अधिगम के सिद्धान्त
( Theories of Learning )
मनोविज्ञान का विकास दर्शन से हुआ है । अधिगम में जितने भी मनोविज्ञान के सिद्धान्त हैं , उन सब का मूल दर्शनशास्त्र में निहित है । दार्शनिक मनोविज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को मानसिक जीवन का विज्ञान माना है । adhigam ke Siddhant : अधिगम के सिद्धान्त
अधिगम का सम्बन्ध स्मृति से रहा है । अधिगम के क्षेत्र में अनेक सिद्धान्त प्रचलित हैं । सभी अधिगम सिद्धान्त इन तथ्यों पर आधारित हैं
- 1. अधिगम की सीमाएँ क्या हैं ?
- 2. अभ्यास की अधिगम में क्या भूमिका है ?
- 3. दण्ड , पुरस्कार प्रोत्साहन , प्रणोदन आदि का सीखने की प्रक्रिया में क्या महत्त्व है ?
- 4. सीखने की क्रिया में अवबोध ( Understanding ) तथा अन्तर्दृष्टि का क्या महत्त्व है ?
- 5. क्या एक सीखी गई क्रिया किसी अन्य क्रिया को सीखने में योग देती है ?
- 6. हम जब कुछ याद करते हैं या भूलते हैं , तब क्या होता है ?
उपरोक्त सभी प्रश्न अधिगम की प्रक्रिया से ही जुड़े हुए हैं ।
अधिगम के सिद्धान्तों को समझने से पूर्व हमें यह जान लेना चाहिए कि अधिगम परिपक्वता पर निर्भर करता है । परिपक्वता प्राणी को अधिगम लायक बनाती है । दूसरा मनुष्य की क्षमता में हुई वृद्धि परिपक्वता को प्रश्रय देती है उससे निर्मित मानव व्यवहार , अधिगम को प्रभावित करता है । मनोवैज्ञानिकों के समूह , अधिगम के सिद्धान्त तथा नियमों के निर्धारण अनेक मतों एवं नियमों को निम्नलिखित दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है
( 1 ) अधिगम के साहचर्य ( व्यवहारवाद) सिद्धान्त ( Associatives theories of Learning )
( 2 ) अधिगम के क्षेत्र - सिद्धान्त ( Field theories of Learning )
( 1 ) अधिगम के साहचर्य ( व्यवहारवाद) सिद्धान्त
( Associatives theories of Learning )
adhigam ke Siddhant : अधिगम के सिद्धान्त
साहचर्य सिद्धान्तों से अभिप्राय उन सिद्धान्तों से है जो मानव व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं । साहचर्य सिद्धान्तों के अन्तर्गत अग्रलिखित सिद्धान्तों का वर्णन किया जा सकता हैं -
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- अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त (पावलॉव) Click to open
- सक्रिय अनुबन्धन ( स्किनर ) Click to open
- उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त ( थार्नडाइक ) Click to open
- व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त ( क्लार्क हल ) Click to open
( 2 ) अधिगम के क्षेत्र - सिद्धान्त
( Field theories of Learning )
adhigam ke Siddhant : अधिगम के सिद्धान्त
क्षेत्र ( Field ) सिद्धान्तों का जन्म साहचर्य सिद्धान्तों की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ था । क्षेत्र ( Field ) क्या है ? क्षेत्र का सिद्धान्त - क्या है ? इसकी व्याख्या हाटमैन ने इस प्रकार की हैं - क्षेत्र का सामान्य अभिप्राय है - वह परिवेश जिसमें सभी घटनाएँ घटित होती है । हाल ही में जैविक , मनोविज्ञान और समाज - शास्त्र में भी इन्हें सारे संगठित और व्यवस्थित आनुभाविक ज्ञान या विज्ञान का प्रतिनिधि माना और उतना ही आवश्यकता और प्रबोधक जाना है । प्रकृति में और क्षेत्र में स्पष्टत : मनावैज्ञानिक और शैक्षिक प्रपंच शामिल हैं - सब घटना हमेशा एक क्षेत्र के भीतर घटित होती हैं , चाहे वह बड़ा हो या छोटा । एक वस्तु के अन्तर्निहित गुणों के बारे में कहा जाता है कि वे अन्ततः उन शक्तियों का परिणाम होते हैं जो उसके घेरने वाले क्षेत्र में टकराती है । यह क्षेत्र प्रभावशाली सम्पूर्ण माना जाता है । इसी से गुण या व्यवहार निर्धारित होते हैं । क्षेत्र सिद्धान्त के अन्तर्गत हम प्रमुख रूप से पूर्णाकार ( Gestalt ) , तलरूप ( Topology ) एवं टालमैन का प्रतीक पूर्णाकार ( Sign gestalt ) सिद्धान्तों का वर्णन करेंगे ।adhigam ke Siddhant : अधिगम के सिद्धान्त
- पूर्णाकारवाद/ गेस्टाल्टवाद (कोहलर)
- अधिगम का तलरूप सिद्धान्त (कुर्टलेविन)
- अधिगम का चिह्न - पूर्णाकार सिद्धान्त (टालममैन)
उपरोक्त समस्त सिद्धांतों को हम क्रमबद्ध अलग-अलग पोस्ट में विस्तार से अध्ययन करेंगे।
adhigam ke Siddhant : अधिगम के सिद्धान्त
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