बाल विकास का अर्थ एवं अध्ययन- Child Development (REET 2020) - KKR Education

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गुरुवार, 6 अगस्त 2020

बाल विकास का अर्थ एवं अध्ययन- Child Development (REET 2020)

बाल विकास का अर्थ
Meaning of Child Development
बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन


          गर्भाधान से लेकर जन्म तक व्यक्ति में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं जिन्हें भ्रूणावस्था का शारीरिक विकास माना जाता है । जन्म के बाद वह कुछ विशिष्ट परिवर्तनों की ओर संकेत करता है ; जैसे — गति , भाषा , संवेग और सामा जिकता के लक्षण उसमें प्रकट होने लगते हैं । विकास का यह क्रम वातावरण से प्रभावित होता है ।
बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन
गैसल ( Gessel ) के अनुसार , 

“ विकास सामान्य प्रयत्न से अधिक महत्व की चीज है । विकास का अवलोकन किया जा सकता है एवं किसी सीमा तक इसका मूल्यांकन एवं मापन भी किया जा सकता है । इसका मापन तथा मूल्यांकन तीन रूपों में हो सकता है- ( i ) शरीर निर्माण ( Anotomic ) , ( ii ) शरीर शास्त्रीय , ( iii ) व्यावहारिक व्यवहार चिन्ह ( Behaviour Sians ) विकास के स्तर एवं शक्तियों की विस्तृत रचना करते हैं ।"बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

    किसी बालक के विकास से आशय शिशु के गर्भाधान ( गर्भ में आने ) से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता प्राप्त करने की स्थिति से है । पितृ सूत्र ( Sperms ) तथा मातृ सूत्र ( Ovum ) के संयोग से एक जीव उत्पन्न होता है । तत्पश्चात् उसके अंगों का विकास होता है । यह विकास की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है । इसी के फलस्वरूप बालक विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है । परिणामस्वरूप बालक का शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है । हम पूर्व में बता चुके हैं कि विकास बढ़ना नहीं है अपितु परिपक्वतापूर्ण परिवर्तन है । बालकों में परिवर्तन एक अनवरत न दिखने वाली प्रक्रिया है , जो निरन्तर गतिशील है । अन्य शब्दों में , " विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है , वस्तुत : यह व्यवस्थित तथा समानुगत प्रगतिशील क्रम है , जो परिपक्वता प्राप्ति में सहायक होता है ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

( 1 ) ड्रेवर ( Drever )
 के अनुसार , “ विकास , प्राणी में होने वाला प्रगतिशील परिवर्तन है , जो किसी लक्ष्य की ओर लगातार निर्देशित होता रहता है । उदाहरणार्थ- " किसी भी जाति में भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ अवस्था तक उत्तरोत्तर परिवर्तन है । "बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

( 2 ) हरलॉक ( Hurlock ) 
का कहना है , " विकास की सीमा अभिवृद्धि तक ही नहीं है अपितु इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है । विकास के परिणामस्वरूपव्यक्ति में अनेकनवीनविशेषताएँ एवंनवीनयोग्यताएँ स्पष्ट होती हैं । "बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

( 3 ) मुनरो ( Munroe )
कथन है , " परिवर्तन श्रृंखला की उस अवस्था को जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है , विकास कहा जाता है । "बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

विकास का अर्थ
     प्रश्न उठता है कि विकास क्या है ? विकास से अभिप्राय बढ़ना नहीं है । विकास का अर्थ परिवर्तन है । परिवर्तन एक प्रक्रिया है जो हर समय चल रही है । अतः प्रत्येक क्षण विकास भी हो रहा है । हरलॉक के अनुसार , “ विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है । वस्तुतः यह तो व्यवस्थित तथा समानुगत प्रगतिशील क्रम है जो परिपक्वता प्राप्ति में सहायक होता है । " बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

     विकास चिन्तन का मूल है । यह एक बहुमुखी क्रिया है और इसमें केवल शरीर के अंगों के विकास का ही नहीं प्रत्युत सामाजिक , सांवेगिक अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाता है । इसी के अन्तर्गत शक्तियों और क्षमताओं के विकास को भी गिना जाता है । हेनरी सोसल वोल्ड ने विकास को इस प्रकार परिभाषित किया है- बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन
( i ) विकास के कारण और उसकी प्रक्रिया , किसी क्रिया में निहित प्रक्रिया ;
( ii ) मानव मस्तिष्क में सभ्यता की , प्राणी के जीवन के विकास की अवस्था या विकास की वह प्रक्रिया जो अभिवृद्धि , प्रसार आदि में योग देने की स्थिति में हो ;
( iii ) विकास की प्रक्रिया का परिणाम जो अनेक कारण दशायें , वर्ग - भेद आदि सामाजिक समस्याओं के रूप में प्रकट होते हैं ।
" इसी प्रकार जेम्स ड्रेवर ने विकास की परिभाषा दी है- " विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में प्राणी में सतत् रूप से व्यक्त होती है । यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्र णावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक होता है । यह विकास तन्त्र को सामान्य रूप में नियन्त्रित करता है । यह प्रगति का मान दण्ड है और इसका आरम्भ शून्य से होता है ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन
बाल विकास का अध्ययन

बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन
बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन


( 1 ) प्राचीन से आधुनिक
    आज ज्ञान - विज्ञान के विकास के साथ - साथ बाल विकास का अध्ययन महत्वपूर्ण होता जा रहा है । वेदों में भी बाल विकास पर विशेष ऋचायें मिलती हैं - ' हे प्रिय बालक ! तेरा मन , वाणी , प्राण , नेत्र , स्रोत्र सुविकसित हो । तेरे स्वभाव से क्रूरता दूर हो , तू शुद्ध और पवित्र हो जाये ; तेरा धैर्य सुविकसित हो । दिन रात तुझे शान्ति दें और माता - पिता सुरक्षा प्रदान करते रहें ? चार सौ वर्ष पूर्व प्लेटो ( Plato ) ने बालक के विकास तथा प्रशिक्षण पर बल दिया था । प्लेटो का विचार था कि शिशु में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है और उन व्यक्ति गत भिन्नताओं का विकास होना अनिवार्य है । बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययनजॉन लॉक ने सत्रहवीं शताब्दी में बालक के विकास पर बल देते हुए उसकी सहज प्रवृत्तियों तथा आदतों के विकास पर बल दिया है । रूसो ने प्रकृति की ओर चलो ( Back to Nature ) का नारा लगाया और प्रगतिशील शिक्षा की योजना में एमिल ( Emile ) एवं सोपी ( Sofi ) नामक पात्रों के माध्यम से बालक के विकास की प्रक्रिया को समझाया । इसी प्रकार हरलॉक ने बाल - विकास एवं विकासात्मक मनोविज्ञान नामक पुस्तकों में विकास के अध्ययनों , विचारधाराओं एवं प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

( 2 ) जीव शास्त्रीय पक्ष - 
बाल विकास के जीव शास्त्रीय अध्ययन का आरम्भ डार्विन ( Darwin ) के प्राकृतिक उद्विकास ( Natural Evolution ) एवं अस्तित्व के लिये संघर्ष ( Struggle for Existence ) से हुआ । इसी प्रकार मेंडल ( Mendal ) ने चूहों . मटरों , मुर्गी के चूजों पर प्रयोग करके बाल विकास के महत्व पूर्ण पक्ष वंशक्रम तथा वातावरण की नवीन उद्भावनायें प्रकाशित की ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययनपॉवलव ( Pavlov ) ने कुत्तों पर प्रयोग करके अनुकूलित अनुक्रिया ( Conditioned Res ponse ) पर प्रकाश डाला । शिशुओं में सांवेगिक दशाओं का अध्ययन करने के लिए वाटसन ( Watson ) ने अनेक प्रयोग किये ।

( 3 ) जीवन वृत्त - 
जीवन - वृत्त ( Biographies ) के द्वारा भी बाल विकास का अध्ययन किया गया । अठारहवीं शताब्दी में टाइडमैन ( Tiedemann ) ने डेढ़ से दो वर्ष तक के बालकों के शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक विकास का अध्ययन किया । शिशुओं के अनेक जीवन - वृत्त बीसवीं शताब्दी में प्रकाशित हुये हैं । यद्यपि ये जीवन वृत्त अधिकारिक नहीं हैं किन्तु बाल विकास के अध्ययन में ये सहायक हुये हैं ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

( 4 ) प्रयोगात्मकता
वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होने से प्रयोगात्मक तथा निरीक्षणात्मक अध्ययनों का विकास हुआ । जी ० स्टेनल हॉल ने बाल विकास के क्षेत्र में प्रयोगात्मक दिशा प्रदान की है । कोंकलिन ( Conklin ) , ग्रेसल ( Gresse ! ) , गोडार्ड ( Goddard ) , कुल्हमैन ( Kuhlmann ) , मतीर ( Mateer ) एवं टर्मन ( Terman ) ने मानव विकास के अध्ययन हेतु अनेक विधियों तथा प्रणालियों का आविष्कार किया है । हल ( Hull ) ने किशोरों के अध्ययन सम्बन्धी दो प्रतिवेदनों में बाल - विकास सम्बन्धी नवीन उद्भावनायें स्थापित की हैं । बीने ( Binet ) ने बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास के अध्ययन में कीर्तिमान स्थापित किया है । इसने साइमन ( Simon ) के साथ मिलकर अनेक बुद्धि - परीक्षणों की रचना की ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन
            आज विश्व भर में अनेक विद्वान तथा अनेक संस्थायें बाल विकास के अध्ययन में लगी हैं । इनके द्वारा किये गये अध्ययनों के परिणामों से अनेक योजनायें आरम्भ की गयी हैं और बालकों के व्यक्तित्व का विकास किया गया है । भारत में ' इन्सिटट्यूट ऑफ पब्लिक कोऑपरेशन एण्ड चाइल्ड डवलपमेंट , ' इस दिशा में कार्य कर रहा है ।बाल विकास का अर्थ  एवं अध्ययन

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