शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
शिक्षा मनोविज्ञान
का क्षेत्र
( Scope of
Educational Psychology )
शिक्षा
मनोविज्ञान , व्यावहारिक मनोविज्ञान की एक शाखा है । शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र
के बारे में कुछ भी विश्वासपूर्ण नहीं कहा जा सकता है । क्योंकि यह एक नया तथा प्रगतिशील
विज्ञान है जिसकी सीमाएँ असीमित हैं । इसलिए इस विषय के क्षेत्र अथवा उन समस्याओं का
जिनका यह समाधान करता है कोई निश्चित दायरा नहीं है । प्रो . गेट्स तथा उनके साथियों
के अनुसार , " शिक्षा मनोविज्ञान की सीमाएँ परिवर्तनशील तथा अस्थिर हैं ।
" लिंडगरन के मतानुसार , शिक्षा मनोविज्ञान तीन केन्द्र - बिन्दुओं पर आधारित
है-
( 1 ) शिक्षार्थी
( Learner ) , ( ii ) सीखने की प्रक्रिया ( Learning Method ) , तथा ( iii ) सीखने
की परिस्थिति ( Learning Situation ) । यह स्वाभाविक ही शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र
में आ जाते हैं ।
निम्नलिखित
क्षेत्र शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत आते हैं शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं मशिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्वहत्त्व
1. शिक्षार्थी से
सम्बन्धित अध्ययन
( i ) शिक्षार्थी की शारीरिक रचना और उसकी क्रियाओं का अध्ययन
- इसके अन्तर्गत मस्तिष्क , तंत्रिका - तन्त्र , अनुक्रिया तन्त्र ( ग्राहक
, वाहक , प्रभावक ) , प्रतिवर्त या सहज क्रियाएँ , शारीरिक विलक्षणताओं तथा शारीरिक
विकास का अध्ययन होता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
( ii ) शिक्षार्थी की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन -
जिसके अन्तर्गत संवेदन , प्रत्यक्षण , निरीक्षण , अवधान , रुचि , अधिगम में अभिप्रेरणा
, कल्पना , चिन्तन , तर्क , निर्णय , बुद्धि आदि की प्रक्रियाओं का विकासात्मक अध्ययन
होता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
( iii ) शिक्षार्थी की संवेगात्मक क्रियाओं का अध्ययन - जिसके
अन्तर्गत भावों , संवेगों ( भय , क्रोध , प्रसन्नता , आत्मभाव , कामुकता ) आदि , इनका
संगठन स्थायीभाव तथा मनोग्रंथि , इनसे सम्बन्धित मूल प्रवृत्तियों , सहज प्रवृत्तियों
आदि का अध्ययन होता है ।
( iv ) शिक्षार्थी की सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन -
जिसके अन्तर्गत चरित्र , स्थायीभाव , संकल्प शक्ति , पाठ्येतर क्रियाएँ - सामाजिक क्रियाएँ
, खेल , समूह निर्माण क्रियाएँ , अनुकरण , सहानुभूति संकेत आदि का अध्ययन होता है ।
सामाजिक विकास की ओर भी ध्यान देते हैं ।
( v ) शिक्षार्थी की आनुवंशिकता और पर्यावरण - विभिन्न
विकास की अवस्थाएँ , इनकी विशेषताएँ , शिक्षा की दृष्टि से इनका महत्त्व , विभिन्न
प्रकार के शिक्षार्थी - मंदबुद्धि , तीव्र बुद्धि , अपचारी , समस्यात्मक , असाधारण
, रोगग्रस्त बालक , वैयक्तिक विभिन्नताएँ और विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व तथा विशेष
योग्यताओं आदि का अध्ययन होता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
2. शिक्षक सम्बन्धी
अध्ययन –
सीखने
की प्रक्रिया में शिक्षक भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है । शिक्षक , उसका प्रशिक्षण , उसका
व्यक्तित्व , उसकी विशेषताएँ , उसका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य - इनका संतुलन इत्यादि
का अध्ययन इसके अन्तर्गत आता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
3. सीखने की प्रक्रियाओं
का अध्ययन –
सीखने
- सिखाने की प्रक्रियाओं , शिक्षण विधियों का , पाठ्यक्रम निर्माण सम्बन्धी , कक्षा
व्यवस्था एवं अनुशासन सम्बन्धी विषयों के चुनाव तथा निर्देशन सम्बन्धी अध्ययन इसके
अन्तर्गत आते हैं । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
4. शैक्षणिक परिस्थितियों
का अध्ययन –
शैक्षणिक
परिस्थितियों से मेरा अभिप्राय शिक्षण के सभी उपकरणों तथा शिक्षा के अविधिक तथा सविधिक
अभिकरणों से है । शिक्षा - उपकरणों के अन्तर्गत वे सभी व्यक्ति तथा वस्तुएँ आती हैं
जो वातावरण में उपस्थित होती हैं - जैसे भाषा , चित्र और उदाहरण इत्यादि । शिक्षा के
अभिकरणों के अन्तर्गत गृह , समाज , राज्य , चर्च , रेडियो , सिनेमा , टेलीविजन आदि
आते हैं । शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक परिस्थितियों में ही शिक्षार्थी के व्यवहार का
अध्ययन करता है । शैक्षणिक परिस्थितियों का निर्माण शिक्षार्थी - शिक्षार्थी की तथा
शिक्षक एवं शिक्षार्थी की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
5. शैक्षिक समस्याओं
से सम्बन्धित अध्ययन
( i ) सीखने - सिखाने
की समस्याएँ -
सीखने - सिखाने की विधियों के प्रयोग की समस्याएँ , शिक्षण परिस्थितियाँ , स्थानान्तरण
, बौद्धिक अनुक्रियाओं में साहचर्य , वृद्धि , विकास आदि की समस्याएँ - इनका अध्ययन
, निराकरण आदि इसमें शामिल हैं । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
( ii ) व्यक्तिगत विभिन्नताओं की समस्याएँ - जिसके
अन्तर्गत शिक्षार्थियों के विभिन्न व्यक्तित्व वाला होने से उनका वर्गीकरण , अध्यापन
की विविधता , विशेष ध्यान आदि की समस्याएँ और उनका समाधान शामिल है ।
( iii ) व्यवहार एवं आचरण की समस्याएँ - जिसके अन्तर्गत
चरित्र और आचरण , दुर्व्यवहार और कुसमायोजन , अचेतन मन और उनकी क्रियाओं , कुंठाओं
आदि का अध्ययन आता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
6. बुद्धि –
लब्धि
और व्यक्तित्व का माप और परीक्षण - जिसके अन्तर्गत बुद्धि मापन , उपलब्धि एवं विशेष
योग्यता मापन , व्यक्तित्व मापन के विभिन्न साधन एवं युक्तियों , परीक्षा तथा परीक्षण
, मूल्यांकन , सांख्यिकीय गणना आदि रखे जाते हैं । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
7. मानसिक स्वास्थ्य
, मानसिक
स्वास्थ्य विज्ञान - मानसिक स्वास्थ्य के साधन , उपाय एवं कार्यक्रम , उपयोग आदि का
अध्ययन ।
8. वैयक्तिक , शैक्षिक तथा व्यावसायिक
निर्देशन का अध्ययन ।
9.शैक्षिक प्रयोग
तथा शोध -
जिसमें विभिन्न प्रकार की समस्याओं एवं प्रसंगों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं और उपयोगी
सिद्धान्त एवं निष्कर्ष निकालते हैं । शिक्षा - मनोविज्ञान की विषय - सामग्री के सम्बन्ध
में कुछ शिक्षाशास्त्रियों के विचार इस प्रकार हैं- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
गैरीसन
तथा अन्य के मतानुसार , “ शिक्षा - मनोविज्ञान की विषय - समग्री का नियोजन दो दृष्टिकोणों
से किया जाता है-
(
i ) छात्रों के जीवन को समृद्ध तथा विकसित करना , और
(
ii ) शिक्षकों को अपने शिक्षण में गुणात्मक उन्नति करने में सहायता देने के लिए ज्ञान
प्रदान करना ।"
डगलस व हालैंड के अनुसार , “ शिक्षा - मनोविज्ञान की विषय - सामग्री
, शिक्षा की प्रक्रिया में भाग लेने वाले व्यक्ति की प्रकृति , मानसिक जीवन और व्यवहार
है । "
क्रो
तथा क्रो के अनुसार , “ शिक्षा - मनोविज्ञान की विषय - सामग्री का सम्बन्ध सीखने
को प्रभावित करने वाले कारकों से है । "
अन्त
में , निष्कर्ष रूप में स्किनर के उद्धरण को दे सकते हैं- " शिक्षा - मनोविज्ञान
के क्षेत्र में वह सब ज्ञान तथा विधियाँ सम्मिलित हैं , जो सीखने की प्रक्रिया को अधिक
अच्छी प्रकार समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए आवश्यक हैं । "
इस
प्रकार से सारांश में हम कह सकते हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन तीन पहलुओं में
किया जा सकता है- ( 1 ) शिक्षार्थी , ( 2 ) सीखने की प्रक्रिया तथा ( 3 ) सीखने की
दशाएँ । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
शिक्षा मनोविज्ञान
का महत्त्व
( Importance of
Educational Psychology )
शिक्षा
- मनोविज्ञान ने समाज के समक्ष दो पहलू प्रस्तुत किये हैं- ( अ ) व्यावहारिक ( ब )
सैद्धान्तिक । अध्यापक , छात्र अभिभावक सभी के लिए इसका सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक
महत्त्व है । आधुनिक युग में शिक्षा का आधार ही मनोविज्ञान है । शिक्षा मनोविज्ञान
का महत्त्व या उपयोगिता इस प्रकार है
1. बाल केन्द्रित शिक्षा ( Child - Centred Education ) -
प्राचीन समय में शिक्षा का केन्द्र छात्र न होकर अध्यापक था । छात्र की रुचियों , अभिवृत्तियों
तथा अभिरुचियों की परवाह किये बिना ही शिक्षण कार्य चलता था । अब समय बदल गया है और
उसी के साथ - साथ शिक्षा का केन्द्र बिन्दु छात्र हो गया है । छात्र की योग्यता , क्षमता
, रुचि , अभिरुचि आदि के अनुसार पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का निर्माण किया जाता
है ।
2. स्वस्थ वातावरण ( Healthy Atmosphere ) - रवीन्द्रनाथ
ठाकुर ने अपने समय के एक स्कूल का वर्णन करते हुए कहा कि उस स्कूल में दीवारें बहुत
खराब तथा काली थीं , रोशनदान नहीं था , बैठने की व्यवस्था नहीं थी आदि । शिक्षा के
क्षेत्र में अन्य बातों के साथ - साथ यह भी अनुभव किया जाने लगा है कि स्वस्थ बालकों
को स्वस्थ शिक्षा के लिए स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है । स्वस्थ वातावरण बालकों में
विषय को सिखने की अधिक रुचि उत्पन्न करता है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
3. सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास ( Development of Whole
Personality ) आज शिक्षा का उद्देश्य बालक को केवल कुछेक तथ्यों का ज्ञान
प्रदान करना ही नहीं है वरन् अब शिक्षा के द्वारा बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास
करने के प्रयास किये जाते हैं । शिक्षा निर्देशन द्वारा बालक को उपयुक्त शिक्षा ग्रहण
करने के लिए तैयार किया जाता है । व्यक्तित्व सुधार , समायोजन तथा संतुलित विकास के
लिए अनेक पयास किये जाते हैं ।
4. शिक्षा समस्याओं पर मत निर्धारण - शिक्षा मनोविज्ञान
हमें उन अनेक समस्याओं पर चिन्तन , मनन तथा निराकरण पर मत - निर्धारित करने का अवसर
प्रदान करता है जिनकी वजह से समाज में अनेक बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं । उन समस्याओं
का आधारबिन्दु विद्यालय रहता है । ये समस्यायें हैं - बालापराध , पिछड़ापन , समस्या
- बालक अनुशासनहीनता , छात्र असंतोष आदि ।
5. शिक्षण पद्धति में परिवर्तन ( Change in Teaching
Methods ) - प्राचीन पद्धति में अध्यापक रटने पर बल देते थे । उनका विचार
था कि रटने से बुद्धि का विकास होता है । मनोवैज्ञानिक परीक्षणों ने रटने के अनौचित्य
को सिद्ध कर दिया है । आज अनेक मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धतियों का विकास हो गया है ।
जिसके अनुसार शिक्षण देने से बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास होता है एवं अभिव्यक्ति
को माध्यम मिलता
6. पाठ्य - सहगामी क्रियाएँ ( Co -
curricular Activities ) - शिक्षा
मनोविज्ञान के विकास के कारण पाठ्यक्रम में अनेक महत्त्वपूर्ण पाठ्य - सहगामी क्रियाओं
को स्थान दिया जाने लगा है । पहले यह समझा जाता था कि पढ़ाई के अतिरिक्त की क्रियाओं
में बालक अपना समय नष्ट करते हैं । अब यह विचार बदल दिया गया है । वाद - विवाद प्रतियोगिता
, निबन्ध , कहानी प्रतियोगिता , लेख , भ्रमण , खेलकूद , अंत्याक्षरी , नाटक , संगीत
तथा इसी प्रकार की अन्य क्रियाओं को पाठ्यक्रम में स्थान होने के कारण बालकों के सर्वांगीण
विकास में बहुत सहयोग मिला है ।
7. अनुशासन ( Discipline ) - डण्डे , मारपीट एवं
भय के बल पर छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं किया जा सकता । मनोवैज्ञानिक परीक्षणों
ने यह भी सिद्ध कर दिया कि छात्र , अपराध करने पर दण्ड से डरते नहीं , पर वे यह अवश्य
चाहते हैं कि उन्हें दण्ड उनके अनुकूल दिया जाए । यही कारण है कि यदि कोई छात्र कक्षा
में या कक्षा के बाहर कोई अपराध करता है तो उसको डण्डे से न दबाकर उसके कारणों की खोज
करके स्थायी उपचार किया जाता है । इस प्रकार प्रजातांत्रिक आधार पर स्भायी अनुशासन
बनाये रखने पर बल दिया जाता है ।
8. विद्यार्थियों को समझना ( To Teach Students ) -
शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक को छात्रों को समझने का अवसर प्रदान करता है । यह बच्चों
के दृष्टिकोण , रुचियों , योग्यताओं , शक्तियों , सामाजिक संवेगात्मक , शारीरिक विकास
, चेतन - अचेतन व्यवहार तथा मानसिक स्वास्थ्य को समझने का अवसर देता है ।
9. मापन एवं मूल्यांकन ( Measurement and Evaluation ) -
मापन तथा मूल्यांकन की विधियों का विकास तथा प्रयोग शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण
योग है । इन विधियों के माध्यम से यह प्रयत्न किया जाता है कि बालक की योग्यताओं का
सही - सही भापन हो एवं उनके द्वारा की गई प्रगति का मूल्यांकन भी सही हो । आज बालक
की रुचि , योग्यता , अभिरुचि एवं अन्य अन्तर्निहित योग्यताओं का मापन करके उसको विकास
की दिशा दी जाती है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
10. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक ( To help in
getting Aims of Educations ) - शिक्षा मनोविज्ञान कुल मिलाकर अध्यापक तथा
छात्र के व्यवहार के इर्द - गिर्द रहता है । अत : वह शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति
में सहायक होता है । स्किनर के अनुसार - शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक को ज्ञान प्रदान
करता है एवं अध्यापक उस ज्ञान के आधार पर शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करता है ।
11. अधिगम प्रक्रिया में सुधार ( To Improve in Learning
Process ) मनोविज्ञान ने अधिगम प्रक्रिया में जबरदस्त क्रान्ति उत्पन्न
कर दी है । मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से यह साबित हो चुका है कि सीखने में विभिन्न मानसिक
प्रक्रियाएँ तथा शक्तियाँ काम करती हैं । " करके सीखना " आज की कक्षाओं में
प्रमुख सिद्धान्त बन गया है ।
12. समस्यात्मक बालकों को समझना ( To Teach Problematic
Chiidren ) प्रत्येक कक्षा में कुछ न कुछ समस्यात्मक बालक होते हैं जो सम्पूर्ण
कक्षा को प्रभावित करत हैं । इनको अतिरिक्त मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है जो कि शिक्षा
मनोविज्ञान उचित मार्गदर्शन देता है ।
13. समय - सारणी ( Time - Table ) - शिक्षा मनोविज्ञान
के कारण ही विद्यालयों में समय - सारणी बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि कौनसा विषय
पहले लिया जाए और कौनसा बाद में । पहले बालकों की थकान , विश्राम , अवधान आदि का कोई
ध्यान नहीं रखा जाता था । उस समय अध्यापक की सुविधा का यान समय सारणी बनाते समय रखा
जाता था । छात्र की क्षमता तथा योग्यता का ध्यान बिल्कुल नहीं रखा जाता था । अब समय
- सारणी बनाते समय मौसम , छात्रों की योग्यता , रुचि , व्यक्तिगत भेदों आदि का ध्यान
रखा जाता है ।
15. शैक्षिक अनुसंधान ( Educational Research ) -
शिक्षा के क्षेत्र में जब से मनोविज्ञान का प्रवेश हुआ है तब से ही शिक्षा में अनुसंधानों
की बाढ़ आ गई है । आज शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में सम्बन्धित अनुसंधान उपलब्ध है
। इन अनुसंधान के निष्कर्षों के आधार पर ही शिक्षा के व्यावहारिक पक्षों में आवश्यक
परिवर्तन किया जाता है । नवीनतम शिक्षण विधियाँ उद्देश्य आधारित शिक्षण आदि सभी तो
शैक्षिक अनुसंधान का परिणाम है । शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं महत्त्व
अच्छी लगी