अधिगम सिद्धान्त Part-4
3. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त : थार्नडाइक
3. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त : थार्नडाइक
( Stimulus Response Theory )
उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त को संयोजनवाद ( Connectionism ) भी कहते हैं । साहचर्य ( Associative ) सिद्धान्तों के अन्तर्गत उद्दीपन सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है । थार्नडाइक को इस सिद्धान्त का प्रवर्तक माना जाता है । उसने अधिगम के सिद्धान्त के निर्माण तथा उनके व्यवहार निरूपण पर अत्यधिक कार्य किया है । थार्नडाइक के अनुसार " अधिगम का अर्थ है संयोजन । मन मनुष्य का संयोजन मात्र है । " यह संयोजन कब और किस प्रकार होता है ? इसका वर्णन सबसे पहले तीन नियमों के रूप में किया गया
( 1 ) तैयारी का नियम , ( 2 ) अभ्यास का नियम , तथा ( 3 ) प्रभाव का नियम ।
थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धान्तों एवं तत्वों का आधार यह था कि तंत्रिका तंत्र में उद्दीपनों और अनुक्रियाओं में संयोग बन जाते हैं । ये संयोग S.R. ( Stimulus Response ) संकेतों से स्पष्ट किये जाते हैं । थार्नडाइक ने इस संयोगों को बन्ध या संयोग ( Bond ) प्रतीक से भी अभीहित किया है । इसलिए थार्नडाइक का यह मत ' बौन्ड थ्योरी ऑफ लर्निंग ' भी कहा जाता है । थार्नडाइक ने इसलिए कहा है— “ सीखना सम्बन्ध स्थापित करना है और सम्बन्ध स्थापना का कार्य मस्तिष्क करता है । ” थार्नडाइक ने भिन्न मात्रा में शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं के सम्बन्ध पर बल दिया है ।
थार्नडाइक द्वारा किए गये प्रयोग
( Experiments done by Thorndike )
थार्नडाइक ने संयोजनवाद की पुष्टि के लिए अनेक प्रयोग किये हैं । उसने एक भूखी बिल्ली को एक सन्दूक में बन्द कर दिया । यह सन्दूक इस ढंग से बनाया गया था कि अन्दर की चिटकनी पर पैर पड़ते ही वह स्वयं खुल जाये । सन्दूक के बाहर मछली का टुकड़ा रखा गया । सन्दूक ऐसा था कि उसके अन्दर बन्द बिल्ली बाहर देख सके । मछली का टुकड़ा बाहर देखकर बिल्ली को बहुत पेरशानी अनुभव हुई और वह यह प्रयत्न करने लगी कि किस प्रकार सन्दूक खोलकर वह बाहर आये और मछली को पकड़ कर तथा खाकर अपनी भूख मिटाये । उसने सन्दूक से बाहर निकलने के लिए उछल - कूद मचानी आरंभ की । उछलकूद तथा विभिन्न बटनों को दबाने की प्रक्रिया में संयोग से उसका पैर सही चिटकनी पर पड़ गया । सन्दूक खुल गया और बिल्ली बाहर आ गई । मछली का टुकड़ा खाकर उसने अपनी भूख मिटाई ।उलझन पेटी : उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त ( थार्नडाइक ) |
यह प्रयोग बिल्ली पर कई बार दोहराया गया । इस प्रयोग में प्रारंभ में व्यर्थ के प्रयत्नों की संख्या अधिक रही जो धीरे - धीरे कम होती गयी । एक स्थिति ऐसी भी आई जब बिल्ली ने बिना कोई भूल किये पहली ही बार में चिटकनी दबाकर सन्दूक खोल दिया ।
इस प्रयोग को मानव जीवन पर इस प्रकार घटित किया जा सकता है । बालक को साइकिल चलाना सीखना है वह बार - बार प्रयत्न करता है । साईकिल से गिरता है । कई बार उससे हैंडिल पकड़ने तथा पैडिल मारने में भूल होती है । चोटें खाता है । अन्त में , एक परिस्थिति ऐसी भी आती है जब वह बिना किसी विशेष प्रयत्न के साईकिल पर चढ़ जाता है ।
इन प्रयोगों में बार - बार गलतियाँ हुईं । बार - बार उन्हें सुधारने का प्रयत्न किया गया । इस मत को इसीलिए ‘ प्रयत्न एवं भूल ' ( Trial & Error ) द्वारा अधिगम करना भी कहा गया है ।
( 1 ) संयोजन सिद्धान्त ( Connectionism ) थार्नडाइक के परिणाम यह संकेत देते हैं कि संयोजन सिद्धान्त मनोविज्ञान के क्षेत्र में नवीन विचारधारा तो है ही , साथ ही वह अधिगम का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भी है ।
( 2 ) अधिगम ही संयोजन है ( Learning is connection ) — उद्दीपन सिद्धान्त के अनुसार अधिगम की क्रिया में विभिन्न परिस्थितियों के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है । थार्नडाइक ने इस सत्य का परीक्षण करने के लिए मछली , चूहों तथा बिल्लियों पर प्रयोग किये और यह निष्कर्ष निकाला कि अधिगम की क्रिया का आधार स्नायुमण्डल है । स्नायुमण्डल में एक स्नायु का दूसरी स्नायु से सम्बन्ध हो जाता है ।
( 3 ) आंगिक महत्त्व ( Organ's parts ) - संयोजनवाद मानव को महत्त्वपूर्ण इकाई नहीं मानता । वह तो मानव व्यवहार का विश्लेषण करता है । यह मत पावलॉव ( Pavlov ) के अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त से सम्बन्ध रखता है । यह संयोगों ( Bonds ) को महत्त्व देता है तथा बुद्धि को परिमाणात्मक मानता है । जो व्यक्ति अपने जीवन में जितने अधिक संयोजन स्थापित कर लेता है , उसे उतना ही अधिक बुद्धिमान माना जाता है ।
अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त : पावलॉव
सक्रीय अनुबन्धन सिद्धान्त : स्किनर
इन प्रयोगों में बार - बार गलतियाँ हुईं । बार - बार उन्हें सुधारने का प्रयत्न किया गया । इस मत को इसीलिए ‘ प्रयत्न एवं भूल ' ( Trial & Error ) द्वारा अधिगम करना भी कहा गया है ।
उद्दीपन अनुक्रिया की विशेषताएँ
( Characteristics of Stimulus Response Theory )
उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त , साहचर्य सिद्धान्त का एक अंग है । साहचर्य सिद्धान्त का प्रतिपादन एलेक्जेडर बैन ( Alexander Bain ) ने किया था । थार्नडाइक तथा उसके समर्थकों ने अनेक प्रयोगों द्वारा उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्तों की कतिपय विशेषताओं का पता लगाया है जो उसे साहचर्य में विशेष स्थान देते हैं । ये विशेषताएँ इस प्रकार हैं( 1 ) संयोजन सिद्धान्त ( Connectionism ) थार्नडाइक के परिणाम यह संकेत देते हैं कि संयोजन सिद्धान्त मनोविज्ञान के क्षेत्र में नवीन विचारधारा तो है ही , साथ ही वह अधिगम का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भी है ।
( 2 ) अधिगम ही संयोजन है ( Learning is connection ) — उद्दीपन सिद्धान्त के अनुसार अधिगम की क्रिया में विभिन्न परिस्थितियों के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है । थार्नडाइक ने इस सत्य का परीक्षण करने के लिए मछली , चूहों तथा बिल्लियों पर प्रयोग किये और यह निष्कर्ष निकाला कि अधिगम की क्रिया का आधार स्नायुमण्डल है । स्नायुमण्डल में एक स्नायु का दूसरी स्नायु से सम्बन्ध हो जाता है ।
( 3 ) आंगिक महत्त्व ( Organ's parts ) - संयोजनवाद मानव को महत्त्वपूर्ण इकाई नहीं मानता । वह तो मानव व्यवहार का विश्लेषण करता है । यह मत पावलॉव ( Pavlov ) के अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त से सम्बन्ध रखता है । यह संयोगों ( Bonds ) को महत्त्व देता है तथा बुद्धि को परिमाणात्मक मानता है । जो व्यक्ति अपने जीवन में जितने अधिक संयोजन स्थापित कर लेता है , उसे उतना ही अधिक बुद्धिमान माना जाता है ।
उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त : आलोचना
( Criticsm of S. R. Theory )
थाईडाइक द्वारा किये गये प्रयोगों से जहाँ मनोविज्ञान को अनेक नवीन कल्पनाएँ प्राप्त हुई , वहीं इसकी आलोचनाएँ भी कम नहीं हुई है । इस सिद्धान्त की आलोचना के मुख्य आधार इस प्रकार हैं- ( 1 ) व्यर्थ के प्रयत्नों पर बल देना ( Emphasis on useless efforts ) जैसा कि इन प्रयोगों से स्पष्ट है कि इस सिद्धान्त में किसी क्रिया का अधिगम करने के लिए व्यर्थ के प्रयत्नों पर अधिक बल दिया जाता है । परिणामत : ऐसी क्रियाएँ जिन्हें एक बार में अधिगम किया जा सकता है , समय नष्ट करने में योग देती है ।
- ( 2 ) विवरणात्मक ( Descriptive ) यह मत किसी क्रिया के अधिगम का विवरण प्रस्तुत करता है । यह बताता है कि किसी क्रिया को किस प्रकार सीखते हैं, परन्तु क्यों सीखते हैं? इसके विषय मे मौन है । कहने का तात्पर्य यह है कि यह मत समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करता ।
- ( 3 ) यांत्रिक ( Mechanical ) — इस मत का आधार स्नायुमण्डल है एवं मानव को एक यंत्र मानता है , अत : यह आरोप भी उसी प्रक्रिया की पुष्टि करता हैं । मानव मशीन होता तो उसमें चिन्तन तथा विवेक न होते , केवल कार्य तथा कारण एवं क्रिया एवं प्रतिक्रिया ही होते ।
- ( 4 ) रटने पर बल ( Rote Memory ) यह मत यांत्रिकता पर बल देता है । शिक्षा के क्षेत्र में रटने पर इसका प्रभाव परिलक्षित होता है । रटने का प्रभाव क्षणिक होता है और भावी जीवन पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
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