वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार

बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र

वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार

वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार

     बुद्धिहीन प्राणियों की क्रियाओं में बहुत कुछ समानता पायी जाती है क्योंकि उनकी समस्त क्रियाएँ अनुकरण तथा उनकी मूल प्रवृत्तियों से प्रभावित होती हैं परन्तु मनुष्य की समस्त क्रियाओं में जितनी विभिन्नता पायी जाती है , उतनी अन्य प्राणियों में नहीं क्योंकि मानव - व्यवहार केवल मूल - प्रवृत्तियों से ही नहीं , अपितु चार अमूर्त तत्त्वों - मन , बुद्धि , चित्त तथा अहंकार से भी प्रभावित होता है । इस दृष्टि से व्यक्तियों या बालकों में निम्नलिखित वैयक्तिक विभिन्नताएँ पायी जाती हैं-
वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार
( 1 ) शारीरिक ( Physical ) , 
( 2 ) बौद्धिक ( Intellectual ) , 
( 3 ) सामाजिक ( Social ) , 
( 4 ) भावात्मक या सांवेगिक ( Emotional ) 
( 5 ) नैतिक ( Ethical ) , 
( 6 ) सांस्कृतिक ( Cultural ) तथा 
( 7 ) प्रजातीय ( Racial )  

 
वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार )

1. शारीरिक विभिन्नताएँ - 

     लिंगीय भेद को हम अलग न लेकर शारीरिक भेदों के अन्तर्गत ही ले रहे हैं । इस दृष्टि से कोई स्त्री हो तो कोई पुरुष । इसी आधार पर बालक बालिका , स्त्री - पुरुष , वृद्ध - वृद्धा आदि भेद होते हैं । बालक या बालिकाओं आदि में उनकी आयु , वजन , कद , शारीरिक गठन आदि की दृष्टि से भी भेद होते हैं । यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चे ( Twins ) भी समान नहीं होते । पुनः शारीरिक अंगों की दृष्टि से भी किसी अंग की कमी हो सकती है और किसी में किसी अंग का विशेष उभार । इस दृष्टि से भी बड़े भेद होते हैं । रंग को दृष्टि से भी कोई काला होता है और कोई गोरा । अत : शारीरिक दृष्टि से वैयक्तिक विभिन्नताओं के आधार हैं- 
( 1 ) आयु ( Age ) । 
( 2 ) वजन ( Weight ) । 
( 3 ) योनि ( Sex ) । 
( 4 ) कद ( Size of the body ) | 
( 5 ) रंग ( Colour ) ।
( 6 ) किसी अंग - विशेष की कमी या उभार आदि ।
( वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार )

2. बौद्धिक विभिन्नताएँ- 

     बौद्धिक दृष्टि से भी सभी व्यक्ति समान नहीं होते । एक ही माता - पिता के सभी बच्चे और यहाँ तक की जुडवाँ बच्चे भी बौद्धिक दृष्टि से समान नहीं होते । कोई मन्द बुद्धि होता है तो कोई सामान्य बुद्धि और कोई बौद्धिक दृष्टि से अति प्रखर । 
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3. सामाजिक विभिन्नताएँ  - 

     सामाजिक दृष्टि से भी बालकों में अनेकों विभिन्नताएँ पायी जाती हैं ; जैसे- 
( 1 ) कुछ व्यक्ति बड़े जल्दी मित्र बना लेते हैं तो कुछ प्रयत्न करने पर भी मित्र नहीं बना पाते क्योंकि उन्हें मित्र बनाने की कला आती ही नहीं । 
( 2 ) कुछ को अधिकतर लोग पसन्द करते हैं और कुछ को कोई नहीं , अर्थात् कुछ बड़े लोकप्रिय ( Popular ) होते हैं तो कुछ एकांकी ( Isolated ) 
( 3 ) कुछ सभी के साथ उठना - बैठना पसन्द करते हैं तो कुछ को अकेलापन और एकान्तप्रियता अधिक पसन्द है । 
( 4 ) कुछ बड़ी विनोदी प्रकृति वाले और सामाजिक होते हैं तो कुछ शर्मीले और अपने ही हाल में मस्त रहने वाले । सामाजिकता की यह भावना छोटे - बड़े , बाल - वृद्ध , स्त्री - पुरुष तथा धनी - निर्धन सभी में अलग - अलग रूपों में पायी जाती है ।
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4. नैतिक विभिन्नताएँ  - 

     नैतिकता का मूलाधार अच्छाई और बुराई है परन्तु अच्छाई और बुराई दोनों ही परिस्थिति सापेक्ष्य शब्द है । जो बात किसी भी व्यक्ति या बालक को अच्छी लगती है , वही बात दूसरे व्यक्ति को बुरी भी लग सकती है । नैतिकता एव अनैतिकता की मोटी पहचान यही हो सकती है कि जो कार्य हम दूसरों के हित की परवाह न करके अपने स्वार्थ - सिद्धि के लिये करते हैं , सामान्यतया वही अनैतिकता है जबकि जो कार्य परहित की दृष्टि से किये जाते हैं , वे नैतिकता में आते हैं । 
    इस दृष्टि से भी व्यक्तियों और बालकों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है । कुछ बालक चोरी को भी बुरा नहीं समझते , झूठ बोलना उन्हें अच्छा लगता है , जबकि कुछ लोग या बालक ऐसा करना नैतिकता के विरुद्ध समझते हैं । यह अन्तर एक परिवार के दो सदस्यों में भी पाया जा सकता है ।
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5. सांस्कृतिक विभिन्नताएँ - 

     प्रत्येक देश की एक विशेष संस्कृति होती है । जो व्यक्ति जिस देश में पला है , वहाँ की संस्कृति का उस पर प्रभाव पड़ता ही है । कुछ देशों में लोग प्रेम विवाह को सर्वोत्तम वन्धन मान सकते हैं , जबकि हमारी भारतीय संस्कृति में पले हुए लोग इसे निकृष्टतम बन्धन मानते हैं । भारतीय संस्कृति में पले हुए लोग माता - पिता और बच्चों के प्रति अपने कर्त्तव्य के लिये जितने सजग हैं , उतने अन्य संस्कृति वाले सभी लोग नहीं । यह हमारी संस्कृति का प्रभाव है । अतः सांस्कृतिक दृष्टि से भी व्यक्तियों की मान्यताओं एवं मूल्यों में अन्तर होता है ।
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6. प्रजातीय विभिन्नताएँ -

प्रजाति से हमारा तात्पर्य यहाँ वर्णागत- ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य या शूद्रों से नहीं , अपितु उन प्रजातियों से हैं जो आदिकाल में थी और उनकी सन्ताने अभी तक चली आ रही हैं , उदाहरणार्थ- आर्यों की सन्ताने , हूण और शकों की सन्तानों आदि से भिन्न है । आज भी अफ्रीका के हब्शी अति काले होते हैं और शीत प्रधान देशों के लोग अति गोरे । प्रजातीय आधार पर काले - गोरे रंग का भेद नहीं , अपितु उनकी मान्यताओं में भी भेद है । यही नहीं , एक ही देश में भी इस प्रकार की कई प्रजातियाँ हो सकती हैं ।
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7. धार्मिक विभिन्नताएँ - 

धर्म से यहाँ हमारा आशय सम्प्रदाय से है । प्रचलित अर्थ में जिसे हम धर्म कहते हैं , वह वास्तव में धर्म न होकर सम्प्रदाय है । आप कुछ भी नाम दें परन्तु इस दृष्टि से भी लोगों में भेद होते हैं । जैन लोग चींटी तक को मारना पाप समझते हैं , कन्द मूलों को खाना उचित नहीं समझते , जबकि कुछ सम्प्रदायों में ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है । वैयक्तिक विभिन्नताओं के रूपों के अतिरिक्त रुचियाँ ( Interests ) , अभिवृत्तियाँ ( Attitudes ) , अभिक्षमताएँ ( Aptitudes ) आदि भी वैयक्तिक विभिन्नताओं को जन्म देती हैं ।
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Kkr Kishan Regar

Dear Friends, I am Kkr Kishan Regar, a passionate learner in the fields of education and technology. I constantly explore books and various online resources to expand my knowledge. Through this blog, I aim to share insightful posts on education, technological advancements, study materials, notes, and the latest updates. I hope my posts prove to be informative and beneficial for you. Best regards, **Kkr Kishan Regar** **Education:** B.A., B.Ed., M.Ed., M.S.W., M.A. (Hindi), P.G.D.C.A.

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