कम्प्यूटर हार्डवेयर उपकरण तथा यंत्र
कम्प्यूटर
के लिए हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों आवश्यक हैं । कम्प्यूटर के लिए हार्डवेयर उसका
तन ( Body ) है तो सॉफ्टवेयर उसके लिए आत्मा तथा मस्तिष्क है । कम्प्यूटर के सभी भौतिक
अवयव जिन्हें हम देख सकते है । स्पर्श कर सकते हैं , किन्तु सॉफ्टवेयर को न देख सकते
हैं और न स्पर्श ही कर सकते हैं । ये विभिन्न प्रकार के प्रोग्राम हैं जिनके अनुसार
कम्प्यूटर कार्य करते हैं । नीचे इन्हीं दोनों का सामान्य परिचय हैं ।
हार्डवेयर (
Hardware )
कम्प्यूटर
में सामान्यतः पाये जाने वाले हार्डवेयरों को हम चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं
( A ) आगत उपकरण ( Input Devices )
( B ) निर्गत उपकरण ( Output Devices )
( C ) केन्द्रीय संगणक इकाई ( Central Processing
Unit - CPU )
( D ) मेमोरी ( Memory )
नीचे इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है
( A ) इनपुट / आगत उपकरण ( Input Devices )
–
कम्प्यूटर
में सामान्यतः निम्नांकित आगत उपकरण होते हैं । ये उपकरण अपने - अपने ढंग से सूचनाएँ
सी.पी.यू. को प्रदान करते हैं ।
( 1 ) की - बोर्ड ( Key - board )
( 2 ) माउस ( Mouse )
( 3 ) स्कैनर ( Scanner )
( 4 ) लाइट पेन ( Light Pen )
( 5 ) ट्रैक बाल ( Track Ball )
( 6 ) जॉय स्टिक ( Joy Stick )
( 7 ) टेबलेट ( Tablet )
नीचे इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है होता है ।
( 1 ) की - बोर्ड
( Key - board ) – कम्प्यूटर
के लिए की – बोर्ड बड़ा महत्वपूर्ण होता हे , यह विभिन्न प्रकार के निर्देश'कम्प्यूटर
को देता है । यह टाइपराइटर के की - बोर्ड के समान ही होता है
। किन्तु इसमें टाइपराइटर की " की " से कही अधिक " की " होती है
। टाइपराइटर में जो " की " होती हैं , उनके अलावा कम्प्यूटर में पेज अप
, पेज डाउन , होम , डिलीट की , मोडीफायर कीज ( Shift , Ctrl तथा Alt ) , एण्टर की
, प्रिण्ट की , स्क्रोल की , कर्सर कण्ट्रोल की , होम की , एण्ड की , एस्केप की तथा
10 या 12 फंक्शन ( Function Keys )
चित्र - की - बोर्ड
कम्प्यूटर की कुछ
प्रमुख कीज ( Important Keys of Computer )
( 1 ) एस्केप की ( Esc ) यह
' की ' सामान्यतः सबसे ऊपर बायी ओर के कोने में होती है । इस ' की ' का प्रयोग एकदम
पहले कराई गयी एण्ट्री या दिये गये कमाण्ड को रद्द कराने के लिए किया जाता है ।
( 2 ) फंक्शन कीज ( Function Keys ) - ऊपर F1 से लेकर F12 , तक फंक्शन
कीज होती है । अलग - अलग प्रोग्रामों में इनके अलग - अलग कार्य होते हैं । जैसे अक्षरों
के साइज बड़ा करना , छोटा करना आदि - आदि । Dos में F , जो कार्य करेगी वह दूसरे प्रोग्रामों
में F के कार्य से भिन्न होगा ।
( 3 ) टाइपराइटर कीज ( Typewriter Keys ) ये'कीज ' एक सामान्य टाइपराइटर
में पायी जाने वाली ' कीज ' के समान ही होती हैं । इनमें अक्षर कीज , संख्या कीज तथा
विरामादि चिह्नों से सम्बन्धित कीज होती हैं ।
( 4 ) कर्सर कण्ट्रोल कीज ( Cursor Control Keys ) ये चार ' कीज ' का एक
समूह होता है जिन पर → -1 तथा / के चिह्न लगे रहते हैं । इनकी सहायता से हम कर्सर के
स्क्रीन पर ऊपर नीचे दायें तथा बायें ले जाने का कार्य करते हैं ।
( 5 ) कर्सर करैक्टर कीज ( Cursor Character Keys ) कम्प्यूटर में चार कर्सर
करैक्टर कीज होती हैं- Home , End , Pgup , Pgdn | इनमें Home ' की ' के दवाने से कर्सर
टाइप हो रही लाइन के बिल्कुल प्रारंभ में आ जाता है तथा End ' की ' दबाने से पंक्ति
से कर्सर अन्तिम अक्षर के बाद आ जाता है । Pgup दबाने से पहले वाला पैज तथा Pgdn दबाने
से अलग पेज को पटल पर लाया जाता है ।
( 6 ) कैप लॉक ( Cap Lock ) - इसके दबाने से अक्षर कैपीटल रूप
में पटल पर
( 7 ) शिफ्ट की ( Shift Key ) इसके दबाने से भी कैपीटल अक्षर
टाइप होते हैं । कीज होती है , जिन पर 0 से लेकर 9 तक की संख्याएँ होती हैं । यदि हम
ऐसा कार्य का
( 8 ) न्यूमीरेक की पैड ( Numeric Key Pad ) - की - बोर्ड के दायीं ओर
ये कुछ रहे हैं , जिसमें संख्याओं की अधिक आवश्यकता है तो इन ' कीज ' से कार्य लेना
सुविधाजनक रहता है । किसी - किसी ' की ' के यहाँ एक से अधिक कार्य भी हो सकते हैं ।
उदाहरण के लिए Alt को दबाकर 0228 दबाया जाय तो हिन्दी में उससे ' क्त '
( 9 ) एण्टर की ( Enter Key ) - इसके दबाने से नई पंक्ति या नया
पैराग्राफ शुरू 164 आते हैं । यह जब दबा होगा तब तक अक्षर कैपीटल ही आते रहेंगे । बनेगा
। होता है । इसके बार बार दबाने से नया पैराग्राफ या लाइन उतनी ही नीचे चली जाती रहेगी
।
( 10 ) डिलीट की ( Del Key ) इस ' की ' को दबाने से पटल पर
जो कुछ भी टाइप किया है वह मिट जाता है ।
उपरोक्त ' कीज ' के अलावा
कम्प्यूटर में कुछ विशेष कार्यों के लिए Ctrl तथा Alt कीज भी होती हैं । इन्हें विशेष
कार्यों के लिए दूसरी कीज के साथ दबाना पड़ता है । उदाहरण के लिए पेजमेकर 6.5 में टाइप
करते - करते यदि Ctrl + 2 दबा दें तो अक्षर बड़े दिखाई देंगे और Ctrl +1 दबा दें तो
छोटे ।
इनके अलावा टाइपराइटर की
भाँति कम्प्यूटर में भी टैब ( Tab ) तथा बैक स्पेस ( Back Space ) कीज होती हैं ।
2. माउस ( Mouse
) *
आधुनिक कम्प्यूटरों में माउस एक
महत्त्वपूर्ण आगत उपकरण है । इसका सम्बन्ध एक तार द्वारा सी.पी.यू. से होता है । यह
हथेली के नीचे रखा जाता है जिसके आगे के भाग के दायीं और बायीं ओर दो दबाने योग्य बटन
होते हैं । इसकी सहायता से हम कम्प्यूटर को विभिन्न प्रकार के निर्देश देते हैं ।
( 3 ) स्कैनर (
Scanner )-
स्कैनर भी एक आगत उपकरण है जो कम्प्यूटर में सूचनाओं
का प्रेषण सीधे ही कर देते हैं । इसके लिए की - बोर्ड तथा माउस के द्वारा कम्प्यूटर
को सूचनाएँ देने की आवश्यकता नहीं होती है । इसकी सहायता से कोई भी रेखाचित्र , आकृति
, फोटो चित्र आदि भी कम्प्यूटर को अपने मूल रूप में प्रेषित किये जा सकते हैं ।
स्कैनर दो प्रकार के होते हैं
( i ) ऑप्टीकल स्कैनर
( Optical Scamer ) तथा
( ii ) मैग्नेटिक इंक करैक्टर
रीडर ( Magnetic Ink Character Reader - MICR ) |
( 4 ) लाइट पेन
( Light Pen )
कम्प्यूटर को सूचनाएँ तथा
निर्देश देने का एक उपकरण लाइट पैन ( Light Pen ) है । लाइट पैन से सीधे ही हम मॉनीटर
पटल पर कुछ भी अंकित कर सकते हैं । इससे पटल पर न कोई खरोंच आती हैं और न बाद के लिए
कोई निशान ही बचता है । किन्तु लाइट पैन से काम करने के लिए कम्प्यूटर में कुछ अतिरिक्त
व विशेष चीजों की आवश्यकता होती है ।
Light pan |
( 5 ) ट्रैक बाल
( Track Ball )
माउस के नीचे चारों ओर
घूमने वाली एक बड़ी गोली ( Ball ) होती है । जब माउस को इधर - उधर घुमाते हैं तो वह
गोली भी घूमती है । गोली के घूमने से पटल का कर्सर भी तदनुसार घूमता है । इसी सिद्धान्त
पर यह ट्रैक बाल कार्य करता है । ऐसा लगता है मानो उल्टा रख दिया है और बाल ऊपर आ गया
है । इस बाल को हम अँगुलियों की सहायता से इधर - उधर घुमाकर कर्सर की दिशा तय कर सकते
हैं ।
( 6 ) जॉय स्टिक
( Joy Stick )
कम्प्यूटर में जॉय स्टिक मुख्य
रूप से कम्प्यूटर गेम के लिए काम आता है । यह भी माउस के समान ही काम करता है ।
जॉय स्टिक में ऊपर व नीचे
दो बाल ( Ball ) होती हैं तथा एक हत्था ( Handle ) होता है । हत्थे के ऊपरी सिरे में
एक पुश बटन होता है । हत्थे को दायें - बायें तथा आगे पीछे घुमाकर तथा बटन दबाकर मॉनीटर
पटल पर माउस के समान ही सूचनाएँ दी जा सकती हैं । अलग - अलग कम्पनियों के जॉय स्टिक
का आकार अलग - अलग प्रकार का होता हैं ।
ध्वनि आगत प्रणाली
( Voice Input System )
कम्प्यूटरों को उपरोक्त वर्णित उपकरणों से सूचना तथा निर्देश देना समय - साध्य तथा
कठिन कार्य है । इससे मुक्ति दिलाने के लिए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस प्रयास में हैं
कि मनुष्य बोले तथा उसकी ध्वनि के आधार पर कम्प्यूटर कार्य करे । आज इस कार्य करे ।
आज इस कार्य में उन्हें सफलता भी मिल गयी है । अब मनुष्य कम्प्यूटर में विशेष उपकरण
लगवाकर कार्य कर सकता है । उदाहरण के लिए टाक राइटर ( Talk Writer ) 6000 शब्दों को
95 प्रतिशत शुद्धता के साथ सुन व समझ सकता है तथा निर्देशों का पालन कर सकता है । इनके
अतिरिक्त पर्यावरण , तापमान , गति , कम्पन आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ ग्रहण करने तथा
उन्हें प्रदर्शित करने के लिए ट्रान्सड्यूक्स ( Transducs ) , सीसीडी ( CCD ) कैमरा
तथा ऑप्टीक्राम ( Opticram ) कैमराओं का प्रयोग अब किया जाने लगा है ।
( B ) आउटपुट / निर्गत उपकरण ( Output
Devices )
कम्प्यूटर को जो सूचनाएँ
तथा निर्देश दिये हैं उनके अनुसार कम्प्यूटर ने क्या कार्य किया है । उसको जानने के
लिए कम्प्यूटर हमारे पास विविध माध्यमों से सूचनाएँ तथा गणनाएँ आदि प्रेषित करता है
। इनको प्रेषित करने के उपकरण ही निर्गत ( Output ) उपकरण कहलाते हैं । इन उपकरणों
को हम चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं
1. प्रिण्टर्स ( Printers )
2. मॉनीटर पटल ( Monitor Screen )
3. प्लाटर ( Plotter )
4. ध्वनि ( Voice )
1. प्रिण्टर्स (
Printers )
कम्प्यूटर को जो भी सूचनाएँ तथा निर्देश दिये हैं उनके आधार पर तैयार सामग्री को कम्प्यूटर
प्रिण्टर से प्रिण्ट करके हमें देते हैं । कम्प्यूटर पर जो भी डॉक्यूमेण्ट हमने सूचनाओं
तथा निर्देशों के आधार पर तैयार किया है उसे ज्यों का त्यों प्रिण्टर से प्रिण्ट करके
देता है । इससे हमें अक्षर , संख्याएँ , रेखाचित्र , डिजइन कुछ भी प्राप्त हो सकता
है । प्रिण्टर सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं
( i ) डॉट मैट्रिक्स ( Dot Matrix )
( i ) इंक जेट ( Ink Jet )
नीचे इन चारों का ही संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है
( i ) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर्स ( Dot Matrix Printers )
डॉट मैट्रिक्स डेजी ह्वील
( Daisy Wheel ) तथा इंक जेट ( Ink Jet Printers ) को हम करैक्टर प्रिण्टर्स के वर्ग
में खाते है क्योंकि ये एक समय में एक ही अक्षर टाइप करते हैं । डेजी ह्वीली में एक
पहिया होता है जो तेजी से घूमता है तथा जो अक्षर टाइप होना होता है उसके सामने पहिये
पर लगी सलाई जैसे ही सामने आती है , पीछे से एक हथौड़ानुमा यंत्र उस पर चोट करता है
। फलतः रिबन पर वह अक्षर छप जाता है । यह एक ही आकार के अक्षर टाइप कर पाता है । इसमें
सुधार करते हुए 70 के दशक में डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर्स का विकास हुआ । इनसे प्रिंटिंग
तेज तथा स्पष्ट होता है तथा अक्षरों का आकार भी छोटा - बड़ा किया जा सकता है । इसमें
एक प्रिण्ट हैड होता है , जिस पर छोटी - छोटी पिन ( Pins ) होती हैं । कुछ प्रिण्ट
हैड पर 9 पिनों की 11 पंक्तियाँ होती है तो कुछ में 241 पिन जितनी अधिक होंगी , प्रिंटिंग
उतनी ही तीव व अच्छी होगी । इन पिनों पर रिबन के ऊपर चोट देने से बिन्दुओं के द्वारा
अक्षर बनते हैं । ये प्रिण्टर सामान्यतः 100 अक्षर से 1200 अक्षर प्रति सैकेण्ड प्रिण्ट
कर सकते हैं । आजकल बाजार में अनेक कम्पनियों के डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर्स उपलब्ध हैं
।
चित्र - डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर
( ii ) इंक जेट प्रिण्टर्स ( Ink Jet Printers )
डॉट मैट्रिक्स तथा डेली
हील में प्रहार के द्वारा प्रिटिंग होती है इसलिए ये प्रिंटिंग करते समय आवाज करते
हैं । प्रहार कारण इसलिए इनसे कार्बन प्रति प्राप्त की जा सकती है । इसके स्थान पर
इंक जेट पिन या सलाइयाँ न होकर उनके स्थान पर बहुत ही पतले पाइप ( Jet ) होते हैं ।
इनमें स्याही भरी रहती है । प्रिटिंग के समय इन पाइपों से छोटी - छोटी बूंदों के रूप
निकलकर अक्षर बनते हैं । इससे बने अक्षर डॉट - मैट्रिक्स प्रिण्टर्स की तुलना में कहीं
अधिक स्पष्ट तथा सुन्दर होते हैं । यह कागजों के अलावा अन्य आधारों पर भी प्रिण्ट का
सकता है ।
( iii ) लेजर प्रिण्टर्स ( Laser Printers )
लेजर प्रिण्टर्स फोटो कॉपी
तथा लेजर तकनीक का मिला - जुला रूप है जिसमें एक घूमने वाले मिरर से लेजर किरण निकालकर
एक विशेष प्रकार के लेन्स से होकर सिलीकॉन के बने फोटो सेन्सिटिव ड्रम पर गिरती है
। यही प्रिण्ट होने वाली सामग्री बनती है । इस बेलन के ऊपर टोनर ( Toner ) मशीन ही
द्वारा समुचित मात्रा में डाला जाता है । टोनर के कण वांछित बिन्दुओं पर चिपक जाते
है । बाद में यह बेलन कागज पर घूमता है तो कागज पर अक्षर छप जाते हैं । लेजर मशीन में
यह कागज गर्म होता है जिससे टोनर के कारण पिघलकर स्थायी रूप से कागज पर चिपक जाते हैं
। यदि कागज गर्म न हो तो छपाई स्थायी नहीं हो पाती हैं ।
2. मॉनीटर पटल (
Monitor Screen )
सूचनाओं
तथा तथ्यों के निर्गत उपकरणों में दूसरा प्रमुख उपकरण है मॉनीटर ( Monitor ) । यह देखने
में टी.वी. ( T.V. ) जैसा दिखाता है जिसका तार द्वारा सम्बन्ध सी.पी.यू ( C.P.U. )
से होता है । जैसे बाजार में कई आकार के टी . वी . उपलब्ध रहते हैं । वैसे ही कम्प्यूटर
मॉनीटर भी 10 से 19 " तक आकार के पाये जाते हैं ।
जिस
प्रकार टी.वी. श्याम - श्वेत ( Black and White ) अथवा रंगीन कलर हो सकते हैं वैसे
ही कम्प्यूटर के मॉनीटर भी तीन प्रकार के होते हैं
( 1 ) श्वेत - श्याम ( Black
and White )
इन्हें
मोनोक्राम ( Monocrome ) पटल कहते हैं । इनमें किसी भी प्रकार का रंग नहीं होता है
। पटल पर केवल श्वेत - श्याम आकृतियाँ या सूचनाएं ही प्रदर्शित होती हैं ।
( 2 ) आर.जी.बी. ( R.G..B . )
अर्थात् वे पटल जिन पर
लाल ( Red ) जी ( Green ) या नीले ( Blue ) रंग में आकृतियाँ उभरती हैं । इसमें केवल
तीन रंग ही होते हैं । इस प्रकार के मॉनीटर आँखों पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं
। इसलिए इनका प्रयोग अब नहीं किया जाता है ।
( 3 ) रंगीन ( Coloured )
पटल
वे पटल है जिन पर सूचनाएँ व आकृतियाँ विभिन्न रंगों में उभरती हैं । कम्प्यूटर चलाने
वाला व्यक्ति मनचाहे रंगों का प्रयोग कर वांछित रंग मे पटल पर सूचनाएँ तथा आकृतियाँ
ले सकता है । वर्तमान में इस प्रकार के पटलों का पर्वाधिक प्रयोग हो रहा है । इसके
दो कारण है - प्रथम तो इनसे उभरे चित्रादि होते हैं तथा द्वितीय ये अधिक प्रभावी एवं
स्पष्ट होते हैं ।
मॉनीटर का सम्बन्ध सी . पी . यू . तथा विद्युत बोर्ड
दोनों से होता है । सी.पी.यू. द्वारा दिये गये कमाण्डों को मॉनीटर महीन बिन्दुओं द्वारा
पटल पर प्रदर्शित करता है । इन बिन्दुओं को पिक्सल ( Pixcl ) कहा जाता है । पिक्सल
जितने अधिक तथा जितने अधिक पास - पास होंगे , चित्र उतना ही अधिक स्पष्ट व साफ होगा
। सामान्यतः एक मॉनीटर में 640 पिक्सल ( Pixcl ) वाली 200 रेखाएँ होती हैं । पिक्सलों
की रेखाएँ महीन बिन्दुओं द्वारा मिलकर चित्रादि बनाती हैं । इन बिन्दुओं ( Pixel )
के मिलने को रिजोलूशन ( reso
3. प्लाटर (
Plotter ) –
प्लाटर
कम्प्यूटर की एक निर्गत ( output ) प्रणाली है जिसका उपयोग डिजाइन , नक्शे , ग्राफ
तथा इंजीनियरिंग आकृति बनाने के लिए किया 170 lution ) कहते हैं । सामान्यतः यह रिजोलूशन
640 x 200 का हो सकता है । रिजोलूशन किस प्रकार का बनेगा यह कमाण्ड मॉनीटर को सी .
पी . यू . से प्राप्त होता है । जाता है । प्लाटर का उपयोग करने के लिए कम्प्यूटर में
विशेष सॉफ्टवेयर डलवाने पड़ते हैं । इसमें कम्प्यूटर एक या अधिक पैन ( pen ) की सहायता
से कमाण्ड देकर कागज पर आकृतियाँ बनवाता है । इनसे रंगीन ट्रान्सपेरेन्सी , 1 फल्म
आदि पर भी बनवाई जा सकती हैं । आकृति बनाने में कितना समय लगता है यह आकृति के आकार
तथा जटिलता पर निर्भर करता है किन्तु यह निर्विवाद है कि अन्य साधनों की अपेक्षा यह
समय बहुत ही कम लेता है । परम्परागत विधियों से कोई आकृति बनाने में यदि एक पखवाड़ा
लगता है तो कम्प्यूटर प्लाटर्स की सहायता से उसी आकृति को कुछ ही समय में बनाया जा
सकता है । साथ ही प्लाटर द्वारा बनयायी गई आकृति शुद्ध स्पष्ट तथा अच्छे प्रकार की
होती है ।
4. ध्वनि (
Voice )
कम्प्यूटर में कुछ विशेष उपकरण
यथा - मल्टी मीडिया , स्पीकर आदि लगवाकर ध्वनि भी पैदा की जा सकती है और हम स्पीकर्स
की सहायता से उसे सुन भी सकते हैं । यह भी एक निर्गत उपकरण है । हम निर्देश देने पर
कम्प्यूटर्स के साथ लगे स्पीकरों से समय , महीना बैंक बैलेन्स , ट्रेन में रिजर्वेशन
की स्थिति , फ्लाइट को स्थिति आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ सुन सकते हैं ।