सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त : स्किनर - अधिगम सिद्धान्त - KKR Education

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रविवार, 23 अगस्त 2020

सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त : स्किनर - अधिगम सिद्धान्त

अधिगम सिद्धान्त Part-3
2. सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त : स्किनर 
( Operant Conditioning Theory ) 
          उद्दीपन अनुक्रिया ( C. R. ) की श्रृंखला में बी . एफ . स्किनर ने सक्रिय ( Operant ) अनुबन्धन की अवधारणा का विकास किया । सक्रिय अनुबन्धन की मूलधारणा है - सीखने वालो की क्रिया ( Behaviour ) पुनर्बलन , ( Reinforcement ) उत्पन्न करने में माध्यम ( Instrumental ) हो जाती है । यह स्थिति किसी वातावरण में कार्यशील होने पर उत्पन्न होती है ।
          बी.एफ. स्किनर ने अधिगम के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये और यह अनुभव किया कि अभिप्रेरणा के कारण ही अधिगम में क्रियाशीलता आती है । उद्दीपन भावी क्रिया को नियंत्रित करता है । शिक्षक कक्षागत परिस्थितियों में कुछ संकेत शब्दों से सम्पूर्ण क्रिया का संचालन करता है ।

          स्किनर ने चूहों , कबूतरों आदि पर प्रयोगों द्वारा यह स्पष्ट किया कि दो प्रकार के व्यवहार प्राणियों में पाए जाते हैं—
( i ) अनुक्रिया ( Respondent ) तथा ( ii ) सक्रिय ( Operant ) 
     अनुक्रिया का सम्बन्ध उद्दीपन से होता है और सक्रियता किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं जुड़ी होती । यह स्वतंत्र होती है । सक्रिय व्यवहार किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं जुड़ा होता , इसलिए इसकी शक्ति को परवर्ती ( Reflex ) नियमों द्वारा नहीं मापा जा सकता । अनुक्रिया की दर ( Rate ) ही सक्रिय शक्ति का माप है ।
     1930 में स्किनर ने सफेद चूहों पर प्रयोग किया । उसके एक लीवर वाला बक्सा बनाया । इस लीवर में चूहे का पैर पड़ता था , खट् की आवाज को सुनकर चूहा आगे बढ़ता और प्याले में खाना मिलता । यह खाना चूहे के लिए पुनर्बलन ( Reinforcement ) का कार्य करता । चूहा इसलिए वह लीवर दबाता था । चूहा भूखा होने के कारण प्रणोदित ( Drived ) होता था और सक्रिय रहता था ।
सक्रिय अनुबन्धन ( स्किनर )


स्किनर ने लीवर की क्रिया के चयन के कारण इस प्रकार बताये
( i ) चूहें के लिये लीवर दबाना सरल कार्य है ।
( ii ) चूहा घण्टे में अनेक बार लीवर दबाने की क्रिया करता है , अत : उसके इस व्यवहार का निरीक्षण सरलता से किया जा सकता है ।
( iii ) लीवर दबाने की क्रिया का आभास हो जाता है ।

     इस प्रयोग से यह स्पष्ट है कि यदि किसी क्रिया के बाद कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तो उस क्रिया की शक्ति में वृद्धि हो जाती है ।


सक्रिय अनुबन्धन प्रयोग 
( Operant Conditioning Experiment ) 

    स्किनर ने कबूतरों पर सक्रिय अनुबन्धन के प्रयोग किए । कबूतर को स्किनर बॉक्स में एक लीवर को दबाना था । प्रारंभ में बॉक्स में प्रकाश की व्यवस्था थी । कबूतरों ने एक निर्धारित व्यवहार सीख लिया । उसका परीक्षण छः विभिन्न प्रकार की प्रकाश योजनाओं में किया गया । कम से अधिक प्रकाश योजना में समय अन्तराल रखा गया । मूल उद्दीपन में तथा अन्य उद्दीपनों में यह देखा गया कि कबूतरों ने नवीन उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया की । यह प्रवृत्ति मूल तथा नवीन उद्दीपनों के प्रति पाई गई । इस प्रयोग में सामान्यीकरण के तत्वों को विशेष महत्त्व दिया गया ।
          लीवर पर चोंच मारने की क्रिया में यह देखा गया कि जब भी प्रकाश में लीवर को देखा गया , मूल उद्दीपन प्रकट हुआ । प्रकाश व्यवस्था में जैसे - जैसे अन्तर होता गया वैसे - वैसे अनुक्रियाएँ कम होती गईं । इस प्रयोग में निम्न शब्दों को प्रयोग में लिया

     SD ( S - dee ) = धनात्मक उद्दीपन  ( Positive stimulus )
     S^ ( S - dee ) =  ऋणात्मक उद्दीपन ( Negative stimulus )

    जब धनात्मक उद्दीपन ( S.D. ) प्रस्तुत किया जाता है तो उसके परिणमस्वरूप अधिगमित अनुक्रिया अधिक ( Learned Response ) मात्रा में प्रकट होते हैं । जब ऋणात्मक उद्दीपन ( S.D. ) प्रस्तुत किया जाता है तो अनुक्रिया की गति कम हो जाती है ।

सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त क्या हैं ? 
( What is Operant Conditioning Theory ? ) 
          स्किनर ने अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि प्राणी में किसी कार्य को करने या सीखने के प्रति सक्रियता होती है जिसका आधार अभिप्रेरणा , प्रणोदन ( Drive ) , पुनर्बलन ( Reinforcement ) तथा सक्रिय ( Operant ) अनुबन्धन है , इसलिए स्किनर ने सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की व्याख्या इस प्रकार की है — सक्रिय अनुबंधन एक अधिगम प्रक्रिया है जिसमें अनुक्रिया सतत् या संभावित होता है , उस समय सक्रियता की शक्ति बढ़ जाती है ।
स्किनर द्वारा कबूतरों पर प्रयोग
स्किनर ने मनोविज्ञान में प्रचलित शब्दावली संवेदना ( Sensation ) , प्रतिमा ( Image ) प्रणोदन ( Drive ) , मूल प्रवृत्ति ( Instinct ) जैसे शब्दों के प्रयोग का बहिष्कार किया है , क्योंकि ये शब्द अभौतिक घटकों की ओर संकेत करते हैं । व्यवहार प्राणी या उसके अंश की किसी सन्दर्भ में गति है , यह गति या तो प्राणी में स्वयं होती है , अथवा किसी बाहरी उद्देश्य या शक्ति के क्षेत्र से आती हैं ।

सक्रिय अनुबन्धन की दशाएँ 
          सक्रिय अनुबन्धन का आधार पुनर्बलन ( Reinforcement ) है । पुनर्बलन की व्याख्या करते हुए कहा गया है — सक्रिय अनुबन्धन में कोई भी घटना या उद्दीपन जो किसी प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न करता है , पुनर्बलन कहलाता है । जो पुनर्बलन बार - बार दिया जाता है वह भावी व्यवहार का निर्णायक हो जाता है ।
          सक्रिय अनुबन्धन के लिए विस्तृत उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती । किसी अनुक्रिया के लिये पुनर्बलन को माध्यम बनाया जाता है । अन्य व्यक्तियों का स्वीकृति , मुस्कान , सहमति , आत्मक्षमता , आत्म महत्त्व आदि कठिन कार्यों को करना तथा अन्य अनेक आनन्ददायक अवस्थाएँ पुनर्बलन के रूप में हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं ।
सक्रिय अनुबन्धन में व्यवहार एक स्वरूप ( Shape ) ग्रहण कर लेता है ।

सक्रिय अनुबन्धन एवं शिक्षा  ( Education & Operant Conditioning ) 
         सक्रिय अनुबन्ध सिद्धान्त शिक्षा के लिए इन कारणों से उपयोगी हैं
( 1 ) अधिगम को स्वरूप प्रदान करना - अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त का प्रयोग शिक्षक सीखे जाने वाले व्यवहार को वांछित स्वरूप प्रदान करने में करता है । वह उद्दीपन नियत्रण के द्वारा वांछित व्यवहार का सृजन करता है ।
( 2 ) शब्द भण्डार एवं अभिक्रमित अधिगम - शब्द भण्डार की वृद्धि तथा अर्थग्रहण के लिये स्किनर ने अभिक्रमित अधिगम के बल प्रयोग पर जोर दिया है । इसमें शब्दों को तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया गया है ।
( 3 ) निदानात्मक शिक्षण – जटिल व्यवहार के सीखने की सभी सम्भावनाओं पर स्किनर ने विचार किया तथा जटिल एवं मानसिक रोगियों के सीखने पर भी सक्रिय अनुबन्धन को उपयोगी बताया ।
( 4 ) परिणाम की जानकारी व्यावहारिक जीवन में ऐसे अनेक कार्य हैं जिनसे व्यक्ति को संतोष नहीं मिलता । यदि सीखने वाले को अपनी प्रगति तथा परिणाम की जानकारी हो तो वह प्रगति कर सकता है । गृह कार्य में संशोधन से छात्र भावी व्यवहार सुधार करता है ।
( 5 ) पुनर्बलन का महत्त्व — सक्रिय अनुबन्धन में पुनर्बलन का महत्त्व है । पुरस्कार , दण्ड , परिणाम का ज्ञान आदि पुनर्बलन का कार्य करता है ।
( 6 ) संतोष — स्किनर ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि यदि कोई क्रिया संतोष प्रदान करती है तो उससे सक्रियता आती है और सीखने की क्रिया को बल मिलता है ।
( 7 ) पद - विभाजन — पाठ्य सामग्री को अनेक छोटे - छोटे पदों में विभाजन करने से सीखने की क्रिया को बल मिलता है । इस तरह कुल मिलाकर शिक्षक को सक्रिय अनुबन्धन द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि ( i ) कौन सा व्यवहार अपेक्षित हैं ? ( ii ) कौनसे पुनर्बलन उपलब्ध हैं ? ( iii ) कौनसी अनुक्रियाएँ उपलब्ध हैं ? ( iv ) पुनर्बलन को प्रभावशाली ढंग से किस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता है ? इन चारों पदों के अनुसार ही शिक्षक अपनी पाठ योजना का नियोजन कर सकता ?

मूल्यांकन ( Evaluation )
वर्तमान समय में स्किनर के विचार ने अधिगम के क्षेत्र में क्रांति ला दी है । मनोविज्ञान के साहचर्य तथा क्षेत्र सिद्धान्तों में संज्ञानात्मक ( Congnitive ) सिद्धान्त ने महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है । स्किनर ने अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन में इन पक्षों पर विशेष बल दिया है
( i ) क्षमता ( Capacity ) क्षमता के मानदण्ड , बदल , अनुभवाश्रित कर स्किनर ने नये ढंग से सोचने को विवश किया है । नियमबद्धता से क्षमता का घनिष्ठ सम्बन्ध है । स्किनर ने इसी आधार पर व्यक्तिगत परीक्षणों का विरोध किया है । सक्रिय अनुबन्धन के अन्तर्गत स्किनर ने नियमों की अपेक्षा , नियम पालन पर बल दिया है एवं सम्पूर्णता पर विश्वास किया है ।
( ii ) अभ्यास ( Practical ) — अभ्यास , पुनर्बलन का एक रूप है । उद्दीपन अनुबन्धन सतत् है परन्तु अनुक्रिया अनुबन्धन में बराबर बल की आवश्यकता पड़ती है । अभ्यास के नियम का पूरा उपयोग इसमें किया जाता है । पुनर्बलन की शक्ति कितनी प्रबल अथवा निर्बल है । इस पर सक्रिय अनुबन्धन निर्भर करता है ।
( iii ) अभिप्रेरणा ( Motivation ) - स्किनर ने अभिप्रेरणा को सक्रिय अनुबन्धन का सशक्त घटक माना है । पुरस्कार या पुनर्बलन सक्रिय शक्ति को बढ़ाने के लिये आवश्यक है । दण्ड एवं पुरस्कार का सिद्धान्त सक्रिय अनुबन्धन को शक्ति प्रदान करता है । मानवीय गुण अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं ।
( iv ) अवबोध ( Understanding ) - स्निकर अन्तर्दृष्टि ( Insight ) जैसे शब्द के प्रयोग से परहेज करता है । वह समस्या को समझने तथा उसमें समाधान पर बल देता है । समानता तथा सरलता के आधार पर समस्या का समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है । वह आन्तरिक तथा बाह्य उद्दीपनों की सहायता से समस्या का समाधान करता है ।
( v ) अन्तरण ( Transfer ) स्किनर सामान्यीकरण या अन्तरण के लिये प्रतिष्ठित ( Induction ) शब्द का प्रयोग करता है । अन्तरण में सीखे हुए ज्ञान का अन्य परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है । प्रतिष्ठित में भी वही भाव है । स्किनर ने सामान्यीकरण ( Generalization ) के लिये अभिस्थापन शब्द का प्रयोग किया है । यह व्याख्या थार्नडाईक के विचारों के समान है ।

स्किनर के विचारों की आलोचना भी कम नहीं हुई है । आलोचना के मुद्दे इस प्रकार हैं -
  • ( i ) स्किनर अनुबन्धन सीमित नहीं है । यह S - R सिद्धान्त का ही विकसित रूप
  • ( ii ) सक्रिय अनुबन्धन में तैयारी के नियम की उपेक्षा नहीं की जा सकती ।
  • ( iii ) स्किनर ने पुनर्बलनों को शक्तिदाता माना है , किन्तु अधिगम की पूर्णता उसकी निष्पत्ति में है । इसकी पक्ष की उपेक्षा की गई है ।
  • ( iv ) सक्रिय अनुबन्धन , निरीक्षणात्मक अधिगम है जिसका लाभ अध्ययनकर्ता उठा सकता है ।
  • ( v ) चौमुस्की ने स्किनर के हर पद की आलोचना करते हुये कहा है कि सक्रिय अनुबन्धन पशुओं तथा हीन बुद्धि वाले प्राणियों पर तो सफल हो सकता है परन्तु विवेकशील प्राणियों पर नहीं ।

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