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रविवार, 9 अगस्त 2020

वृद्धि व विकास में अंतर REET EXAM

वृद्धि व विकास में अंतर

Difference between Development and Growth 

वृद्धि व विकास में अंतर REET EXAM 2020

वृद्धि का अर्थ -

प्रायः विकासात्मक मनोविज्ञान में विकास और वृद्धि ( Growth ) दोनों प्रत्यय एक ही अर्थ में लिए जाते हैं , लेकिन इन दोनों का अर्थ अलग - अलग है । गेसेल के अनुसार वृद्धि एक ऐसी जटिल एवं संवेदनशील प्रक्रिया है जिसमें प्रबल स्थिरता लाने वाले कारक केवल बाह्य ही नहीं वरन् आंतरिक भी होते हैं जो प्रतिमान तथा वृद्धि की दिशा में संतुलन बनाए रखते हैं । ( वृद्धि व विकास में अंतर )

            सामान्यतः वृद्धि का परम्परागत अर्थ धनात्मक विकास से है जिसके द्वारा भौतिक तथा दैहिक परिवर्तः आते हैं । वृद्धि एक विशिष्ट प्रकार के विकास की ओर संकेत करता है । इस प्रकार प्राणी में वृद्धि गर्भाधान के दो सप्ताह बाद प्रारम्भ होती है और बीस वर्षों के आस - पास प्रायः समात हो जाती है । वृद्धि शारीरिक रचना की ओर संकेत करती है अर्थात् वृद्धि का तात्पर्य बालक की शारीरिक लम्बाई , चौड़ाई और भार में वृद्धि से होता है । शारीरिक संरचना व आकृति में परिवर्तन वृद्धि का परिणाम होता है । वृद्धि का मापन किया जा सकता है । इस प्रकार की वृद्धि की मुख्य विशेषता , इसे मापा , तोला व देखा जा सकता है । सोरेन्सन ( Sorenson ) के अनुसार , " सामान्य रूप से वृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंग के भार और आकार में वृद्धि के लिये किया जाता है । इस वृद्धि का मापन किया जा सकता है ।"( वृद्धि व विकास में अंतर )

            विकास चिन्तन का मूल है । यह एक बहुमुखी क्रिया है और इसमें केवल शरीर के अंगों के विकास का ही नहीं प्रत्युत सामाजिक , सांवेगिक अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाता है । इसी के अन्तर्गत शक्तियों और क्षमताओं के विकास को भी गिना जाता है ।( वृद्धि व विकास में अंतर )

विकास व वृद्धि में अंतर

विकासात्मक मनोविज्ञान में विकास और वृद्धि दोनों प्रत्यय प्रायः एक ही अर्थ में प्रयोग किए जाते हैं , परन्तु वास्तव में इन दोनों का अर्थ अलग - अलग होता है । विकास एवं वृद्धि में निम्नलिखित अन्तर हो सकते हैं-

1.विकास एक व्यापक अर्थ है , वृद्धि एक विशिष्ट प्रकार के विकास की ओर संकेत करती है । संकुचित अर्थ में शारीरिक आकार ( size ) के बढ़ने को वृद्धि कहा जाता है ।
2. विकास मानसिक क्रियाओं की ओर संकेत करता है , जबकि वृद्धि शारीरिक रचना की ओर संकेत करती है ।
3. प्राणी में विकास वृद्धि से पहले प्रारम्भ होता है और जीवनपर्यन्त चलता रहता है ।
4.वृद्धि से केवल रचनात्मक परिवर्तनों का ही बोध होता है , जबकि विकास रचनात्मक और विनाशात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तनों की ओर संकेत करता है ।
5. वृद्धि का परम्परागत अर्थ धनात्मक विकास से है जिसके द्वारा भौतिक व दैहिक परिवर्तन आते हैं , जबकि विकास एक विस्तृत एवं व्यापक पद है , जबकि वृद्धि सीमित है ।
6. विकास के निश्चित प्रतिमान होते हैं , किन्तु वृद्धि के प्रतिमानों में घोर वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है । प्रत्येक बच्चा चलने के पूर्व खड़ा होना सीखता है । यदि खड़ा नहीं हो सकता तो चलना नहीं सीख सकता ।
7. वृद्धि परिपक्वता का परिणाम होती है , लेकिन विकास परिपक्वता व अधिगम दोनों का परिणाम है । इस प्रकार दोनों प्रत्यय प्राय : एक ही अर्थ में प्रयोग में लाए जाते हैं , परन्तु दोनों का अर्थ अलग - अलग होता है । दोनों प्रत्ययों में भिन्नता के साथ ही साथ इन दोनों में परिवर्तन आते हैं । दोनों में लगभग समान नियम लागू होते हैं । दोनों हो सभी प्राणियों में देखे जाते हैं । दोनों में ही परिवर्तन निश्चित क्रम और आपस में संबंधित होते हैं । पहला परिवर्तन अपने से पहले और आगे आने वाली अवस्थाओं के परिवर्तनों से संबंधित होता है।
( वृद्धि व विकास में अंतर )h



नोट - वृद्धि व विकास एक दूसरे के पूरक व मित्र प्रत्यय हैं । कभी - कभी वृद्धि हो जाती है । लेकिन विकास नहीं । उदा ० मंदबुद्धि बच्चे ।
-कभी - कभी विकास हो जाता है । लेकिन वृद्धि नहीं उदा ० बोनापन ।
-कुल मिलाकर वृद्धि विकास का ही एक भाग है

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