मापन एवं मूल्यांकन
( MEASUREMENT & EVALUATION )
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मापन का शाब्दिक अर्थ -
मापन प्रदत्तों का अंको के रूप में वर्णन करता है । मापन किसी वस्तु का शुद्ध व वस्तुनिष्ठ रूप से वर्णन करता है । किसी भौतिक पदार्थ के गुण व विशेषताओं के परिणाम अंकात्मक रूप देने की क्रिया मापन क्रिया कहते है । कई प्रमुख विद्वान मापन को अनेक तरह परिभाषित किया है , जिनमें से कुछ परिभाषायें नीचे दी जा रही है ।
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परिभाषाएं
- एस.एस. स्टीवेन्स - " मापन किन्हीं निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है । "
- रैमर्स व रूमल - " मापन से पता चलता है कि कोई वस्तु कितनी है जबकि मूल्यांकन बताता है कि वस्तु कितनी अच्छी है । "
- माइकल तथा कार्नोस - " मापन यह बताता है कि कोई वस्तु कितनी मात्रा में है या वह कितनी कम या ज्यादा है या कितनी अधिक या कम हैं।.
करलिंगर - " मापन , नियमानुसार वस्तुओं या घटनाओं को संख्या प्रदान करना हैं । " .
ई.बी . बेस्ले - " मापन मूल्यांकन का वह भाग है जो प्रतिशत , मात्रा , अंको , मध्यमान तथा औसत आदि के द्वारा किया जाता हैं। " .
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* मापन के मुख्य कार्य
• वस्तुओं की श्रेणी व्यक्त करता है ।
- यह संख्याओं की श्रेणी व्यक्त करता है ।
वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाली नियमों को व्यक्त करता है ।
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* मापन के आवश्यक तत्व ( Essential elements of Measurement ) -
मूलतः मापन प्रक्रिया के तीन चरण है ।
1. गुणों को पहचानना - किसी भी व्यक्ति या मापन से पूर्व सर्वप्रथम उसके गुणों को पहचानकर उनकी व्याख्या की जाती है , क्योंकि मापन के अन्तर्गत व्यक्ति या वस्तु के संपूर्ण व्यवहार का अध्ययन न कर उसके केवल कुछ ही गुणों का मापन किया जाता है । जैसे- मेज या कमरे की लम्बाई , शारीरिक तापक्रम , बालक की बुद्धि एवं सृजनात्मकता , किशोर की संवेगात्मक परिपक्वता , रूचि आदि ।
2. गुणों को अभिव्यक्त करने वाली संक्रिया विन्यास को निश्चित करना - इसके माध्यम से मापन कर्ता उन गुणों को अभिव्यक्त कर सके जैसे- लंबाई मापन हेतु मीटर और टेप का प्रयोग करते है , परन्तु कुछ लम्बाई एवं दुरी का मापन इतना सरल नहीं होता है । जैसे- पृथ्वी की सूर्य से दूरी , भारत से अमेरिका की दूरी
3. गुणों को अंशो या योग की इकाईयों में मात्राकिंत करना - इसमें संक्रियाओं के निष्कर्षों को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करते है । मापन में हमारा संबंध अधिकांश रूप में इन प्रश्नो कितने तथा कितनो में रहता है ।
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* मापन के प्रकार-
मनोवैज्ञानिक मापन के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं ।
मापन एवं मूल्यांकन |
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* मापन के कार्य-
मूलतः प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में भिन्न प्रकृति का होता है । व्यक्ति विशेष की अपनी विशेष योग्यता होती है , इस प्रकार की वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान प्राप्त करने का एक मात्र साधन मापन ही है । मापन के निम्न मुख्य कार्य है ।
1. वर्गीकरण ( Classification ) - पूरी दुनिया में कोई भी दो व्यक्ति एक समान नही है । वे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक दृष्टिकोण से एक - दूसरे से भिन्न होते है । प्रत्येक व्यक्ति क्षमता , रूचि एवं व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों की दृष्टि से भिन्न होता है । मापन का एक प्रमुख कार्य विभिन्न आधार का वर्गीकरण करना है ।
2. पूर्व कथन ( Prediction ) - इसका तात्पर्य व्यक्ति की वर्तमान योग्यता के आधार पर भविष्य के बारे में घोषणा करना है । अनेक बुद्धि परीक्षणों के आधार पर लम लोग किसी भी व्यक्ति विशेष के संबंध में निर्णय लेते है ।
3. तुलना ( Comparison ) - तुलना मापन की एक अतिमहत्वपूर्ण कार्य है । प्रत्येक परीक्षा का उद्देश्य होता है कि उसके परिणामों के आधार पर दो व्यक्तियों , दो कक्षाओं अथवा दो अध्ययन प्रणाली की तुलना की जा सके ।
4. परामर्श एवं निर्देशन ( Guidance and counseling ) - मनोवैज्ञानिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में विद्यार्थियों में मापन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । मनोवैज्ञानिक परीक्षणो के आधार पर शिक्षक न केवल मार्गदर्शन करता है बल्कि उनको व्यवसायिक परामर्श भी प्रदान करता है । मापन का शाब्दिक अर्थ, मापन के मुख्य कार्य, मापन के प्रकार, मापन के आवश्यक तत्व, मापन के प्रकार, मापन के कार्य, मापनी के प्रकार, ज्ञानात्मक उद्देश्य, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन के उद्देश्य, मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
5. निदान ( Diagnosis ) - चिकित्सा में चिकित्सक निदान कार्य अनेक प्रकार के उपकरणों जैसे थर्मामीटर , एक्सरे आदि की सहायता से करता है , लेकिन मनोविज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के उपकरणों जैसे बुद्धि परीक्षणो , रुचि परीक्षण इत्यादि के माध्यम से करता है ।
6 अन्वेषण ( Research ) - कोई भी मनोवैज्ञानिक अनुसंधान मापन का प्रयोग किये बिना अधूरा है । मनोविज्ञान के क्षेत्र में बहुत शोध कार्यो में मापन उपकरणों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है , दूसरे शब्दों में हम कह सकते है , जिस प्रकार भौतिक मनोविज्ञान में शोध के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनोविज्ञान में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता होती है । मापन का शाब्दिक अर्थ, मापन के मुख्य कार्य, मापन के प्रकार, मापन के आवश्यक तत्व, मापन के प्रकार, मापन के कार्य, मापनी के प्रकार, ज्ञानात्मक उद्देश्य, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन के उद्देश्य, मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
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* मापनी के प्रकार -
1. शाब्दिक स्तर मापनी - निम्न स्तर वाले विद्यार्थी वस्तु के आधार पर मापन करना ।
2. क्रमिक स्तर मापनी प्रणाली - उच्च स्तर से निम्न स्तर ।
3. अंतराल मापनी - समूह बनाना । उदा . - 0-30 , 30-60 , 60-90 इत्यादि ।
4. अनुपात मापनी - इसके अन्तर्गत सर्वोत्तम स्तर आता हैं । उदा . - मीटर - किलोमीटर इत्यादि ।
* मापन के अन्तर्गत अनेक वस्तुओं एवं घटनाओं का आकलन रूप से वर्णन किया जाता हैं ।
* मापन के बिना वैज्ञानिक पद्धति सम्भव नहीं है । मापन शब्द का प्रयोग विद्यार्थियों को अंक प्रदान करने से हैं । मापन का प्रयोग प्रतिशत , अंक , औसत एवं मध्यमान के आधार पर किया जाता है ।
* मात्रात्मक रूप में या परिमाणात्मक रूप में वर्णन करना मापन कहलाता हैं ।
* एक बच्चे के 70 से 75 अंक होने चाहिए क्रियात्मक अनुसंधान मूल्यांकन आकलन , मापक हो सके ।
* आकलन- वास्तविक होता है और मूल्यांकन वास्तविक नहीं होता
* मापन के कार्य- वस्तु को संख्या प्रदान करना , घटना को संख्या प्रदान करना , नियमानुसार संख्या प्रदान करना
* मापन के क्षेत्र- बुद्धि परीक्षण , व्यक्तित्व परीक्षण , उपलब्धि परीक्षण , रूचि परीक्षण , अभिक्षमता परीक्षण
* मूल्यांकन ( EVATUATION ) - आधुनिक युग में मूल्यांकन मनोविज्ञान एवं शिक्षा की एक महत्वपूर्ण देन है , बिना मूल्यांकन के शिक्षा तथा मनोविज्ञान ही नही बल्कि मानव मात्र का समग्र जीवन ही व्यर्थ प्रतीत होने लगता है , मूल्यांकन एक निरंतर एवं विस्तृत चलने वाली प्रक्रिया है , जबकि किसी माप की उपयोगिता के संबंध निर्णय या मूल्य प्रदान किया जाता है । मूल्यांकन के अन्तर्गत किसी गुण या विशेषता का मूल्य निर्धारित किया जाता है , अर्थात् मूल्यांकन द्वारा परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही प्रकार की सूचना प्राप्त होती है । मूल्यांकन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है । ' मूल्यांकन ' अंग्रेजी शब्द इवैलुएशन ( Evaluation ) का हिन्दी रूपान्तरण है । इवैलुएशन का अर्थ है- किसी तथ्य के सम्बन्ध में निर्णय लेना या निष्कर्ष निकालना । हिन्दी का ' मूल्यांकन ' शब्द मूल्य + अंकन से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - मूल्य आंकना ।मापन का शाब्दिक अर्थ, मापन के मुख्य कार्य, मापन के प्रकार, मापन के आवश्यक तत्व, मापन के प्रकार, मापन के कार्य, मापनी के प्रकार, ज्ञानात्मक उद्देश्य, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन के उद्देश्य, मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
मापन एवं मूल्यांकन |
सीखने के अनुभवों से बालक के व्यवहार में क्या परिवर्तन हुए हैं , उनका निष्कर्ष निकालना , निर्णय लेना या परीक्षण करना मूल्यांकन कहलाता है ।
NCERT दिल्ली की पुस्तक “ Concept of Evaluation " के अनुसार- मूल्यांकन प्रक्रिया में मुख्यतय 3 बातों के संबंध में निर्णय लिया जाता है । तीनों बिंदु मिलकर मूल्यांकन प्रक्रिया को पूरा करते है । इन तीनों के संबंध को त्रिभुजाकार आकृति से निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जाता है ।
1. शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हुई ?
2. उद्देश्य स्पष्ट करने की विधि / प्रविधि कितनी प्रभावी रही ।
3. अधिगम अनुभव कितने प्रभावी उत्पादक रहे ?
मापन एवं मूल्यांकन |
* कोठारी कमीशन - " मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है , जो शिक्षा का अभिन्न अंग है तथा शिक्षण उद्देश्यों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध
डान्डेकर - " मूल्याकन एक ऐसी क्रमबद्ध प्रक्रिया है , जो हमें यह बताती है कि बालक द्वारा शैक्षिक उदेश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया गया है । "
बी.एस. ब्लूम - " मूल्यांकन योग्यता नियन्त्रण की व्यवस्था है , जिसमें शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता की जांच ली जाती है । "
क्विलेन व हन्ना - " विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाए गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में प्रमाणों के संकलन और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं । "
* बी.एस. ब्लूम ने मूल्यांकन की विचारधारा दी । .
बी.एस . ब्लूम ने मूल्यांकन को त्रि - मुखी बताया । मापन का शाब्दिक अर्थ, मापन के मुख्य कार्य, मापन के प्रकार, मापन के आवश्यक तत्व, मापन के प्रकार, मापन के कार्य, मापनी के प्रकार, ज्ञानात्मक उद्देश्य, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन के उद्देश्य, मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
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ज्ञानात्मक उद्देश्य
B.S. ब्लूम-
( 1 ) भावात्मक उद्देश्य ,
( 2 ) क्रियात्मक उद्देश्य अधिकगम अनुभव , व्यवहारगत परिवर्तन
मूल्यांकन की प्रक्रिया- मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन प्रमुख अंग हैं
( 1 ) शैक्षिक उद्देश्य ,
( 2 ) अधिगम अनुभव ,
( 3 ) व्यवहारगत परिवर्तन
• मूल्यांकन प्रक्रिया में तीन बिन्दुओं पर बात की गई -
( 1 ) उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हुई ,
( 2 ) शिक्षण कार्य कितना प्रभावी रहा ,
( 3 ) बालकों के व्यवहार में परिवर्तन हुआ या है या नहीं ।
• डॉ . पटेल ने 4 बिन्दुओं द्वारा मूल्यांकन की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है-
( 1 ) शैक्षिक उद्देश्य ,
( 2 ) पाठ्यक्रम ,
( 3 ) मूल्यांकन पद्धतियां ,
( 4 ) अधिगम क्रियायें मापन का शाब्दिक अर्थ, मापन के मुख्य कार्य, मापन के प्रकार, मापन के आवश्यक तत्व, मापन के प्रकार, मापन के कार्य, मापनी के प्रकार, ज्ञानात्मक उद्देश्य, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन के उद्देश्य, मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर, मूल्यांकन की विशेषताएँ, मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
मापन एवं मूल्यांकन |
मूल्यांकन की विशेषताएँ
मूल्यांकन उद्देश्य केन्द्रित होता है । "
मूल्यांकन एक अनवरत ( सतत ) प्रक्रिया है । "
मूल्यांकन निर्णयात्मक प्रक्रिया है । "
मूल्यांकन एक अन्तःक्रियात्मक प्रक्रिया हैं ।
' मूल्यांकन मात्रात्मक एंव गुणात्मक दोनों होता है । "
यह एक व्यापक प्रक्रिया है ।
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* मूल्यांकन = मापन ( ज्ञानात्मक तथा क्रियात्मक पक्ष ) + मूल्य ( भावात्मक पक्ष )
मूल्यांकन में शैक्षिक एंव सह शैक्षिक दोनों पक्ष शामिल हैं
- मूल्यांकन का सम्बन्ध छात्र की स्थिति से न होकर छात्र के विकास से होता है ।
• मूल्यांकन का शिक्षा के उद्देश्य से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । मूल्यांकन समस्त शिक्षण एंव अधिगम का अभिन्न अंग है । मूल्यांकन सहयोगी कार्य है ।
- मूल्यांकन केवल विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि का ही मापन नहीं करता है , अपितु उसकी शैक्षिक उपलब्धि में सुधार करता है ।
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* मूल्यांकन के उद्देश्य
" मूल्यांकन का उद्देश्य पाठ्यक्रम या विषयवस्तु में परिमार्जन कर उनमें सुधार लाना है । मूल्यांकन द्वारा छात्रों को सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है । क्रियात्मक अनुसंधान के लिए अध्यापकों को प्रोत्साहित करना ।
- बालकों की पहचान करना ।
- विद्यालय कार्यक्रम का मूल्यांकन करना ।
• विभिन्न प्रकार की शिक्षण पद्धतियों एवं विधियों का प्रयोग कर शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाना ।
- शिक्षण प्रक्रिया की प्रत्येक स्तर पर जॉच करना ।
- विद्यार्थी के विषय में भविष्यवाणी करना ।
- शिक्षार्थी के व्यक्तित्व की माप करना ।
- बालकों की बौद्धिक क्षमता के आधार पर मन्द , सामान्य और कुशाग्र बुद्धि में वर्गीकृत करना ।
- छात्रों की समस्याओं के बारे में जानना ।
- छात्रों की समस्या का उपचार करना ।
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* मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर
क . क . मापन मूल्यांकन
मापन एवं मूल्यांकन |
-अच्छे मूल्यांकन की विशेषताएँ
- वैधता / प्रमाणिकता - किसी भी परीक्षा की वैधता का अर्थ है कि वह कितनी शुद्धता तथा सार्थकता से किसी विद्यार्थी की योग्यता का मापन करती है , इसमें मूल्यांकन निर्धारित पाठ्यक्रम आधारित होना चाहिए और उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम होना चाहिए ।
- विश्वसनीयता - किसी विद्यार्थी के विभिन्न अवसरों पर या उसी प्रकार के दूसरे परीक्षण में भी लगभग समान अंक आए तो उसमें विश्वनीयता का गुण होगा । कोई भी व्यक्ति कितनी ही बार अंक दे , अंको में अन्तर नही आना चाहिए ।
वस्तुनिष्ठता जिस परीक्षण का मूल्यांकन विभिन्न पपरीक्षकों द्वारा किये जाने भी परीक्षा परिणाम में अन्तर नही आये तो वस्तुनिष्ठता कहते है । अंक प्रदान करते समय परीक्षक ( अध्यापक ) के व्यक्तित्व का प्रभाव न पड़े ।
- विभेदीकरण - बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को देखकर ( छात्र के स्तर के अनुसार ) मूल्यांकन पत्र को बनाया जाए ।
- व्यापकता / समग्रता - प्रश्न सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हो ।
- मितव्यता - धन की बचत करने वाला हो ।
-मानकीकृत - वैज्ञानिकता का समावेश हो ।
- व्यावहारिकता - औपचारिक शिक्षा प्रक्रिया पर आधारित
-सरलता मूल्यांकन प्रपत्र में नियम , निर्देश सरल हो , उत्तर देने में कठिनाई न हो ।
- समय की बचत - समय की बचत होती हो ।
उद्देश्यनिष्ठता - निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित होना चाहिए ।
- सुगमता- प्रश्न पत्र बनाते समय एक अच्छे अध्यापक को साथ में ही उसकी उत्तर तालिका बना लेना चाहिए जिसे जांच करते समय कठिनाई महसूस न हो ।
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* मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान / पद
1. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करना
2. उद्देश्यों की व्यवहारों के सन्दर्भ में व्याख्या करना
3. शैक्षिक लक्ष्यों से सम्बन्धित कक्षागत परिस्थिति को पहचानना ।
4. मूल्यांकन प्रक्रिया के लिए परीक्षण का चुनाव करना ।
5. शिक्षण उद्देश्य के सम्बन्ध में मूल्यांकन की विधियों का निर्माण करना ।
6. विधि का प्रयोग करते समय साक्ष्य को अभिलेख में दर्ज करना
7. प्राप्त साक्ष्यों का विवेचन व विश्लेषण करना व शिक्षण उद्देश्यों के सन्दर्भ में अनुशंसा करना
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