माता और पिता से 23-23 जोड़े गुणसूत्रों से एक सन्तान उत्पन्न होती है । विद्वानों का मानना है कि 1 जोड़े गुणसूत्र में 1000 से 3000 तक जीन होते है और एक जीन पूर्वजों की एक विशेषता माता - पिता के माध्यम से संतानों में हस्तान्तरित करता है । इस प्रकार पूर्वजों के गुणदोषों की इस मिली जुली गठरी को वंशानुक्रम कहते है ।
- 1. पार्कर - हम जो भी हैं 90 प्रतिशत तक वंशानुक्रम से है ।
- 2. वुडवर्थ - वंशानुक्रम में वे सभी विशेषताए आ जाती है जो जन्म से ही नहीं वरन उससे भी 9 माह पूर्व संतान में मौजूद थी ।
- 3. जेम्स ड्रेवर - पूर्वजों और माता - पिता की विशेषताओं का संतानों में हस्तातरण ही वंशानुक्रम है ।
- 4. पीटरसन - एक संतान को अपने माता - पिता से जो भी जन्मजात प्राप्त होता है । वंशानुक्रम है ।
वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
वंशानुक्रम के सिद्धांत
- 1. बीजकोष की निरन्तरता का सिद्धांत - ( अर्जित गुणों के असंक्रमण या अहस्तान्तरण का सिद्धांत ) प्रतिपादक - विजमैन बीजमेन ने नर और मादा चूहे की पूंछ काट दी लेकिन इनकी अगली पीढ़ी में पूंछ वाले चूहे पैदा हुए इन्होंने हर पीढ़ी में चूहों की पूंछ काटी और ऐसा 9 पीढ़ी तक किया इन्होंने सिद्ध किया कि जो गुण या दोष माता पिता अपने जीवनकाल में अर्जित करते है । वे अगली पीढ़ी में हस्तांतरित नहीं होते ।
- 2. अर्जित गुणों के संक्रमण या हस्तांतरण का सिद्धांत - प्रतिपादक - लेमार्क / मैकडूगल ( Phychology ) जीव वैज्ञानिक लेमार्क ने जिराफ का उदाहरण देकर सिद्ध किया कि जैसे - जैसे घास फुस की कमी पड़ती गई अगली हर पीढ़ी में जिराफ की गर्दन थोड़ी - थोड़ी बढ़ती गई इस प्रकार का एक प्रयोग मनोवैज्ञानिक मैकडूगल ने किया उन्होंने 2 छेद वाला चूहों का बिल बनाया और एक रास्ते पर बल्ब व करंट वाला तार लगा दिया पहली पीढ़ी के चूहों ने औसतन 165 बार करंट खाया लेकिन 5 वीं पीढ़ी के चूहों ने 25 बार ही करंट खाया यह सिद्ध करता है कि अर्जित गुण अगली पीढ़ी में हस्तांतरित होते है ।
- 3. समानता का सिद्धांत - इसके अनुसार एक प्रजाति के जीवधारियों की अगली पीढ़ी में भी उन्हीं के गुण होते है । अर्थात समान प्रजाति समान प्रजाति को जन्म देती है ।
- 4. भिन्नता का सिद्धांत -कभी - कभी गुणसूत्रों के संयोजन के दौरान कुछ वातावरणीय प्रभाव जीन को प्रभावित कर देते है । जिससे सन्ताने माता - पिता से थोड़ी बहुत भिन्न गुण , धर्म वाली उत्पन्न हो जाती है ।
- 5. जीव गणना या जीव सांख्यिकी सिद्धात - प्रतिपादक - गॉल्टन ( गाल्टन - गणना ) इसके अन्तर्गत गॉल्टन ने बताया कि सन्तानों में माता और पिता दोनों पक्षों से बराबर मात्रा में गुण और दोष प्राप्त होते है ।
वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- 6. आनुवांशिकता सिद्धांत / पीढ़ियों का प्रत्यागमन प्रतिपादक - ग्रिगोर मेण्डल मेण्डल के अनुसार पिछली पीढ़ियों के जो गुण या दोष प्रभावी होते है । वे तो अगली पीढ़ी में प्रकट हो जाते है । लेकिन जो गुण या दोष अप्रभावी रह जाते है । वो उससे अगली पीढ़ियों में अवश्य प्रकट होते है । इसके लिए उन्होंने मटर के लम्बे और बौने पौधों को संकर करवाया दूसरी पीढ़ी में केवल लम्बे पौधे प्राप्त हुए लेकिन तीसरी पीढ़ी में 75 प्रतिशत लम्बे व 25 प्रतिशत बौने पौधे प्राप्त हुए ।
वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
वंशानुक्रम के प्रभाव -
वंशानुक्रम का प्रभाव बालक के शारीरिक विकास , उसके रंग , रुप , आकार , बनावट , बालक के मानसिक विकास , मूल प्रवर्तियों , संवेगों इत्यादि पर मुख्य रूप से पड़ता है ।
2. वातावरण-
इसे पर्यावरण भी कहा जाता है जिसका अर्थ है - परि+आवरण अर्थात प्रकृति , जलवायु , भौतिकता , सामाजिकता एवं आर्थिक धार्मिक , सांस्कृतिक पक्षों का वह आवरण जो गर्भावस्था से जीवन पर्यन्त व्यक्ति को प्रभावित करता है । पर्यावरण कहलाता है ।
- एनास्तासी - वातावरण वह वस्तु है जो जीव के अतिरिक्त व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है ।
- जिसबर्ट - वातावरण हर वस्तु को घेरे हुए है और उस पर अपना प्रभाव डालता है ।
वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
वातावरण के प्रभाव-
वातावरण बालक के सामाजिक सांस्कृतिक विकास उसकी रुचियों , ज्ञान आदतों एवं अभिवृत्तियों ( नजरिया ) मुख्य रूप प्रभावित करता है ।
विद्वानों के अनुसार वातावरण बदलने से बालक की मानसिक क्षमताएं संवेग व शारीरिक क्षमताओं में मामूली परिवर्तन किया हो सकता है । उदा ० - अमाला , कमाला एवं रामू भेड़िया
ये तीनों बालक बचपन से ही जानवरों में रहे अतः इनमें मानवीय गुणों का विकास नहीं हो पाया इसके विपरीत गुआ नाम का एक वर्षीय चैम्पैजी ( वन मानुष ) बालक मानव बालक के साथ रहा और मानवीय भाषा के शब्द सीख गया । वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
3. बुद्धि -
जो बालक मंदबुद्धि होते है उनमें भाषा का विकास और पेशीयों में गति जन्म के 24 वें माह से 30 वें माह के मध्य आती है जबकि प्रतिभाशाली 11 वें माह में तथा सामान्य बालक 12 वें से 14 वें माह में ये क्रियायें करने लगते है ।
4. लिंग -
जन्म के समय बाबलका शिशु बालक शिशु से आधे से एक 1/2 से 1 पोंड कम भारी व 1 से 2 इंच कम लम्बी होती है ।
5. माँ का गर्भाशयी जीवन -
गर्भवती महिला पर रेडियोएक्टिव विकिरणों , ग्रहण के हानिकारक प्रभावों इत्यादि का असर पड़ता है जो आने वाले शिशु को भी प्रभावित करता है ।
6. जन्म कर्म -
पहले बच्चे की बजाए दूसरा बच्चा अधिक चुस्त होते है ।
7. पोषण -
एक गर्भवती महिला को संतुलित आहार का प्रभाव शिशु के वृद्धि विकास पर भी पड़ता है । योजना आयोग के अनुसार एक ग्रामीण व्यस्क को 2400 कैलोरी प्रतिदिन ऊर्जा तथा शहरी व्यस्क को 2100 कैलोरी ऊर्जा प्रतिदिन स्वस्थ रहने हेतु आवश्यक होती है । वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक
8. प्रजाति -
दुनिया में प्रत्येक प्रजाति का वृद्धि और विकास का क्रम भिन्न - भिन्न है । बुशमैन जाति की औसत लम्बाई 3.5 फीट जबकि नीग्रो की औसत लम्बाई 6.5 फीट होती है ।
9. अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियां -
पीयूष ग्रन्थि से उत्पन्न हार्मोन बालक की लम्बाई को प्रभावित करता है । पैराथायरॉक्सिन हार्मोन बालक के मानसिक विकास से सम्बन्धित है । पीनीयल व थाइमस ग्रन्थि यौन सम्बन्धी विकास को प्रभावित करती है , इत्यादि ।
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