अधिगम सिद्धान्त Part-2
1. अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त (पावलॉव)
( Theory of Conditioned Response )
1. अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त (पावलॉव)
( Theory of Conditioned Response )
अनुकूलित अनुक्रिया का अर्थ है अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति-स्वाभाविक क्रिया का उत्पन्न होना । जैसे एक बच्चा विद्यालय जा रहा है । रास्ते में हलवाई की दुकान पर मिठाइयाँ देखकर बच्चे के मुँह से लार टपकने लगती है । धीरे - धीरे यह स्वाभाविक क्रिया बन जाती है । अत : जब अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया होती है तो वह अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त कहलाता है ।
अनुकूलित अनुक्रिया का अर्थ है अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति-स्वाभाविक क्रिया का उत्पन्न होना । जैसे एक बच्चा विद्यालय जा रहा है । रास्ते में हलवाई की दुकान पर मिठाइयाँ देखकर बच्चे के मुँह से लार टपकने लगती है । धीरे - धीरे यह स्वाभाविक क्रिया बन जाती है । अत : जब अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया होती है तो वह अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त कहलाता है ।
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1904 में रूसी शरीर शास्त्री आई.पी. पावलॉव ( I. P. Pavlov ) ने किया था । उनके मतानुसार अधिगम की क्रिया , अनुक्रिया से प्रभावित होती हैं।
पावलॉव ने शरीर शास्त्री के रूप में अपना कैरियर प्रारंभ किया । 1904 में उसे पाचन के शरीर विज्ञान पर नोबल पुरस्कार मिला । उनके इस कार्य ने अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त की नींव डाली ।
पावलॉव ने पालतु कुत्ते पर अनुकूलित अनुक्रिया का प्रयोग किया । इस कुत्ते की लार - ग्रन्थि का आपरेशन किया गया जिससे लार एकत्र की जा सके । लार काँच की नली में एकत्र किया जाता था । कुत्ते को खाना देते समय घण्टी बजाई जाती थी । खाना देखकर कुत्ते के मुँह में लार आ जाना स्वाभाविक ही था । घण्टी बजती है , परन्तु खाना नहीं दिया जाता , फिर भी कुत्ते के मुँह से लार टपकती है । घण्टी के साथ अनुकूलित क्रिया होने लगती है ।
व्यक्ति इस बात को जानता है कि भूखे कुत्तों के मुंह से , खाना देखकर लार का आना स्वाभाविक है । पावलॉव ने प्रयोग में एक साथ दो उत्तेजनाएँ दी थीं । घण्टी का बजना तथा भोजन का दिया जाना साथ - साथ चलता रहा । काफी समय के पश्चात् भोजन नहीं दिया गया , केवल घण्टी ही बजी । परिणामतः अनुक्रिया नहीं हुई जो भोजन के दिये जाने के समय होती थी । इस प्रयोग की सामान्य व्याख्या इस प्रकार है " इस तथ्य की साधारण व्याख्या यह है कि जब दो उत्तेजनाएँ दी जाती रहीं , पहली नयी , बाद में मौलिक , उस समय पहली क्रिया भी प्रभावशाली जाती है । "
अनुक्रिया का चित्र इस आधार पर विकसित होता है
1. US → UR ( स्वाभाविक क्रिया तथा अनुक्रिया )
भोजन → लार
2. US + CS → US ( अस्वाभाविक तथा स्वाभाविक क्रिया तथा अनुक्रिया )
खाना + घण्टी की आवाज →( लार टपकना )
3. CS → CR ( अस्वाभाविक क्रिया तथा घण्टी की आवाज , लार स्वाभाविक क्रिया )
घण्टी की आवाज → लार टपकना
अनुकूलित अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले तत्त्व
( Controlling Factors of Conditioned Response )
( 1 ) अनुक्रिया का प्रभुत्व ( Dominance of the Response ) — पावलॉव के प्रयोग में घण्टी के बजते ही कुत्ते का ध्यान आवाज की ओर केन्द्रित हो जाता था । कुत्ते के मुँह से लार आने के कारण घण्टी तथा भोजन की क्रिया का साथ - साथ संचालन था । अतः प्रेरणा भी अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी होती है ।
( 2 ) दो उद्दीपनों में समय का सम्बन्ध ( The time rotation of the two stimulis ) अन्य बातों के समान रहते नयी , प्रेरणा पहले दी गई और मौलिक प्रेरणा बाद में । यदि प्रेरणा का स्वरूप बदल भी दिया जाये तो भी अनुक्रिया होगी ।
( 3 ) प्रेरणा की पुनरावृत्ति ( Repetition of the stimulis ) – क्रिया के बार बार करने पर वह स्वभाव में आ जाती है । वाटसन ने एक बालक पर इस प्रकार के प्रयोग किये । उसने बालक को बिल्ली से डराया । बाद में उसे रोयेंदार वस्तुओं से डराया गया । बाद में , रोयेंदार वस्तुओं से डरने की बालक की आदत बन गई ।
( 4 ) भावात्मक पुनर्बलन ( Emotional reinforcement ) - प्रेरक जितने अधिक शक्तिशाली होंगे उतनी अधिक अनुक्रिया होगी । प्रेरणा तथा उत्तेजना के मध्य जिंतने अधिक शक्तिशाली प्रेरक होंगे , उतने ही स्थायी प्रभाव होंगे ।
अनुकूलित अनुक्रिया : सामान्यीकरण
( Conditioned Response : Generalisation )
पॉवलाव के इस प्रयोग से मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति मच गई । अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सत्य का निरूपण करने के लिये प्रयोग किये । सामान्य रूप से अनुकूलित अनुक्रिया का सामान्यीकरण इस प्रकार है
- 1. मूल उत्तेजना के साथ - साथ कुछ दिन के पश्चात् अस्वाभाविक उत्तेजना देने वाली अन्य वस्तुओं के प्रति भी वैसी ही अनुक्रिया होने लगती है जैसी मूल उत्तेजना के साथ होने वाली अनुक्रिया होती है ।
- 2. जे.बी. वाटसन ने भी इस प्रकार के प्रयोग किये , उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भय एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में चला जाता है ।
- 3. सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि गाँवों तथा नगरों में बालकों को साधुओं , सिपाहियों आदि से डराया जाता है , बाद में बालक साधुओं एवं सिपाहियों जैसे कपड़ों से ही डरने लगता है ।
अनुकूलित अनुक्रिया : आलोचना
( Conditioned Response : Criticism )
अनुकूलित अनुक्रिया का आधार मानव शरीर है । जी लेस्टर एण्डसन के अनुसार " अनुकूलित अनुक्रिया का सबसे बड़ा योगदान यह रहा है कि उसमें हमें एक ऐसी बुनियादी वैज्ञानिक आधार सामग्री प्राप्त हुई है , जिससे हम अधिगम के एक सिद्धान्त का निर्माण कर सकते हैं । " फिर भी इस मत की आलोचना को अग्रलिखित बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है
( 1 ) यान्त्रिकता पर बल ( Emphasis on Mechanism ) यह सिद्धान्त मनुष्य को एक यंत्र मानकर चलता है । यह स्पष्ट है कि मानव मशीन नहीं है । वह तर्क , चिन्तन , कल्पना आदि के आधार पर अपनी क्रियाओं का संचालन करता है । यह मन , चिन्तन तथा तर्क के आधार पर की गई क्रियाओं का विश्लेषण नहीं करता ।
( 2 ) अस्थायित्व ( Unstability ) अनुकूलित अनुक्रिया में अस्थायित्व होता है । सामान्यतः यह देखा जाता है कि जिस प्रकार निरन्तर अभ्यास में यह क्रिया दृढ़ हो जाती है उसी प्रकार यदि उत्तेजना के सम्बन्धों को शून्य कर दिया जाये तो धीरे - धीरे वह अनुक्रिया प्रभावहीन हो जाएगी ।
( 3 ) बालकों तथा पशुओं पर प्रयोग ( Experiments on Children & Animal ) यह मत बालकों तथा पशुओं पर किये गये प्रयोगों से ही स्पष्ट हुआ है । प्रौढ़ तथा परिपक्व मनुष्यों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता ।
पावलॉव के सिद्धान का योगदान
( Contribution of Paulov's Theory )
पॉवलाव के अधिगम के सिद्धान्त को शास्त्रीय अनुबंधन ( Classical conditioning ) कहते हैं । उनके अनुकूलित तथा अनुकूलित अनुक्रिया के अधिगम सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । इसके प्रयोगों तथा चिन्तन का योगदान इस प्रकार से हैं
( 1 ) क्षमता ( Capacity ) अनुकूलित अनुक्रिया , स्नायु प्रणाली का एक भाग है । इसलिये सीखने की योग्यता पर इसका प्रभाव पड़ता है । भाषा विकास एवं संकेत व्यवस्था पर इसका सीधा प्रभाव देखा गया है ।
( 2 ) अभ्यास ( Practice ) — पुनर्बलन के अभ्यास द्वारा अनुकूलित अनुक्रिया बलवती होती हैं ।
( 3 ) अभिप्रेरणा ( Motivation ) आरम्भिक अवस्था में अनुकूलित अनुक्रिया के लिये अभिप्रेरणा देनी पड़ती है । भूखे पशु को भोजन , उसकी आम प्रेरणा है । किसी संकेत या कृत्रिम प्रेरणा के साथ जुड़ने से मूल अभिप्रेरणा क्षीण हो जाती है ।
( 4 ) अवबोध ( Understanding ) यद्यपि पावलॉव व्यक्तिनिष्ठ ( Subjective ) पदावली के प्रयोग का विरोधी था , किन्तु अनुकूलित अनुक्रिया के बारे में उसने कहा " जब कोई सम्बन्ध या संयोग बनता है , पदार्थ के ज्ञान , सम्बन्ध तथा उसके परिवेश की ओर संकेत करता है । जब आप पुन : उसका उपयोग करते हैं तो वह सूझ या पूर्णाकार कहलाता है । "
( 1 ) स्वभाव निर्माण ( Habit formation ) अनुकूलित अनुक्रिया धीरे - धीरे स्वभाव बन जाती है । स्वभाव का मानव जीवन में विशेष महत्त्व है । इस अनुक्रिया से समय की बचत होती है तथा कार्य में स्पष्टता आती है । बार - बार किया गया कार्य आदत बन जाता है । पावलॉव ने अनुक्रिया के अनुकूलन का शैक्षिक महत्त्व प्रकट किया है । पावलॉव के अनुसार- “ प्रशिक्षण पर आधारित अनुकूलित अनुक्रिया की शृखला के अतिरिक्त भी नहीं हैं । "
( 2 ) अभिवृत्ति का विकास ( Development of Aptitude ) इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों में अच्छी अभिवृत्ति विकसित हो सकती है । बच्चों के समक्ष आदर्श उपस्थित कर उन्हें अनुकूलन से अनुक्रिया ग्रहण करने की प्रेरणा दे सकते हैं । अच्छी अभिवृत्ति द्वारा अनेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं ।
( 3 ) अक्षर - विन्यास तथा गुण - शिक्षण ( Letters and Multiplication ) इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चों में अक्षर विन्यास एवं गुणों ( Multiplication ) का विकास किया जा सकता है । इस सिद्धान्त के अनुसार अभ्यास पर अधिक बल दिया जाना आवश्यक है ।
( 4 ) मानसिक एवं संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार ( Cure of mental & emotional disorders ) यह सिद्धान्त उन बच्चों के लिए उपचार प्रस्तुत करता है जो मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं ।
( 5 ) शिक्षक का योगदान ( Contribution of Teachers ) अनुकूलित अनुक्रिया में शिक्षक का योगदान वातावरण का निर्माण करने में अधिक रहता है । शिक्षक को चाहिए कि वह दण्ड ( Punishment ) तथा पुरस्कार ( Reward ) के निर्धारण का कार्यान्वन तुरन्त करे । इससे अनुकूलित अनुक्रिया का शीघ्रता से सम्पादन होगा ।
( 2 ) अभ्यास ( Practice ) — पुनर्बलन के अभ्यास द्वारा अनुकूलित अनुक्रिया बलवती होती हैं ।
( 3 ) अभिप्रेरणा ( Motivation ) आरम्भिक अवस्था में अनुकूलित अनुक्रिया के लिये अभिप्रेरणा देनी पड़ती है । भूखे पशु को भोजन , उसकी आम प्रेरणा है । किसी संकेत या कृत्रिम प्रेरणा के साथ जुड़ने से मूल अभिप्रेरणा क्षीण हो जाती है ।
( 4 ) अवबोध ( Understanding ) यद्यपि पावलॉव व्यक्तिनिष्ठ ( Subjective ) पदावली के प्रयोग का विरोधी था , किन्तु अनुकूलित अनुक्रिया के बारे में उसने कहा " जब कोई सम्बन्ध या संयोग बनता है , पदार्थ के ज्ञान , सम्बन्ध तथा उसके परिवेश की ओर संकेत करता है । जब आप पुन : उसका उपयोग करते हैं तो वह सूझ या पूर्णाकार कहलाता है । "
अनुकूलित अनुक्रिया : शिक्षा में उपयोग
( Conditioned Response : Use in Education )
अनुकूलित अनुक्रिया का आधार व्यवहार है । वाटसन ने अनुकूलित अनुक्रिया के आधार पर यह कहा था , ' मुझे कोई भी बालक दो । मैं उसे जो चाहू बना सकता । वह शक्ति के विकास में अनुकूलित अनुक्रिया को विशेष महत्त्व देता है । विद्यालय में इस मत का उपयोग सरलता से किया जा सकता है ।( 1 ) स्वभाव निर्माण ( Habit formation ) अनुकूलित अनुक्रिया धीरे - धीरे स्वभाव बन जाती है । स्वभाव का मानव जीवन में विशेष महत्त्व है । इस अनुक्रिया से समय की बचत होती है तथा कार्य में स्पष्टता आती है । बार - बार किया गया कार्य आदत बन जाता है । पावलॉव ने अनुक्रिया के अनुकूलन का शैक्षिक महत्त्व प्रकट किया है । पावलॉव के अनुसार- “ प्रशिक्षण पर आधारित अनुकूलित अनुक्रिया की शृखला के अतिरिक्त भी नहीं हैं । "
( 2 ) अभिवृत्ति का विकास ( Development of Aptitude ) इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों में अच्छी अभिवृत्ति विकसित हो सकती है । बच्चों के समक्ष आदर्श उपस्थित कर उन्हें अनुकूलन से अनुक्रिया ग्रहण करने की प्रेरणा दे सकते हैं । अच्छी अभिवृत्ति द्वारा अनेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं ।
( 3 ) अक्षर - विन्यास तथा गुण - शिक्षण ( Letters and Multiplication ) इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चों में अक्षर विन्यास एवं गुणों ( Multiplication ) का विकास किया जा सकता है । इस सिद्धान्त के अनुसार अभ्यास पर अधिक बल दिया जाना आवश्यक है ।
( 4 ) मानसिक एवं संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार ( Cure of mental & emotional disorders ) यह सिद्धान्त उन बच्चों के लिए उपचार प्रस्तुत करता है जो मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं ।
( 5 ) शिक्षक का योगदान ( Contribution of Teachers ) अनुकूलित अनुक्रिया में शिक्षक का योगदान वातावरण का निर्माण करने में अधिक रहता है । शिक्षक को चाहिए कि वह दण्ड ( Punishment ) तथा पुरस्कार ( Reward ) के निर्धारण का कार्यान्वन तुरन्त करे । इससे अनुकूलित अनुक्रिया का शीघ्रता से सम्पादन होगा ।
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