परीक्षण वह अभिकल्प है जो विद्यार्थी के द्वारा ग्रहण किए गए ज्ञान , कुशलता व क्षमता का मापन करता है। "
उपलब्धि परीक्षण की विशेषताएँ
* उपलब्धि परीक्षण दि हुए ज्ञान तथा कौशल का मापन करता है ।
* उपलब्धि परीक्षण में प्रश्नों की रचना उपलब्धि की मात्रा की गणना तथा व्यक्ति की प्रगति की मात्रा का मापन करने के लिए किया जाता है ।
* विषयों की मित्रता के अनुसार अलग - अलग परीक्षण बनाये जाते है ।
* उपलब्धि परीक्षण में अर्जित ज्ञान का मापन उसका साध्य होता है ।
* इससे वर्तमान प्रगति की जानकारी मिलती है ।
* उपलब्धि परीक्षण व्यक्ति की उपलब्धि क्षमता का प्रदर्शन करता हैं ।
* यह ज्ञान तथा कौशल का मापन करता है ।
* इस परीक्षण द्वारा ज्ञान तथा उपलब्धि की लब्धि ज्ञात करते हैं ।
* इससे शिक्षण व अध्ययन की सफलता का ज्ञान होता है ।
उपलब्धि परीक्षण के प्रकार
* शिक्षार्थियों की उपलब्धि को जानने के लिए दो प्रकार के परीक्षण बनाये जाते हैं-
( 1 ) प्रमापीकृत परीक्षण तथा( 2 ) अप्रमापीकृत परीक्षण
* डगलस एवं हॉलेण्ड के अनुसार-
( 1 ) प्रमापित परीक्षण ,( 2 ) शिक्षक निर्मित परीक्षण ,( 3 ) मौखिक परीक्षण ,( 4 ) शिक्षक निर्मित परीक्षण ,( 5 ) निबन्धात्मक परीक्षण
* उपलब्धि परीक्षण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं
1. प्रमापीकृत परीक्षण / मानक परीक्षण / प्रमाणित परीक्षण -
इसके अर्थ को स्पष्ट करते हुए थार्नडाइक व हेगम ने कहा है कि प्रमापित परीक्षण का अभिप्राय केवल यह है कि सब छात्र समान निर्देशों और समय की समान सीमाओं के अन्तर्गत समान प्रश्नों का उत्तर देते है । प्रमापित परीक्षणों के कुछ उल्लेखनीय तथ्य निम्नलिखित है -
• इनका निर्माण एक विशेषज्ञों तथा मनोवैज्ञानिकों द्वारा निर्मित किए जाते हैं ।
• इनका निर्माण परीक्षण निर्माण के निश्चित नियमों तथा सिद्धान्तों के अनुसार किया जाता है ।
• इनका निर्माण विभिन्न कक्षाओं तथा विषयों के लिए किया जाता है । एक कक्षा तथा एक विषय के लिए अनेक प्रकार के परीक्षण होते है ।
• जिस कक्षा के लिए जिन परीक्षणों का निर्माण किया जाता है , उनको विभिन्न स्थानों पर उसी कक्षा के सैकड़ों- हजारों बालकों पर प्रयोग करके निर्दोष बनाया जाता है या प्रमापित किया जाता है ।
• निर्माण के समय इसमें प्रश्नों की संख्या बहुत अधिक रहती है , लेकिन विभिन्न स्थानों पर प्रयोग किये जाने के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले अनुभवों के आधार पर उनकी संख्या में काफी कमी की जाती है ।
• इनका प्रकाशन किसी संस्था या व्यापारिक फर्म के द्वारा किया जाता है । जैसे- भारत में सेन्ट्रल इन्स्ट्रीटयूट ऑफ एजुकेशन ,NCERT , जामिया मिलिया , ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी , प्रेस इत्यादि । -
• वैथ एवं विश्वसनीय होते हैं ।
• टरमन का बुद्धि लब्धि परीक्षण एवं पीटर सालोवे का संवेगात्मक बुद्धि परीक्षण प्रमापीकृत परीक्षण के उदाहरण हैं।
• बोर्ड द्वारा पूरे राज्य में होने वाले परीक्षण प्रमापीकृत होते है ।
2. अप्रमापीकृत परीक्षण / अनौपचारिक परीक्षण / अध्यापककृत परीक्षाएं -
यह परीक्षण आत्मनिष्ठ तथा वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार के होते हैं । जैसे- भारत में इस प्रकार के परीक्षणों का प्रचलन है ।
• अध्यापक द्वारा बनाए जाते है ।
• छात्रों के परीक्षण के लिए समय - समय पर शिक्षक द्वारा बनाए जाते हैं ।
• यह लिखित , मौखिक एवं प्रायोगिक हो सकते है ।
• शिक्षक अपनी आवश्यकता के अनुसार निर्माण करता है ।
• जैसे- कक्षा - कक्ष में बनाया गया पाठ्यक्रम से संबंधित कोई भी परीक्षण ।
3. मौखिक परीक्षण -
एक समय ऐसा था , जब विद्यालयों तथा उच्च शिक्षा संस्थाओं में मौखिक परीक्षाओं की प्रधानता थी , लेकिन आधुनिक युग में लिखित परीक्षाओं का प्रचलन होने के कारण इनका महत्व बहुत कम हो गया है । फिर भी प्राथमिक कक्षाओं तथा उच्च कक्षाओं में विज्ञान के विषयों की प्रयोगात्मक परीक्षाओं एवं वायवा के रूप में अब भी इनका अस्तित्व शेष है । मौखिक परीक्षा का मूल्यांकन करते हुए राईटस्टोन ने कहा है कि मौखिक परीक्षा कितनी भी अच्छी क्यों न हो , पर छात्रों को अंक प्रदान करने के लिए एक निम्र साधन है । इसका महत्व केवल निदानात्मक साधन के रूप में और उन परिस्थितियों में है , जिनमें लिखित परीक्षाओं का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।"
4. निबन्धात्मक परीक्षण -
सर्वाधिक प्रचलित उपलब्धि परीक्षण है । इन्हें शिक्षक बनाता है । इनमें प्रश्नों का उत्तर निबंध के रूप में देना पड़ता है , इसीलिए इनको निबन्धात्मक परीक्षण कहा गया है । इस परीक्षा प्रणाली में छात्रों को कुछ प्रश्न दिये जाते है । जिनको उत्तर उनको निर्धारित समय पर लिखने पड़ते है ।
5. वस्तुनिष्ठ परीक्षण -
वस्तुनिष्ठ परीक्षण वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का विकास करने का सराहनीय कार्य जे.एम. राइस का है । उसने इन परीक्षणों की रचना , प्रयोग और अंकन इत्यादि के सम्बन्ध में अनेकों मौलिक कार्य किए हैं । उसके कार्यों से प्रोत्साहित होकर स्टार्च व इलियट ने अनेक अध्ययन करके इन परीक्षणों की उपयोगिता को सिद्ध किया है । फलस्वरूप इनके प्रयोग पर अधिकाधिक बल दिया जाने लगा है । वस्तुनिष्ठ परीक्षा , वह परीक्षा है , जिनमें विभिन्न परीक्षक स्वतन्त्रापूर्वक कार्य करने के बाद अंकों के सम्बन्ध में एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं या समान उत्तरों के लिए समान अंक प्रदान करते हैं । गुड का कहना है कि -
• वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रकार
1 ) सरल पुनः स्मरण टेस्ट
2 ) सत्य - असत्य टेस्ट
3 ) बहुसंख्यक चुनाव टेस्ट
4 ) मिलान टेस्ट
5 ) पूरक टेस्ट
* अच्छे उपलब्धि परीक्षण की विशेषताएँ / तत्व
• वैधता ( VALIDITY )
• विश्वसनीयता ( RELIABILITY )
• वस्तुनिष्ठता ( OBJECTIVITY )
• व्यापकता ( COMPREHENSIVENESS )
• विभेदीकरण ( DIFFERENTIATION )
• व्यावहारिकता ( USABILITY )
• सरलता ( SIMPLICITY )
• रोचकता ( JUICINESS )
• मितव्ययता ( THRIFT )
* निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षण -
विद्यार्थियों को पढ़ाए जाने वाले विषय में उनकी तथा कार्य कुशलता का योग्यता एवं क्षमता का तथा कार्य कुशलता का मापन करना उपलब्धि या निष्पत्ति परीक्षण कहलाता है । अर्थात् दूसरे शब्दों में जब एक अध्यापक पढ़ाने के पश्चात यह जानने की कोशिश करता है कि छात्रों ने निर्धारित उद्देश्यों की किस सीमा तक उपलब्धि प्राप्त की है , यही उपलब्धि परीक्षण है ।
* उपलब्धि परीक्षण के माध्यम से समस्यात्मक बालकों की पहचान की जाती है अर्थात् वह बालक जो निर्धारित सीमा तक अधिगम नहीं कर पाते हैं ।
* उपलब्धि परीक्षण के द्वारा यदि कोई भी समस्यात्मक बालक नहीं मिलता हो आगे के परीक्षण करने की आवश्यकता नही होती । यदि उपलब्धि परीक्षण से एक भी समस्यात्मक बालक यानि वह बालक मिल जाता है जिसने निर्धारित या आवश्यक सीमा तक अधिगम नही किया , तब आगे के परीक्षण करना आवश्यक हो जाता है ।
* निदानात्मक परीक्षण -
जब उपलब्धि परीक्षण के द्वारा समस्यात्मक बालक की पहचान कर लेते हैं , तब निदानात्मक परीक्षण के द्वारा बालक की समस्या के कारणों की पहचान करते हैं , तत्पश्चात समस्या के कारणों की पहचान के बाद उनको दूर ( उपचार ) करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण करते हैं । निदानात्मक परीक्षण केवल समस्यात्मक बालकों का करते हैं यानि उन बालकों का जिन्होने निर्धारित सीमा तक अधिगम नही किया ।
* क्रो एवं को - " निदानात्मक परीक्षणों का निर्माण , छात्रों की अधिगम सम्बन्धी विशिष्ट कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करने या निकाल करने के लिए किया जाता है । पूर्ण सावधानी से निर्मित किए गए निदानात्मक परीक्षण में किसी विशेष विषय के अधिगम के किसी विशेष पक्ष पर बल दिया जाता है ताकि छात्र की योग्यताओं और कमजोरियों को ज्ञात किया जा सके और उपचारात्मक शिक्षण का प्रयोग किया जा सके ।
* योकम व सिम्पसन - निदानात्मक परीक्षण वह साधन है , जो शैक्षिक वैज्ञानिकों के द्वारा छात्रों की कठिनाइयों को ज्ञात करने में यथासम्भव उन कठिनाइयों के कारणों को व्यक्त करने के लिए निर्मित किया गया है । "
* उपचारात्मक शिक्षण -
जब निदानात्मक परीक्षण के माध्यम से बालकों की समस्या के कारण का पहचान कर लेते हैं । कारणों को दूर करने के लिए शिक्षक दोबारा से पुनः शिक्षण करता है , यहीं उपचारात्मक शिक्षण है ।
नोट -
सिर्फ समस्यात्मक बालकों को उपचारात्मक शिक्षण का आयोजन किया जाता है ।
* योकम व सिम्पसन -
उपचारात्मक शिक्षण उस विधि को खोजने का प्रयत्न करता है , जो छात्र को अपनी कुशलता या विचार की त्रुटियों को दूर करने में सफलता प्रदान करे ।उदाहरण रोगी के रोग के कारणों का पता लगाना निदानात्मक परीक्षण है और उन कारणों को दूर करना उपचारात्मक शिक्षण है ।
* उपलब्धि लब्धि ज्ञात करने का सूत्र -
• EA = शैक्षिक आयु , MA = मानसिक आयु , AQ = उपलब्धि लब्धि
• AQ = ( ACHIEVEMENT QUOTIENT )
• EA = ( EDUCATIONAL AGE )
• MA = ( MENTAL AGE )
AQ=EA/MA*100
उपलब्धि सूत्र=शैक्षिक आयु/मानसिक आयु X 100
* ब्लू प्रिंट ( नील पत्र ) -
में किसी भी विषय वस्तु या पाठ्य वस्तु से संबधित प्रश्न पत्र का निर्माण करने से पहले उसका प्रारूप तैयार किया जाता है ।
* ब्लू प्रिंट के उद्देश्य -
• ब्लू प्रिंट निर्माण के बाद हम उसके आधार पर कई प्रश्न पत्रों को अलग - अलग परीक्षा के लिए तैयार कर सकते हैं।
• ब्लू प्रिंट का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि इससे पाठ्यक्रम का कोई भी भाग नही छूटे ताकि सम्पूर्ण अध्यायों के माः बुद्धि और ज्ञान का सही आकलन हो ।
• ब्लू प्रिंट ( नील पत्र ) के माध्यम से छात्रों को अंक वितरण में सुविधा होती है ।
• ब्लू प्रिंट के कारण विद्यार्थियों के स्तर और आयु के अनुसार प्रश्न पत्र का निर्माण होता है ।
बहुत अच्छी
Awesome. .26 letters of albhabet can not define about this . really very appreciative and meaningful .🙏